कोलकाता : अभिनेत्री और सामाजिक कार्यकर्ता अपर्णा सेन, गौतम घोष सहित देश भर के 49 विशिष्ट कलाकारों, बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखा है. इन्होंने दलितों व अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्याचार बढ़ने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप की मांग की.
बुद्धिजीवियों ने अपने पत्र में कहा है कि देश के संविधान के मुताबिक, भारत धर्मनिरपेक्ष है और सभी धर्म, जातियां आदि समान हैं. पत्र में मांग की गयी है कि मुस्लिमों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ सामूहिक पिटाई से मार डालने की घटनाओं को तत्काल रोकने की जरूरत है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के तहत वर्ष 2016 में दलितों के खिलाफ अत्याचार के 840 मामले हुए हैं तथा दोषियों को सजा देने के प्रतिशत में गिरावट हुई है. वर्ष 2009 से 2018 के बीच 254 धर्म आधारित नफरत संबंधी अपराध की घटनाएं हुई हैं. इनमें 91 लोगों की मौत हुई और 579 घायल हुए.
इनमें 62 फीसदी घटनाओं में पीड़ित मुस्लिम थे तथा ईसाई 14 फीसदी मामलों में पीड़ित रहे. इनमें से 90 फीसदी मामले वर्ष 2014 के मई के बाद हुए. संसद में इन घटनाओं की निंदा करने से ही समस्याओं का हल नहीं होगा. दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की जरूरत है.
इसके अलावा आज ‘जय श्रीराम’ का नारा युद्ध उद्घोष बन गया है, जिससे कानून-व्यवस्था की समस्या हो रही है. कई हमले इसी नारे के साथ हुए हैं. पत्र में यह भी कहा गया है कि मतभेद के बिना लोकतंत्र नहीं हो सकता. लेकिन, लोगों को सरकार से अहमति होने पर ‘राष्ट्र विरोधी’ या ‘ शहरी नक्सल’ करार दे दिया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार, सभी को बोलने व अभिव्यक्ति की आजादी है. मतभेद इसका अभिन्न अंग है.
पत्र में बुद्धिजीवियों का कहना था कि सत्ताधारी दल की आलोचना करना राष्ट्र की आलोचना करना नहीं है. किसी भी सत्ताधारी पार्टी का अर्थ देश नहीं होता. लिहाजा, सरकार विरोधी रुख को राष्ट्र विरोधी नहीं करार दिया जाना चाहिए. खुला माहौल राष्ट्र को और मजबूत बनाता है.
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में फिल्मकार अडूर गोपालकृष्णन, अनुराग कश्यप, मणिरत्नम, कोंकोणा सेन शर्मा, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, पार्थ चटर्जी भी शामिल हैं. अपर्णा सेन ने पत्र के संबंध में कहा कि दलितों व मुस्लिमों के खिलाफ होने वाली अत्याचार की घटनाओं को रोकना होगा.
ऐसी घटनाओं में दोषियों पर गैरजमानती धाराएं लगानी होंगी. अगर हत्या के मामले में बगैर पेरोल के उम्रकैद हो सकती है, तो सामूहिक पिटाई से मौत के मामले में ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए. गौतम घोष ने कहा कि शांतिपूर्ण जीवनयापन सभी चाहते हैं. जाति व धर्म के नाम पर हिंसा बिल्कुल नहीं होनी चाहिए.