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हैदरी मंजिल: आजादी के दिन कोलकाता में थे महात्मा गांधी

कोलकाता. महानगर के बेलियाघाटा इलाके में स्थित हैदरी मंजिल वह स्थान है जहां महात्मा गांधी ने 15 अगस्त 1947 (स्वतंत्रता दिवस) के उस ऐतिहासिक लम्हे को महसूस किया था. वर्तमान पार्षद अलोकानंदा दास बताती हैं कि राज्य सरकार की ओर से उपेक्षित पड़े गांधी भवन के पुनरुद्धार के लिए कई कार्य किये गये हैं. जिसमें […]

कोलकाता. महानगर के बेलियाघाटा इलाके में स्थित हैदरी मंजिल वह स्थान है जहां महात्मा गांधी ने 15 अगस्त 1947 (स्वतंत्रता दिवस) के उस ऐतिहासिक लम्हे को महसूस किया था. वर्तमान पार्षद अलोकानंदा दास बताती हैं कि राज्य सरकार की ओर से उपेक्षित पड़े गांधी भवन के पुनरुद्धार के लिए कई कार्य किये गये हैं. जिसमें रंग-राेगन से लेकर मरम्मत का कार्य शामिल है. इस भवन के क्यूरेटर दिलीप दे बताते हैं कि गांधी जयंती के अवसर पर यहां हर वर्ष की भांति कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा. जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में वार्ड 34 की पौरमाता अलोकानंदा दास बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगी.
हैदरी मंंजिल का इतिहास-यह इमारत दाउदी बोहरा समुदाय की है जो पश्चिमी भारत के शिया इस्लाम अनुयायियों की एक शाखा है. 1843 में गुजरात से यह समुदाय बंगाल आया था. उस समय इन्हें बंगालीवाला के नाम से भी जाना जाता था. 19वीं सदी में व्यवसाय के ख्याल से इन लोगों ने कलकत्ता में कई स्थानों पर इमारतें खरीदी थीं, जिसमें बेलियाघाटा स्थित हैदरी मंजिल भी था. जिसे 1923 में बाेेेहरा समुदाय के शेख आदम नामक एक व्यवसायी ने खरीदा था. उन्होंने अपनी मृृृृत्यु के पहले वसीयत अपनी पुत्री हुुुुसैनाबाई बंगाली के नाम पर कर दी थी. गांधी जी के अगस्त 1947 में कलकत्ता प्रवास के समय इस इमारत का मालिकाना तत्कालीन मुस्लिम लीग के वरिष्ठ नेता एसएस सुहरावर्दी के पास था. वही इस इमारत के मालिक थेेे.
महात्मा गांधी का कलकत्ता प्रवास व अनशन
1946-47 में सांप्रदायिक दंगों की तपिश बंगाल में भी महसूस की जाने लगी थी. हालांकि इसका बीजारोपण 1942 में महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वान के साथ ही महसूस किया जाने लगा था. दूूूूसरी ओर मुस्लिम लीग व हिंदू महासभा इसके विरोध में खड़ी थी. आम आदमी विभाजन की आशंका से खौफजदा था. देश के सामाजिक वातावरण में सांप्रदायिक हिंसा केे बादल मंडरा रहे थे. केवल बारिश का ही इंतजार था. आखिर में मुस्लिम लीग की सीधी कार्रवाई की घाेेेषणा के बाद 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता में बड़ेे पैमाने पर दंगे व नरसंहार का सिलसिला आरंभ हाेे गया था. ब्रिटिश राज मेें इसे कलकत्ता नरसंहार के कालेे अध्याय के रूप में जाना जाता है. जिसमें लाखों की संख्या में लोगों की मौत व महिलाओं के बलात्कार की घटनाएं हुई थीं. अक्तूबर 1946 में नोदाखाली दंगेे की मर्माहत करने वाली घटना इसी श्रृंखला में जुड़ी थी.
यहां तक कि त्रिपुरा तक इसकी आंच जा पहुंची थी. बढ़ते तनाव को देखते हुए मई, 1947 में गांधी जी ने एचएस सुहरावर्दी, शरत चंद्र बोस व श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं के साथ बैठक की थी. 9 अगस्त 1947 को गांधी जी दंंगाग्रस्त शहर का दौरा करने व नोदाखाली जाने के ख्याल से सोदपुुुर पहुंचे थे. लेकिन सुहरावर्दी के आग्रह पर वे कलकत्ता में ही रुकेेे. यह वही हैदरी मंजिल था, जहां गांधी जी ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी का लम्हा महसूस किया था. उस समय बेलियाघाटा के इस इलाके को मुस्लिम बाहुल्य होने की वजह से मियांबागान के नाम से जाना जाता था. हैदरी मंजिल में गांधी जी 13 अगस्त 1947 को पहुंचे थे.

