गुरु-शिष्य के रिश्ते की गरिमा हमेशा बनी रहेगी
शिक्षक-दिवस के माैके पर शिक्षक-शिक्षिकाओं ने प्रभात-खबर कार्यालय में आयोजित परिचर्चा सत्र में भाग लिया
कोलकाता : डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के रूप में उनकी स्मृति में पूरे देश में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (टीचर्स डे) मनाया जाता है. वे एक महान शिक्षक, दार्शनिक होने के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में भी जाने जाते हैं. उनको याद करते हुए शिक्षक-दिवस के रूप में एक परिचर्चा का आयोजन प्रभात खबर कार्यालय में आयोजित किया गया.
इसमें शिक्षकों ने कहा कि आधुनिकता व डिजिटल क्रांति के इस दाैर में गुरु व शिष्य के रिश्ते में कुछ बदलाव तो आया है लेकिन यह रिश्ता अभी धुंधला नहीं हुआ है. आज भी गुरु-शिष्य का रिश्ता बना हुआ है. हां, आज शिक्षक को एक फ्रेंड की भी भूमिका निभानी पड़ती है. एक विद्यार्थी के लिए शिक्षक ही उसका रोल मॉडल होता है. जानते हैं उनके विचार
बलवंत सिंह(वरिष्ठ हिंदी शिक्षक, ला मार्टिनियर फॉर ब्वॉयज) : हमारे स्कूल में अभिजात्य वर्ग के बच्चे पढ़ने आते हैं. इसके बावजूद वे कई सामाजिक कार्यों में आगे रहते हैं. स्कूल में बने क्लब के जरिये वे रचनात्मक गतिविधियों में भी सक्रिय रहते हैं,क्योंकि उनको उस रूप में तैयार किया गया है. आज भी एकलव्य हैं लेकिन शिक्षकों को भी समर्पित होना पड़ेगा. गुरु-शिष्य का रिश्ता हमेशा मधुर रह सकता है, अगर विद्यार्थियों को सही परिवेश के साथ प्रोत्साहित किया जाये.
अरविंद कुमार सिंह (वरिष्ठ हिंदी शिक्षक, सेंट ऑगस्टीन स्कूल): आपाधापी की इस दुनिया में आज बच्चे भी कहीं प्यार व दुलार से उपेक्षित हो रहे हैं. यह भी सच है कि आज बहुत कड़ाई से उनसे पेश नहीं हुआ जा सकता है लेकिन फिर भी शिक्षक को बच्चों के सामने ऐसा उदाहरण बनना चाहिए कि बच्चे खुद ही अनुशासन के साथ सम्मान भी करना सीखें.
सीमा सिंह (हिंदी शिक्षिका, बीडीएम इंटरनेशनल) : मेरा अनुभव कहता है कि अगर बच्चों को रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखा जाये तो वे न केवल खुद को उत्साहित अनुभव करते हैं बल्कि उनकी लीडरशिप क्वालिटी भी बढ़ती है. यह शिक्षक पर निर्भर करता है कि वह बच्चों को दे क्या रहा है. जो हम देंगे, वही लाैट कर आता है.
डॉ एन एन सिंह (बिड़ला हाइ स्कूल के पूर्व शिक्षक): कई वर्षों से निजी स्कूल में पढ़ाने का अनुभव रहा है. शिक्षा अपने आप में एक बड़ा काम है. हां, आज के दाैर में शिक्षा पर भी व्यवसायीकरण का प्रभाव है लेकिन फिर भी शिष्य व गुरु का रिश्ता कभी बदल नहीं सकता है. जहां घर में अभिभावकों को अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने की जरूरत है, वहीं शिक्षकों को भी अपने आचरण में बदलाव लाने की जरूरत है.
मोहम्मद शहाबुद्दीन (वरिष्ठ शिक्षक, जूलियन डे स्कूल): आज के दाैर में संयुक्त परिवार की प्रथा खत्म हो गयी है. बच्चे भी कहीं स्नेह व दुलार से वंचित हो रहे हैं. ऐसे में अगर स्कूल के शिक्षक भी उनसे कड़ा व्यवहार करेंगे, तो वे निराश हो जाते हैं. आज के दाैर की मांग यही है कि स्कूलों में भी टीचर को विद्यार्थियों के साथ बहुत फ्रेंडली पेश आना चाहिए.
अशोक कुमार शर्मा (प्रिंसिपल, चेतला, सरस्वती विद्यामंदिर) : स्कूलों में शिक्षक की भूमिका एक कुम्हार की तरह है. ये बच्चे कच्ची मिट्टी के रूप में हैं. इनको सही आकार देकर खूबसूरत प्रतिमा के रूप में गढ़ना एक शिक्षक का ही काम है. हमारे विद्यालय में पढ़ने वाले कई बच्चे परिवार की पहली पीढ़ी है, जो स्कूल जा रही है. फिर भी हमारे शिक्षक कोशिश करते हैं कि हर बच्चे की सही देखभाल, स्नेह व अनुशासन के साथ उनको आगे बढ़ाया जाये.
सपन मंडल (सह सचिव, बंगीय शिक्षा-ओ-शिक्षा कर्मी समिति) : शिष्य व गुरु का संबंध हमेशा गरिमापूर्ण रहेगा, क्योंकि गुरु ही बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए एक आधारशिला तैयार करता है. सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को भी यह समझना होगा कि हमें ईमानदारी से अपने कत्तर्व्य को निभाना है व बच्चों को बेहतर नागरिक बनाना है.
कविता अरोड़ा (वरिष्ठ हिंदी शिक्षिका, द हेरिटेज) : देश के कई प्रतिष्ठित निजी स्कूलों में नियमित रूप से बच्चों की काउंसेलिंग की जाती है. उनको कई एक्सट्रा-करीक्युलर गतिविधियों से जोड़ा जाता है, ताकि उनके हुनर को विकसित किया जाये. उनका मस्तिष्क हमेशा सकारात्मक कार्यों में लगा रहे, तो बच्चे अनुशासित भी रहेंगे व ऊर्जा से भरपूर भी रहेंगे. बच्चे तभी अपने शिक्षक को गुरू के रूप में स्वीकार करते हैं, जब शिक्षक या शिक्षिका भी बहुत स्नेह व समर्पण के साथ बच्चों की भावनाओं को समझते हैं या उनको नर्चर करते हैं.