शिवशंकर ठाकुर, आसनसोल.
संयुक्त प्रवेश परीक्षा(जेइइ)-उन्नत के लड़कियों के वर्ग में नेशनल टॉप करनेवाली बर्दवान के कटवा बेटी देवदत्ता माझी ने बताया कि वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आइआइएससी) बेंगलुरू में बीटेक में दाखिला लेगी और मैथ्स व कप्यूटिंग की पढ़ाई करेगी. पढ़ाई लिखाई करके वह नौकरी नहीं करना चाहती है, बल्कि खुद को ऐसा बनाना चाहती है कि दूसरों को नौकरी व रोजगार दे सके. इसी लक्ष्य को लेकर वह अपनी आगे की पढ़ाई करेगी. देश की सबसे प्रतिष्ठित संघ लोकसेवा आयोग(यूपीएससी) की प्रतिस्पर्धी परीक्षा में भी बैठना चाहती है और उसे उत्तीर्ण करके अपने आप को साबित करने के लिए भी खुद को तैयार कर रही है. नतीजे आने के बाद प्रभात खबर के साथ विशेष बातचीत में कहा कि उनकी मां शेली दां ही उसकी गुरु व गाइड रही हैं. मां के दिशानिर्देश में ही उसने अपनी सारी तैयारी की है. जिसका परिणाम माध्यमिक से मिलना शुरू हुआ और जेइइ तक दिखा है. आगे भी इस कड़ी को बरकरार रखने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी.पूर्व बर्दवान जिला के कटवा दुर्गादासी चौधुरानी उच्च बालिका विद्यालय में फिजिक्स विषय की (पोस्ट ग्रेजुएट) शिक्षिका शेली दां और बीबी कॉलेज आसनसोल में फिजिक्स विषय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. जयंत कुमार माजी की एकमात्र पुत्री देबदत्ता माजी ने बचपन से ही होनहार रही है. बचपन से ही उसकी मां ही उसकी सबकुछ रही है. देबदत्ता का जन्म आसनसोल में हुआ. डॉ. माजी बीबी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर थे और उनकी पत्नी शेली कटवा डीडीसी उच्च बालिका विद्यालय में शिक्षिका थी.श्रीमती शेली ने बताया कि देबदत्ता के जन्म के बाद डेढ़ साल तक वह छुट्टी लेकर आसनसोल में ही रही, उसके बाद उसे अपने साथ कटवा लेकर चली गयी. कक्षा चार तक कटवा के एक निजी स्कूल में उसकी पढ़ाई हुई. उसके बाद उसका दाखिला डीडीसी उच्च बालिका विद्यालय में कर दिया गया. अबतक वह यहीं पढ़ी.15 घंटे रहती थी किताबों के बीच, फिजिक्स, मैथ्स, केमिस्ट्री का नहीं लिया ट्यूशन
श्रीमती शेली ने बताया कि देवदत्ता बचपन से ही पढ़ाकू रही है. जेइइ के लिए वह 15 घंटा तक किताबों के साथ जुड़ी रहती है. सुबह नौ बजे से रात के साढ़े ग्यारह बजे तक वह पढ़ाई करती थी. उसे सिर्फ बांग्ला और अंग्रेजी के लिए ट्यूशन दिया गया था. फिजिक्स, केमेस्ट्री और मैथ का कोई ट्यूशन नहीं था. जेइइ की तैयारी को लेकर दिल्ली की एक निजी संस्था से सप्ताह में दो दिन शनिवार और रविवार ऑनलाइन क्लास करती थी. शिक्षकों के बताने के बाद जबतक वह खुद किताबों से पढ़कर पूरी तरह समझ नहीं लेती वह किताबों में ही पड़ी रहती थी. स्कूल में प्रैक्टिकल की क्लास करने जाती थी. बाकी उसकी पूरी तैयारी घर पर चलती थी. उसे कौन सा किताब पढ़ना है, यह खुद शेली तय करती थी. जिसपर बिना सवाल के वह अमल करती रही. जिसका परिणाम उन्हें मिला. लड़की होने के बाद भी मेडिकल में जाने के बजाय इस रास्ते में आने को लेकर देबदत्ता ने कहा कि बचपन से ही उसकी रूची रिसर्च में रही है. जिसके कारण ही जेइइ की तैयारी की. अपनी बेटी को उंचाई तक पहुंचाने में शेली की भूमिका सर्वोपरि रही है. इसके लिए उनकी कुर्बानियों को लंबी कहानी है, जिसके कहते हुए उनकी आंखें नम हो गयी. अकेले ही अपनी बेटी की पूरी देखभाल की, जिसके कारण वह खुद आगे नहीं बढ़ सकी. जिसका उन्हें कोई दुःख नहीं है. वह अपनी बेटी के जरिये खुद के सारे अरमानों को पूरा होता देखना चाहती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है