जहां उन्हें हिंदुओं के विरोध का सामना करना पड़ा था. लोगों ने गो बैक गांधी के नारे लगाये थे. 14 अगस्त 1947 को गांधी जी ने मारवाड़ी क्लब में कहा था कि ‘टूमोरो वी विल वी फ्री फ्राम द स्लेवरी ऑफ ब्रिटिश राज, बट फ्राम मिड नाइट इंडिया विल वी कट इनटू टू पार्ट’ और दूसरे ही दिन भारत का विभाजन हाेे चुका था. उस दिन गांधी जी ने उपवास व प्रार्थना के साथ अपना दिन व्यतीत किया था. 24 तारीख को कलकत्ता में यह खबर आग की तरह फैल गयी थी कि गांधी जी की गोली मार कर हत्या कर दी गयी है.

उसी दिन गृहमंत्री भी उनसे मिलने हैदरी मंजिल पहुंचे थे. गांधी जी ने उनसे कहा था कि ‘हाउ फार्चुनेट वुड आइ कनसीडर माइसेेेल्फ टू बी इफ समवन वेयर टू शूट मी.’ उल्लेखनीय है कि बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु भी उन दिनों गांधी जी से लगातार मुलाकात करनेवालों में शामिल थे. हैदरी मंजिल तो मानो जैसे तीर्थस्थल बन गया था. फिर से 31 अगस्त 1947 को दंगा भड़क चुका था, मुस्लिम बहुल समुदाय की एक सभा काेे संबोधित करने के दौरान लोगों ने गांधी जी पर लाठी डंडे से हमला कर विरोध जाहिर किया था.

उसके बाद 01 सितंबर की सुबह 8 बजकर 15 मिनट से गांधी जी ने शांति वापस लौटाने की अपील के साथ आमरण अनशन आरंभ किया. तत्कालीन बंगाल के गर्वनर सी राजगोपालाचारी ने उनसे अनशन तोड़ने का आग्रह भी किया था. लेकिन गांधी जी नहीं माने. अंत में 73 घंंटे के अनशन के बाद दंगाइयों ने गांधी जी के सामने अपने हथियार डाल दिये और उनसे क्षमा मांगी. उसके बाद 07 सितंबर तक गांधी जी हैदरी मंजिल में रहने के बाद दिल्ली रवाना हो गये.

2 अक्तूबर 1985 काेे बंगाल की वाममोर्चा सरकार ने जीर्ण-शीर्ण पड़े इस इमारत के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया और इसका नामकरण गांधी भवन के रूप में किया गया. दंगाग्रस्त बंगाल की कई दुर्लभ तस्वीरें यहां हैं, जिसे शांति निकेतन के छात्राेें ने उस समय बनाया था. इसके अलावा उस समय के समाचार पत्र की कतरनें भी यहां संरक्षित हैं. इसके अलावा एक कमरे में गांधी जी द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले तकिये, लाठी, चप्पल, लैंप व अन्य सामान मौजूद हैं. यहां नाेेेदाखाली की रहनेवाली कमरुनिशां नामक एक लड़की को गांधी जी ने हिंदू मुस्लिम एकता के लिए जो पत्र लिखा था वह भी संरक्षित है.

इस इमारत के रखरखाव का जिम्मा पूर्व कलिकाता गांधी स्मारक समिति व पूर्व कलिकाता बापू जी समिति का है, जो राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग के साथ मिलकर करती है. समिति की ओर से 2 अक्तूबर व अन्य मौकों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं. गांधी भवन के क्यूरेटर के रूप मेंं वर्तमान में दिलीप दे हैं, जिनपर इस ऐतिहासिक इमारत की देखभाल की महती जिम्मेवारी है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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