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धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों का शामिल नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण : शिवपाल

लखनऊ : केंद्र द्वारा जारी गणतंत्र दिवस के विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना में ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ और ‘‘समाजवादी’’ शब्दों को शामिल नहीं किये जाने को समाजवादी पार्टी ने दु:खद और दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि इससे न केवल देश, बल्कि पूरे विश्व में गलत संदेश जायेगा. समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं कैबिनेट मंत्री शिवपाल […]

लखनऊ : केंद्र द्वारा जारी गणतंत्र दिवस के विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना में ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ और ‘‘समाजवादी’’ शब्दों को शामिल नहीं किये जाने को समाजवादी पार्टी ने दु:खद और दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि इससे न केवल देश, बल्कि पूरे विश्व में गलत संदेश जायेगा.
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने आज यहां पत्रकारों से कहा कि भारत की संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द हटाना दु:खद और दुर्भाग्यपूर्ण है.
उन्होंने कहा कि यह महज इत्तफाक नहीं है कि केंद्र सरकार ने विज्ञापन में इन शब्दों को गायब कर दिया, जबकि वास्तविकता यह है कि शिवसेना इन शब्दों को स्थायी रूप से हटाये जाने की मांग कर रही है.
यादव ने कहा, ‘‘धर्मनिरपेक्ष’’ और ‘‘समाजवादी’’ शब्दों को हटाया जाना भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान है, जिन्होंने भारत को समाजवादी देश बनाने का सपना देखा था. ’’ उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हरिपुरा अधिवेशन में समाजवाद की पैरवी की थी, चंद्रशेखर आजाद ने बाकायदा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट आर्मी का गठन किया था. नेहरू जी एवं बाबा साहब अंबेडकर ने भी समाजवाद के स्वर को ऊंचा किया.
यादव ने कहा कि महात्मा गांधी और राम मनोहर लोहिया की समाजवाद एवं पंथनिरपेक्षता के प्रति आस्था सर्वविदित है, भारत का भविष्य समाजवादी व्यवस्था में ही सुरक्षित है.
गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस पर विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना की तस्वीर थी जो 42वें संविधान संशोधन से पहले थी. इसमें ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द नहीं था.
विज्ञापन पर केंद्र सरकार का बचाव करते हुए कल केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था, ‘‘ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में कुछ विचारों को रखने पर क्या आपत्ति है. प्रस्तावना जिसका विज्ञापन में इस्तेमाल किया गया वह मूल प्रस्तावना है और संविधान सभा ने इसे तैयार किया था जिसमें जवाहर लाल नेहरू, बीआर अंबेडकर और अन्य नेता थे. तब ये दोनों शब्द नहीं थे.’’ प्रसाद ने कहा, ‘‘क्या नेहरु को धर्मनिरपेक्षता की समझ नहीं थी. इन शब्दों को आपातकाल के दौरान जोड़ा गया. अगर अब इस पर चर्चा हो रही है तो इसमें क्या नुकसान है. हमने देश के समक्ष मूल प्रस्तावना को रखा है.’’

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