Sido Kanhu : साहिबगंज के भोगनाडीह में आज (11 अप्रैल) सिदो-कान्हू की जयंती मनायी जा रही है. झारखंड के इन वीर सपूतों का जन्म 11 अप्रैल 1815 को भोगनाडीह में हुआ था. इस मौके पर आज राज्य में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा है. हूल विद्रोह के नायक सिदो-कान्हू के साहस और हिम्मत की कहानी आज इतिहास के पन्नों में दर्ज है. लेकिन उनसे जुड़ी कुछ बातें जिनके बारे में झारखंड की आधी आबादी को नहीं पता. ये किस्सा उनके वंशजों से जुड़ा हुआ है.
केवल बड़े भाई सिदो की ही हुई थी शादी
जानकारी के अनुसार सिदो-कान्हू के वंशजों के पास जो वंशावली है, उसके मुताबिक दोनों भाईयों में केवल बड़े भाई सिदो की ही शादी हुई थी. उनके बच्चे ही आज सिदो-कान्हू के वंशज को आगे बढ़ा रहें हैं. इस वक्त भोगनाडीह में सिदो-कान्हू के परिवार की छठी पीढ़ी रह रही है.
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सिदो-कान्हू के वंशज में 6 लोगों को मिली सरकारी नौकरी
वर्ष 2023 के आकड़ों के मुताबिक सिदो-कान्हू के वंशज या खानदान में कुल 80 लोग हैं. इनमें से 6 को राज्य सरकार की ओर से सरकारी नौकरी भी दी गयी हैं. अब तक झारखंड सरकार ने इन स्वतंत्रता सेनानी के वंशजों को कई सुविधाएं दी हैं. इनको रहने के लिए एक बढ़िया सरकारी आवास भी बनाकर दिया गया है.
सिदो-कान्हू की पौत्रवधू बिटिया हेम्ब्रम
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सिदो-कान्हू के वंशजों में सबसे बुजुर्ग एक महिला है, जिनका नाम बिटिया हेंब्रम है. बिटिया हेम्ब्रम बताती हैं कि सिदो-कान्हू उनके दादा ससुर लगते थे. उन्होंने कहा कि वे सिदो-कान्हू के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानती. उनके पति होपना मुर्मू ने उन्हें बताया था कि उनके दादा सिदो-कान्हू ने अंग्रेजों और महाजनों के खिलाफ आंदोलन किया था. हालांकि अब इस वृद्ध की मौत हो चुकी है.
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