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Scrub Typhus: यूपी में रहस्यमयी बुखार से जा रही है लोगों की जान, जानें क्या है ये बीमारी और इसका इलाज

यूपी में इन-दिनों स्क्रब टाइफस के मामले लगातार सामने आ रहे है. पिस्सुओं के काटने से होने वाली इस बीमारी में डेंगू की तरह प्लेटलेट्स की संख्या घटने लगती है. यह खुद तो संक्रामक नहीं, लेकिन इसकी वजह से शरीर के कई अंगों में संक्रमण फैलने लगता है.

उत्तर प्रदेश में एक रहस्यमयी बीमारी ने कोहराम मचा रखा है. अब तक यूपी में कई बच्चों की इस बीमारी के चलते कई मौतें हो चुकी है. ऐसे में जब मरीजों के नमूनों की जांच की गई तो इस बीमारी की पुष्टि स्क्रब टाइफस (Scrub Typhus) के रूप में हुई है. कोरोना के बीच स्क्रब टाइफस की एंट्री के बाद से स्वास्थ्य विभाग अलर्ट हो गया है. आइये जानते है कि आखिर क्या है, इस बीमारी के लक्ष्ण, कैसे फैलता है, इसका इलाज क्या है.

कैसे फैलता है स्क्रब टाइफ्स

रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (CDC) के मुताबिक, स्क्रब टाइफ्स ( Scrub Typhus) को शर्ब टाइफ्स भी कहते हैं. यह ओरिएंटिया त्सुत्सुगामुशी (Orientia Tsutsugamushi) नाम के बैक्टीरिया से होता था. ये बैक्टीरिया लोगों में तब फैलता है जब उनको इससे संक्रमित चिगर्स (लार्वा माइट्स) काट ले. यह बीमारी काफी ज्यादा खतरनाक होती है, क्योंकि अगर समय पर इसका इलाज न किया जाए तो संक्रमितों की जान भी जा सकती है

इन्हें ज्यादा खतरा

पहाड़ी इलाके, जंगल और खेतों के आस-पास ये स्क्रब टाइफ्स ज्यादा पाए जाते हैं. शहरों में भी बारिश के मौसम में जंगली पौधे या घने घास के पास इस स्क्रब टाइफ्स के काटने का खतरा रहता है. ऐसे में आसपास सफाई रखनी बहुत जरूरी होती है.

क्या हैं स्क्रब टाइफ्स के लक्षण

स्क्रब टाइफ्स में लक्षण चिगर्स (लार्वा माइट्स) के काटने के 10 दिनों के अंदर दिखने लगते हैं. तेज बुखार (102-103 डिग्री फारेनहाइट), नाक बहना, सिर दर्द, शरीर और मांसपेशियों में दर्द, चिड़चिड़ा होना, शरीर पर चकते पड़ना इसके लक्षण हैं. इसके काटने वाली जगह पर फफोलेनुमा काली पपड़ी जैसा निशान दिखता है. सका समय रहते इलाज न हो तो रोग गंभीर होकर निमोनिया का रूप ले सकता है

ऐसे करें इलाज

स्क्रब टाइफ्स की ओर से काटने के निशान को देखकर रोग की पहचान होती है. ब्लड टेस्ट के जरिए सीबीसी काउंट और लिवर फंक्शनिंग टेस्ट करते हैं. एलाइजा टेस्ट और इम्युनोफ्लोरेसेंस टेस्ट से स्क्रब टाइफस एंटीबॉडीज का पता लगाते हैं. इसके लिए 7-14 दिनों तक दवाओं का कोर्स चलता है. बीमारी की गंभीरता के हिसाब से एंटीबायोटिक दवाओं का डोज तय किया जाता है. इस दौरान मरीज कम तला-भुना और लिक्विड डाइट लें. कमजोर इम्युनिटी या जिन लोगों के घर के आसपास यह बीमारी फैली हुई है, उन्हें डॉक्टर हफ्ते में एक बार प्रिवेंटिव दवा भी देते हैं.

Posted By Ashish Lata

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