(नोट : इस खबर की सामग्री सारांडा दौरे से लौटे प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी जीवेश रंजन सिंह नेउपलब्ध करवायी है.)
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केसिनो-WWF जैसा है झारखंड में मुर्गा लड़ाई का खेल, लगता है लाखों का दाव, मुर्गे भी लाखों के, VIDEO
सारंडा (पश्चिम सिंहभूम) : मानव मन अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न गतिविधियों को अंजाम देते रहता है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न खेलों का ईजाद किया गया है. स्पेन में मनुष्य और सांड का युद्ध प्रसिद्ध है, तामिलनाडु में जलीकट्टू जैसे खेल का आयोजन होता रहा है. मनुष्य के साहस, वीरता और बुद्धिमता को […]
सारंडा (पश्चिम सिंहभूम) : मानव मन अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न गतिविधियों को अंजाम देते रहता है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न खेलों का ईजाद किया गया है. स्पेन में मनुष्य और सांड का युद्ध प्रसिद्ध है, तामिलनाडु में जलीकट्टू जैसे खेल का आयोजन होता रहा है. मनुष्य के साहस, वीरता और बुद्धिमता को मापने का पैमाना यह खेल हुआ करते थे. इन खेलों ने मानव के अंदर सामूहिकता का जन्म दिया है, लेकिन बाद के दिनों में ऐसे कई खेल जुए व आनन-फानन में पैसे कमाने का माध्यम बन गये.झारखंड में ऐसा ही एक खेल ‘मुर्गा लड़ाई’ का है, जो संभव है कि कभी स्वस्थ परंपरा के तहत प्रचलन में आया हो, लेकिन आज वह पैसा कमाने का माध्यम बन गया है. इसकी तुलना आप केसिनो व डब्ल्यूडब्ल्यूएफ से कर सकते हैं. जैसे डब्ल्यूडब्ल्यूएफ में दुनिया के बड़े पैसे वाले अपने फाइटर के साथ शामिल होते हैं, वैसे ही झारखंड के कुछ क्षेत्र में मुर्गा लड़ाई के खेल में स्थानीय प्रभावशाली लोग व स्थानीय नेता शामिल होते हैं. यहां के कुछ जनप्रतिनिधि भी इसमें हिस्सा लेते हैं.
हम पश्चिम सिंहभूम के आपको सारंडा के एक वीडियो का दृश्य उपलब्ध करवा रहे हैं. एक टेंट के अंदर लोगों की भीड़ जुटी हुई है. वहां मुर्गा लड़ाई का खेल कुछ ही देर में शुरू होने वाला है. टेंट के अंदर मौजूद दर्शकों में कौतुहल और रोमांच का माहौल है. तभी आप देखते हैं कि दो युवक टेंट में प्रवेश करते हैं. दोनों के हाथ में मुर्गा है. यह इलाके का लोकप्रिय खेल ‘मुर्गा लड़ाई’ है. यह लड़ाई तब तक जारी रहेगी. जबतक कोई मुर्गा घायल या फिर मर नहीं जाता है. मुर्गा लड़ाई का खेल सालों से इस इलाके के मनोरंजन का हिस्सा रहा है लेकिन अब इसका स्वरूप बदल रहा है.
झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में मुर्गा लड़ाई की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. पहले यह मुर्गा लड़ाई मनोरंजन का साधन हुआ करती थी लेकिन बदलते वक्त के साथ इसका स्वरूप बिगड़ गया और अब लोग मुर्गो पर दांव लगाना शुरू कर दिये हैं. अब इस लड़ाई के नाम पर जुआ शुरू हो गया है, जो वीडियो आप देख रहे हैं, उसमें दिख रहे मुर्गे की कीमत डेढ़ लाख रुपये है.
कैसे होती है मुर्गे की लड़ाई
मुर्गा लड़ाई के लिए पहले मुर्गे को प्रशिक्षित किया जाता है. लड़ने के लिए तैयार मुर्गे के एक पैर में ‘यू’ आकार का एक हथियार बंधा हुआ होता है जिसे ‘कत्थी’ कहा जाता है. झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में आज भी मुर्गा लड़ाई का रिवाज कायम है. जब दो मुर्गा लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं तो वहां उपस्थित दर्शक मनपसंद मुर्गे पर सट्टा लगाते हैं. धीरे-धीरे मुर्गा लड़ाई सट्टा या जुए के रूप ले रही है.
कैसे होती है तैयारी
मुर्गा लड़ाई के लिए मुर्गाबाज मुर्गा को तैयार करने के लिए विशेष मुर्गा पर दांव लगाते हैं. मुर्गा को पौष्टिक खाना दिया जाता है. कई बार मुर्गे को मांस भी खिलाया जाता है. मुर्गा को आक्रमक बनाने के लिए कई तरह के उपाय किये जाते हैं.
(नोट : इस खबर की सामग्री सारांडा दौरे से लौटे प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी जीवेश रंजन सिंह नेउपलब्ध करवायी है.)
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