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सुंदरवन में पेड़ों की कार्बन डाई ऑक्साइड सोखने की क्षमता हो रही है

मुश्ताक खान- कोलकाता: बहुत बड़े क्षेत्र में फैले सुंदरवन में गरान ( मैनग्रोव ) के पेड़ों की ग्रीन हाउस गैसों में प्रमुख कार्बनडाई आक्साइड को वातावरण से सोखने की क्षमता तेजी से घट रही है. ऐसा पानी के खारेपन, तेजी से हो रही वनों की कटाई तथा प्रदूषण के चलते हो रहा है. एक अध्ययन […]

मुश्ताक खान-

कोलकाता: बहुत बड़े क्षेत्र में फैले सुंदरवन में गरान ( मैनग्रोव ) के पेड़ों की ग्रीन हाउस गैसों में प्रमुख कार्बनडाई आक्साइड को वातावरण से सोखने की क्षमता तेजी से घट रही है. ऐसा पानी के खारेपन, तेजी से हो रही वनों की कटाई तथा प्रदूषण के चलते हो रहा है. एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि विश्व के सबसे बड़े डेल्टा में गरान के वन, दलदल की घास, फाइटोप्लैंकटंस, मोल्यूसकस तथा अन्य तटीय वनस्पति प्राकृतिक तौर पर कार्बन डाई आक्साइड को सोखते हैं.

पेड़ों में जमा कार्बन को ब्लू कार्बन के तौर पर जाना जाता है. कार्बनडाई आक्साइड सोखना एक प्रक्रिया है, जिससे पृथ्वी की गरमी और जलवायु परिवर्तन के अन्य दुष्परिणामों में कमी आती है. ब्लू कार्बन इस्टीमेशन इन कोस्टल जोन ऑफ ईस्टर्न इंडिया सुंदरवन नामक एक रिपोर्ट में यह सच्चई सामने आयी है, जिसका वित्तीय मदद केंद्र सरकार ने किया था एवं रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम का नेतृत्व जाने माने समुद्र विज्ञानी अभिजीत मित्र ने किया. इस रिपोर्ट को तैयार होने में तीन वर्ष का समय लगा और इसे पिछले वर्ष सरकार को सौंपा गया था.

इस अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों ने खतरे की घंटी बजा दी है. वैज्ञानिकों के दल में शामिल वरिष्ठ समुद्री विज्ञानी सूफिया जमां ने बताया कि स्थिति बहुत चिंताजनक है. विशेष तौर पर सुंदरवन के मैनग्रोव के मध्य हिस्से में. जहां विशेष तौर पर बाइन प्रजाति के पेड़ों की कार्बन डाई आक्साइड सोखने की क्षमता काफी हद तक कम हुई है. इससे पूरे क्षेत्र के पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ेगा. श्री मित्र ने कहा कि माटला के पास सुंदरवन के मध्य हिस्से में बाइन पेड़ों की कार्बन डाई आक्साइड सोखने की क्षमता 22 टन प्रति हेक्टेयर थी जबकि पूर्वी हिस्से में स्थिति थोड़ी अलग है, जहां बाइन पेड़ों की कार्बन डाई आक्साइड सोखने की क्षमता 35 टन प्रति हेक्टेयर है.

उन्होंने कहा कि स्थिति खतरे वाली है क्योंकि वातावरण से कम मात्र में कार्बन डाई आक्साइड सोखने का मतलब है कि वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड की मात्र बढ़ने से गर्मी बढ़ती है. उन्होंने कहा कि इसके पीछे मुख्य कारणों में माटला नदी में खारेपन का बढ़ना है. श्री मित्र ने कहा कि गरान के पेड़ मीठे पानी में बढ़ते हैं लेकिन इसकी कमी के चलते इन पेड़ों की उंचाई काफी कम हो गई है जिससे कार्बन डाई आक्साइड सोखने की क्षमता भी घट गयी है.

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