खरसावां.
कुचाई प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय कोर्रा आज भी अपने स्वयं के स्कूल भवन से वंचित है. गांव के लोगों द्वारा बांस, मिट्टी और प्लास्टिक के तिरपाल से बनायी गयी एक छोटी सी झोपड़ी में बच्चों की पढ़ाई किसी तरह संचालित हो रही है. हालांकि, करीब एक वर्ष पूर्व 24.53 लाख रुपये की लागत से स्कूल भवन निर्माण की स्वीकृति मिल चुकी है और निविदा प्रक्रिया भी पूरी कर ली गयी. लेकिन अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है. इसके कारण बच्चे हर मौसम में भारी परेशानियों का सामना कर रहे हैं.शौचालय, चापाकल, बिजली कुछ भी नहीं
स्कूल परिसर में शौचालय और चापाकल जैसी जरूरी सुविधाएं भी नहीं हैं. बच्चे पहाड़ के नीचे खोदे गये गड्ढे (चुआं) का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाने को विवश हैं. मोबाइल नेटवर्क नहीं रहने के कारण शिक्षकों को रोजाना ऑफलाइन उपस्थिति बनानी पड़ती है. बुनियादी सुविधाओं के अभाव का यह उदाहरण आज भी सरकारी शिक्षा प्रणाली की उपेक्षा को उजागर करता है.तीन किमी पगडंडी पर चलकर पहुंचते हैं कोर्रा
कुचाई प्रखंड मुख्यालय से कोर्रा की दूरी लगभग 34 किलोमीटर है. बढ़ानी से चलनटिकुरा चौक तक पक्की सड़क मौजूद है, लेकिन यहां से कोर्रा तक का रास्ता करीब 3 किलोमीटर लंबी पगडंडी है, जो जंगलों से होकर गुजरती है. यहां तक केवल पैदल या दोपहिया वाहनों से ही पहुंचा जा सकता है. जलजमाव की समस्या दूर करने के लिए कुछ आरसीसी पुलियाएं बनायी जा रही हैं, जबकि पक्की सड़क के लिए प्रस्ताव सरकार के पास भेजा गया है.कोर्रा, कुचाई के रोलाहातु पंचायत की अंतिम सीमा पर स्थित एक दुर्गम पहाड़ी गांव है. कुछ ही दूरी पर खूंटी जिले के अड़की प्रखंड की सीमा प्रारंभ हो जाती है. घने पहाड़ों की तलहटी में बसे इस गांव में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है.
संसाधनों की भारी कमी, लेकिन हिम्मत नहीं हारे कोर्रा के बच्चे
कठिन परिस्थितियों के बावजूद कोर्रा के बच्चे उज्ज्वल भविष्य के सपने संजोये नियमित रूप से स्कूल पहुंचते हैं. सरकारी भवन के अभाव में विद्यालय ग्रामीणों के निजी घरों में संचालित होता है. उत्क्रमित मध्य विद्यालय कोर्रा में कक्षा 1 से 8 तक शिक्षा दी जाती है. यहां 41 बच्चों को पढ़ाने के लिए केवल एक सरकारी शिक्षक और एक पारा शिक्षक की तैनाती है. इन्हीं दो शिक्षकों के भरोसे पूरे विद्यालय का संचालन होता है. कक्षा 6 से 8 में 12 छात्र नामांकित हैं, लेकिन नियमित रूप से केवल चार-पांच ही बच्चे पहुंच पाते हैं. वहीं कक्षा 1 से 5 के छात्रों की उपस्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रहती है.
झारखंड गठन के पहले से जारी है विद्यालय का संचालन
कोर्रा में विद्यालय का संचालन बिहार सरकार के समय से होता आ रहा है. पहले यह केवल प्राथमिक विद्यालय था. सत्र 2013 में इसे उत्क्रमित कर मध्य विद्यालय का दर्जा दिया गया. माध्यमिक शिक्षा के लिए यहां के बच्चों को गांव से दूर दलभंगा, झरझरा (चक्रधरपुर) या खूंटी में रहकर पढ़ाई जारी रखनी पड़ती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

