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वक्फ जमीन पर कब्जा, मृत महिला की पावर ऑफ अटॉर्नी से सौदेबाजी!

Kanpur News: वकील अखिलेश दुबे पर वक्फ बोर्ड की 150 करोड़ की जमीन फर्जी दस्तावेजों से हड़पने का आरोप है. जांच में मृत महिला की पावर ऑफ अटॉर्नी से सौदा करने, गेस्ट हाउस और दुकानों का संचालन करने का खुलासा हुआ है. प्रशासन जांच रिपोर्ट के बावजूद कार्रवाई से बच रहा है.

Kanpur News: कानपुर के चर्चित अधिवक्ता अखिलेश दुबे एक बार फिर सुर्खियों में हैं. पहले भाजपा नेता रवि सतीजा पर फर्जी मुकदमा दर्ज कराकर 50 लाख की वसूली के आरोप में गिरफ्तारी और अब वक्फ बोर्ड की बेशकीमती जमीन को अवैध रूप से कब्जाने के आरोप सामने आए हैं. यह मामला कानपुर की सबसे महंगी और संवेदनशील संपत्तियों में शामिल है.

भाजपा नेता से वसूली के आरोप में पकड़े गए वकील की नई करतूतें उजागर

कुछ समय पहले अधिवक्ता अखिलेश दुबे को भाजपा नेता से जबरन पैसे वसूलने और झूठे मुकदमे में फंसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. अब उनके खिलाफ कई भू-माफियागिरी से जुड़े मामले खुलकर सामने आ रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने कानपुर में कई संपत्तियों पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए कब्जा कर रखा है.

150 करोड़ की वक्फ संपत्ति कब्जाने का मामला सबसे गंभीर

सबसे गंभीर मामला सिविल लाइंस स्थित वक्फ बोर्ड की करीब चार हजार वर्गगज की जमीन का है, जिसकी बाजार कीमत लगभग 150 करोड़ रुपये आंकी गई है. आरोप है कि अखिलेश दुबे और उनके गिरोह ने इस जमीन को कूटरचित दस्तावेजों के जरिए अपने कब्जे में ले लिया और फिर उसे व्यवसायिक रूप से प्रयोग में भी ले लिया.

शिकायत पर बनी SIT, रिपोर्ट में खुलासा – मृत महिला के नाम से हुआ सौदा

अधिवक्ताओं सौरभ भदौरिया और आशीष शुक्ला ने पुलिस आयुक्त और जिलाधिकारी को शिकायती पत्र देकर पूरे प्रकरण की जांच की मांग की थी. इस पर प्रशासन ने ADM सिटी, KDA सचिव और ACP बाबूपुरवा की तीन सदस्यीय विशेष जांच टीम (SIT) बनाई. जांच में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि वर्ष 2016 और 2024 के बीच जिन दस्तावेजों के आधार पर जमीन हथियाई गई, उनमें मुन्नी देवी नाम की महिला की पावर ऑफ अटॉर्नी का उपयोग किया गया जबकि मुन्नी देवी का निधन वर्ष 2015 में ही हो चुका था.

2016 में कराया गया फर्जी पट्टा, भाई के नाम पर जमीन हथियाई

जांच में सामने आया कि अखिलेश दुबे ने अपने भाई सर्वेश दुबे के नाम पर 26 फरवरी 2016 को इस जमीन का पट्टा कराया, जिसकी अवधि 29 वर्ष 11 माह की थी. जबकि यह संपत्ति पहले से ही वक्फ घोषित थी और मूल पट्टेदार को वर्ष 2010 के बाद पट्टा नवीनीकरण का कोई अधिकार नहीं था. इसके बावजूद, जानबूझकर फर्जीवाड़े के जरिए भूमि पर कब्जा जमाया गया.

जमीन पर किरायेदार, गेस्ट हाउस और व्यापारिक प्रतिष्ठान भी चल रहे

उक्त जमीन को हथियाने के बाद अखिलेश दुबे ने इसका पूरी तरह से व्यावसायिक दोहन शुरू कर दिया. जमीन पर कई दुकानें, ऑफिस स्पेस और गेस्ट हाउस बनाकर किराए पर दिए गए. इससे लगातार मोटी कमाई की जा रही है. यह सब तब हुआ जब जमीन की कानूनी स्थिति विवादित और वक्फ अधिनियम के दायरे में थी.

जांच रिपोर्ट में दर्ज स्पष्ट तथ्य, फिर भी प्रशासन मौन

एसआईटी की रिपोर्ट में यह साफ-साफ दर्ज है कि संपत्ति संख्या 13/388 का रजिस्टर्ड पट्टा जिस राजकुमार शुक्ला द्वारा कराया गया, उन्हें इसका कोई वैधानिक अधिकार नहीं था. दस्तावेजों के आधार पर वक्फ बोर्ड के नियमों की अनदेखी करते हुए यह पूरी प्रक्रिया अवैध ढंग से पूरी की गई. बावजूद इसके, जिला प्रशासन ने अब तक न कोई केस दर्ज किया और न ही कब्जा हटवाने की कोई प्रक्रिया शुरू की है.

अब तक प्रशासन ने नहीं की कोई कार्रवाई, अधिकारियों की चुप्पी सवालों में

एसआईटी की रिपोर्ट मिलने के बाद भी प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता कई सवाल खड़े कर रही है. क्या रसूखदारों के दबाव में पूरा मामला दबाया जा रहा है? क्या वक्फ संपत्ति जैसे संवेदनशील विषय पर भी कार्रवाई से बचा जा रहा है? यह भी उल्लेखनीय है कि जब जिला प्रशासन से जवाब मांगा गया, तो कोई भी अधिकारी आधिकारिक रूप से कुछ कहने को तैयार नहीं हुआ.

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