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कोलकाता : पत्थरों की धूल ने ले ली एक और जान, सिलिकोसिस से अब तक पांच लोगों की हो चुकी है मौत

कोलकाता : सिलिकोसिस बीमारी से एक और शख्स की मौत हो गयी है. मृतक का नाम नूर ‌इस्लाम मोल्ला (28) है. पीड़ित उत्तर 24 परगना के मिनाखा ब्लॉक के गलदा ग्राम का रहने वाला था. वह काफी दिनों से फेफड़े की बीमारी से ग्रसित था. उसका इलाज मिनाखा अस्पताल में चल रहा था. गुरुवार सुबह […]

कोलकाता : सिलिकोसिस बीमारी से एक और शख्स की मौत हो गयी है. मृतक का नाम नूर ‌इस्लाम मोल्ला (28) है. पीड़ित उत्तर 24 परगना के मिनाखा ब्लॉक के गलदा ग्राम का रहने वाला था. वह काफी दिनों से फेफड़े की बीमारी से ग्रसित था.
उसका इलाज मिनाखा अस्पताल में चल रहा था. गुरुवार सुबह 10 बजे के करीब उसकी मौत हो गयी. जानकारी के अनुसार, नूर ‌इस्लाम समेत गांव के कई लोग रानीगंज में पत्थर के एक खदान में काम करने गये थे, लेकिन चार वर्ष पहले स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण सभी काम छोड़ कर वापस लौट आये. यहां डॉक्टर से जांच कराने पर पाया कि सभी सिलिकोसिस नाम की बीमारी से पीड़ित हैं. उसके बाद राज्य सरकार की तरफ से सभी का इलाज किया जा रहा था. बताय गया कि गत चार साल में इस बीमारी से पांच लोगों की मौत हो चुकी है.
कैसे होती है सिलिकोसिस
सिलिका कणों और टूटे पत्थरों की धूल की वजह से सिलिकोसिस होती है. धूल सांस के साथ फेफड़ों तक जाती है और धीरे-धीरे यह बीमारी अपने पांव जमाती है.
यह खासकर पत्थर के खनन, रेत-बालू के खनन, पत्थर तोड़ने के क्रेशर, कांच-उद्योग, मिट्टी के बर्तन बनाने के उद्योग, पत्थर को काटने और रगड़ने जैसे उद्योगों के मजदूरों में पायी जाती है. इसके साथ ही स्लेट-पेंसिल बनाने वाले उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों को भी सिलिकोसिस अपनी गिरफ्त में ले लेती है. जहां इस तरह के काम बड़े पैमाने पर होते हैं वहां काम करने वाले मजदूरों के अलावा आस-पास के निवासियों को भी सिलिकोसिस से प्रभावित होने का खतरा बना रहता है.
क्या कहना है चिकित्सकों का
डॉक्टर बताते हैं कि यह एक लाइलाज बीमारी है. इसे रोकने का आज तक कोई कारगर तरीका नहीं बनाया जा सका है. दरअसल यह सिलिका कण सांस से पेफड़ों के अंदर तक तो पहुंच जाते हैं, लेकिन बाहर नहीं निकल पाते. इसका नतीजा यह होता है कि वह फेफड़ों की दीवारों पर धीरे-धीरे जम कर एक मोटी परत बना लेते हैं. इससे फेफड़े ठीक से फैलना और सिकुड़ना बंद कर देते हैं. इससे सांस लेने में काफी तकलीफ होती है. धीरे-धीरे सांस लेने की पूरी प्रक्रिया को यह प्रभावित करता है और आखिरकार आदमी की मौत हो जाती है

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