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कोलकाता की आइसीए एडु स्किल्स पर ब्लैकलिस्ट होने का खतरा

कोलकाता/दिल्ली : विभिन्न क्लास रूम ट्रेनिंग देने और सर्टिफिकेशन कोर्स कराने के अलावा सरकारी परियोजनाओं के लिए काम करनेवाली संस्था आइसीए एडु स्किल्स प्रा लि पर कर्नाटक सरकार की गाज गिर सकती है. न केवल कर्नाटक, बल्कि देश भर में कंपनी पर ब्लैकलिस्ट होने का खतरा मंडरा रहा है. कर्नाटक सरकार द्वारा ब्लैकलिस्ट किये जाने […]

कोलकाता/दिल्ली : विभिन्न क्लास रूम ट्रेनिंग देने और सर्टिफिकेशन कोर्स कराने के अलावा सरकारी परियोजनाओं के लिए काम करनेवाली संस्था आइसीए एडु स्किल्स प्रा लि पर कर्नाटक सरकार की गाज गिर सकती है. न केवल कर्नाटक, बल्कि देश भर में कंपनी पर ब्लैकलिस्ट होने का खतरा मंडरा रहा है. कर्नाटक सरकार द्वारा ब्लैकलिस्ट किये जाने के फैसले के खिलाफ आइसीए की अपील के बाद आदेश पर स्थगनादेश लगा दिया गया है. जल्द ही ब्लैकलिस्ट करने के संबंध में आखिरी फैसला आने की उम्मीद है.
क्या है मामला
गौरतलब है कि आइसीए को दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (डीडीयू-जीकेवाइ) के तहत कर्नाटक में एक परियोजना का ठेका दिया गया था, जिसमें उम्मीदवारों को कामकाजी कौशल में प्रशिक्षित कर उन्हें नौकरी दिलानी थी. इसमें परियोजना का खर्च 14 करोड़, 99 लाख, 83 हजार 224 रुपये था.
इसमें कंपनी को पहली किस्त तीन करोड़, 54 लाख, 55 हजार 744 रुपये दे भी दिये गये थे. लेकिन कंपनी द्वारा परियोजना को अंजाम देने में विसंगतियां पाये जाने के बाद कर्नाटक सरकार ने उसे दी गयी परियोजना की मंजूरी को खत्म करते हुए उसे ब्लैकलिस्ट किया. कर्नाटक सरकार के कौशल विकास मंत्रालय ने आइसीए की परियोजना में लेनदेन में 62 लोगों के ब्योरे गलत पाये.
बैंक खाते के नंबर को जारी करने में भी गड़बड़ी पायी गयी. इसके अलावा बैंक के असल स्टेटेमेंट की लेनदेन व प्रविष्टियों में और एमआरआइजीएस (मॉनिटरिंग रेगुलेशन फॉर इम्प्रूव्ड गवर्नेंस ऑफ स्किल्स) में जो अपलोड किया गया, उसमें अंतर पाया गया.
इसके बाद कंपनी को गत चार जनवरी को शोकॉज नोटिस जारी किया गया. कंपनी ने नौ जनवरी को अपने समर्थन में कुछ दस्तावेजों को पेश किया. इसके बाद कंपनी को तीन दिन का और समय अपनी बातों को सिद्ध करने के लिए दिया गया.
कर्नाटक स्टेट रूरल लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (केएसआरएलपीएस) ने कंपनी को दोषी पाया और उसपर कर्नाटक में तीन वर्ष की अवधि के लिए ब्लैकलिस्ट किया तथा उसपर परियोजना के खर्च का दो फीसदी जुर्माना भी लगाया गया व पहली किस्त को जारी करने के बाद से 10 फीसदी सालाना ब्याज का जुर्माना भी लगाया गया.
कुल जुर्माना चार करोड़, 52 लाख, 51 हजार और अट्ठासी रुपये रुपये निर्धारित किया गया. साथ ही केंद्र के ग्रामीण विकास मंत्रालय को भी ब्लैकलिस्ट करने की सिफारिश की गयी. लेकिन कंपनी ने फैसले के खिलाफ अपील की और उसके बाद आदेश पर स्थगनादेश लगा दिया गया. प्राप्त जानकारी के मुताबिक मामले की सुनवाई पूरी हुई है और आगे कुछ और जांच भी की जा रही है. इस मामले में अंतिम फैसला जल्द आने वाला है.
  • क्लास रूम ट्रेनिंग, सर्टिफिकेशन कोर्स देने व सरकारी परियोजनाओं के लिए काम करती है कंपनी
  • बैंक खाते के नंबर को जारी करने में गड़बड़ी के आरोप
  • बैंक के असल स्टेटमेंट की लेनदेन व प्रविष्टियों में और एमआरआइजीएस में भी पाये गये अंतर
क्या कहना है कंपनी का
कंपनी के चेयरमैन नरेंद्र कुमार श्यामसुखा ने बताया कि देश भर में आइसीए के करीब 300 सेंटर हैं और दो हजार फैकल्टी हैं. इतने सेंटर होने पर भी कहीं चूक नहीं देखी गयी थी. कर्नाटक के जिस मैसूर सेंटर पर आरोप लगाये गये हैं, वहां उपयुक्त ट्रेनिंग सेंटर, प्रशिक्षित फैकल्टी तथा वैध दस्तावेज हैं. उनके प्रशिक्षण कार्यक्रम का आंकलन बाहरी एजेंसी द्वारा समय-समय पर किया गया. एसआरएलएम व एनआइआरडी द्वारा उनके प्रशिक्षण कार्यक्रम का दौरा किया गया और किसी प्रकार की शिकायत नहीं पायी गयी.
प्रशिक्षण कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध है. 60 प्रशिक्षुओं को नौकरी भी दिलायी गयी. जहां तक चूक की बात है, नियमानुसार प्रशिक्षुओं का वेतन उनके इम्प्लायर द्वारा सीधे बैंक में दिया जाना चाहिए. प्रशिक्षु द्वारा बैंक से पैसे निकालकर और उससे संबंधित प्रविष्ठियों को पासबुक में दिखाने पर कंपनी (आइसीए) द्वारा उन्हें एक हजार रुपये और दिये जाते हैं.
लेकिन यह हकीकत है कि असंगठित क्षेत्र में कई बार वेतन नगद में, कभी विलंब से भी मिलता है. प्रशिक्षुओं ने पैसे लेने के लिए जो बैंक रिकॉर्ड उन्हें दिखाये, उसके आधार पर उन्होंने फिर उन्हें पैसे दिये. अब अगर रिकॉर्ड के साथ प्रशिक्षु छेड़खानी करते हैं, तो वह क्या कर सकते हैं? क्योंकि बैंक स्टेटमेंट सीधे वह हासिल नहीं कर सकते.
नियमानुसार उन्हें पासबुक ही देखना है, उन्हें बैंक से पासबुक हासिल करने का अधिकार नहीं है. बावजूद इसके, जिस कर्मचारी की उक्त जांच की जिम्मेवारी थी, उसे कंपनी ने निकाला भी है. उन्हें न्यायिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है. उन्होंने कोई गलती नहीं की है और उन्हें भरोसा है कि फैसला उनके हक में ही होगा.

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