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Bareilly News: ऐसे ही नाराज नहीं हैं आजम खां, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इन फैसलों से हैं खफा…

रामपुर शहर से 10वीं बार के विधायक एवं एक बार लोकसभा सदस्य चुने जाने वाले मुहम्मद आजम खां सपा के संस्थापक सदस्य हैं.मुख्यमंत्री के लिए पहली बार सबसे पहले मुख्यमंत्री के तौर पर मुलायम सिंह यादव का नाम मुहम्मद आजम खां ने ही रखा था. वह कई बार पार्टी से नाराज हुए.

Bareilly News: समाजवादी पार्टी (सपा) के कद्दावर नेता एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री मुहम्मद आजम खां पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से काफी खफा हैं. मगर यह नाराजगी ऐसे ही नहीं है. इसकी काफी वजह हैं, जो खुद बोल भी नहीं रहे हैं. मगर उनका मानना है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव की इन्हीं खामियों की वजह से सपा सत्ता में नहीं आ पाई. सपा के सत्ता में न आने का खमियाजा पूर्व कैबिनेट मंत्री के साथ ही पार्टी के नेता-कार्यकर्ता, मुस्लिम और यादवों को भुगतना पड़ रहा है.

मुस्लिम नेताओं को भी नजरअंदाज कर रहे

रामपुर शहर से 10वीं बार के विधायक एवं एक बार लोकसभा सदस्य चुने जाने वाले मुहम्मद आजम खां सपा के संस्थापक सदस्य हैं.मुख्यमंत्री के लिए पहली बार सबसे पहले मुख्यमंत्री के तौर पर मुलायम सिंह यादव का नाम मुहम्मद आजम खां ने ही रखा था. वह कई बार पार्टी से नाराज हुए. मगर उन्होंने कभी पार्टी नहीं छोड़ी. मुलायम सिंह यादव पूर्व कैबिनेट मंत्री के कद्रदान थे. वह मुस्लिमों के साथ ही पार्टी के मामलों में भी सलाह लेते थे. इसका पार्टी को फायदा भी मिलता था लेकिन सपा प्रमुख मुहम्मद आजम खां के साथ ही मुस्लिम नेताओं को भी नजरअंदाज कर रहे थे.

नहीं होता इतना नुकसान

पूर्व कैबिनेट मंत्री के एक करीबी ने दबीं जुबां से बताया कि अगर सपा प्रमुख मुहम्मद आजम खां के मामले में आंदोलन करते तो वह इतने दिन जेल में नहीं रहते. इसके साथ ही जौहर यूनिवर्सिटी को भी नुकसान नहीं होता. उनका कहना है कि सपा प्रमुख चुनाव से पहले ही मुसलमानों को नजरअंदाज कर रहे थे. वह सपा के पीलीभीत शहर से छह बार के विधायक एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री रियाज अहमद और उनकी पुत्री पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रुकैया की मौत के बाद उनके घर दो साल बाद तक नहीं गए. उनके बेटे डॉ. शाने अली को टिकट भी नहीं दिया.

मजबूत प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिया

इसके साथ ही टोपी-दाढ़ी वाले मुसलमानों के साथ ही आर्थिक रूप से मजबूत यादवों से परहेज करते थे. इसके चलते पूर्व कैबिनेट मंत्री ने उन्हें मुसलमानों और यादवों से परहेज ना करने की सलाह दी थी. मगर उन्होंने नहीं मानी. इससे बड़ी संख्या में यादव वोट नाराज होने लगा था लेकिन मुसलमानों ने भाजपा को रोकने के चक्कर सपा के पक्ष में वोटिंग की थी. पूर्व कैबिनेट मंत्री ने विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर समय-समय पर सुझाव भेजे थे.मगर, इन सुझाव को भी सपा प्रमुख ने नजरअंदाज कर दिया था. टिकट वितरण के दौरान उनके करीबी मजबूत प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिया था. इससे भी काफी तकलीफ दी थी.

मुसलमानों को कम दिएं टिकट

सपा ने यूपी विधानसभा चुनाव 2012 और 2017 में 100 से अधिक मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिए थे. इनमें बड़ी संख्या में जीते भी थे. मगर इस बार सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने करीब 70 टिकट दिए थे. इसमें करीब 35 विधायक बने थे.सियासत के जानकारों का मानना है कि अगर सपा मुस्लिम और ओबीसी (पिछड़ा वर्ग) को और टिकट देते, तो विधायको की संख्या में इजाफा होता. इससे सरकार बनना तय थी.

संघ ने लोगों को भेजकर कराया गुमराह

पुराने सपाईयों का मानना है कि विधानसभा चुनाव के दौरान सपा प्रमुख को संघ ने अपने लोगों को भेजकर गुमराह कर दिया था.चुनावी एजेंडा बनाने से लेकर टिकट वितरण तक में सपा प्रमुख ने पार्टी के पुराने और अनुभवी नेताओं से कोई राय नहीं ली.उनको टिकट तक काफी मशक्कत के बाद सबसे अंत में दिया.इसके साथ रिपोर्ट : मुहम्मद साजिद

रिपोर्ट : मुहम्‍मद साज‍िद

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