बचपन के छूटे सपने को पूरा करने के लिए भारती देवी का संघर्ष और समर्पण
प्रणव कुमार बैरागी, बांकुड़ा
बांकुड़ा के छातना स्थित दुमदुमी की एक आदिवासी गृहिणी भारती मुदी लड़कियों को फुटबॉल में सफल बनाने की पहल कर रही हैं. वह पूरी तरह मुफ्त प्रशिक्षण देती हैं और साड़ी पहनकर, सामाजिक नियमों का पालन करते हुए मैदान में लड़कियों को तैयार करती हैं.बचपन का सपना और आज की प्रेरणा
भारती देवी बताती हैं कि उनका सपना फुटबॉलर बनने का था, लेकिन लड़की होने के कारण उन्हें न तो मौका मिला और न ही प्रोत्साहन. उनका यह सपना अधूरा रह गया. अब वे आदिवासी लड़कियों को फुटबॉल सिखाकर अपने सपने को उन बच्चों के माध्यम से पूरा करने की कोशिश कर रही हैं. उन्होंने ट्रेनिंग में अपनी बेटी को भी शामिल किया था, जो आज एक सफल रेफरी है. उनके मार्गदर्शन में एक दर्जन से अधिक लड़कियां स्टेट लेवल पर खेल चुकी हैं और कई को नौकरी भी मिल चुकी है.लड़कियों का संघर्ष और सफलता
मैदान में फुटबॉल खेल रही कम उम्र की लड़कियों ने कहा कि वे लंबे समय से प्रैक्टिस कर रही हैं. शुरुआत में घर की वजह से रुकावटें आईं, लेकिन अब उन्हें पूरा समर्थन और सम्मान मिल रहा है. वे राज्य के अलग-अलग हिस्सों में फुटबॉल खेल चुकी हैं.सामाजिक चुनौतियाँ और मजबूती से आगे बढ़ता कदम
भारती देवी को अफसोस है कि लड़कियों के लिए फुटबॉल खेलने में अभी भी हिचकिचाहट और रुकावटें हैं. अधिकतर आदिवासी लड़कियों की शादी कम उम्र में कर दी जाती है, जिससे उनके खेल का सफर रुक जाता है. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. शुरुआत में कम प्रतिक्रिया मिली, फिर भी वे लगातार मुफ्त प्रशिक्षण देती रहीं. उनका प्रयास आज भी जारी है और वे उम्मीद करती हैं कि समाज के लोग उनके इस पहल में आगे आयेंगे.
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