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तीन से आठ हजार रुपये एकड़ बिक रहा पहाड़

पैसे के िलए दौड़ाते हैं दबंग, देते हैं जेल भेजने की धमकी साहेबगंज से लौट कर जीवेश jivesh.singh@prabhatkhabar.in साहेबगंज जिले में महज तीन से आठ हजार रुपये में एक एकड़ पहाड़ लीज पर उपलब्ध है. यह पैसे भी एक साथ नहीं देने पर कोई पूछनेवाला भी नहीं. इस कारण साहेबगंज जिले के अधिकतर पहाड़ बदसूरत […]

पैसे के िलए दौड़ाते हैं दबंग, देते हैं जेल भेजने की धमकी
साहेबगंज से लौट कर जीवेश
jivesh.singh@prabhatkhabar.in
साहेबगंज जिले में महज तीन से आठ हजार रुपये में एक एकड़ पहाड़ लीज पर उपलब्ध है. यह पैसे भी एक साथ नहीं देने पर कोई पूछनेवाला भी नहीं. इस कारण साहेबगंज जिले के अधिकतर पहाड़ बदसूरत हो रहे. सैकड़ों की संख्या में जेसीबी और अन्य अत्याधुनिक मशीनें व भारी संख्या में लगे वैध-अवैध क्रसर पहाड़ को चकनाचूर कर रहे. लगातार चलती अॉटोमेटिक व सेमी-अॉटोमेटिक मशीनों के कारण उड़ रहे धूल-कण से आसपास की खेती मारी जा रही.
पेड़-पौधे सूख अौर फलरहित हो रहे, तो दूसरी अोर आसपास के ग्रामीण गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं. जिले के अधिकतर पहाड़ों का मालिकाना हक अंगरेजों के जमाने से आदिम जनजाति पहाड़िया के पास है. सरकार की काेशिशों के बाद भी ये पहाड़ पर ही रहते हैं. इनमें अधिकतर के निरक्षर अौर सीधे होने का फायदा दबंगों ने बिचौलियों के माध्यम से उठाया है. नशा अौर दबाव के बल पर पहले दबंग पहाड़ की लीज करा लेते हैं. फिर शुरू होता है गरीब पहाड़िया का शोषण.
घर, पहाड़ व इज्जत गंवा चुके पहाड़िया सुधार चाहते हैं, पर यह आसान नहीं. इस कारण वे परेशान हैं. जानकारों की माने, तो आज राज्य के कई प्रभावशाली लोगों ने भी यहां लीज ले रखी है. पहाड़िया परेशान हैं, पहाड़ लीज पर नहीं देते, तो दबंगों व बिचौलियों का कहर अौर दे देते हैं, तो सब कुछ नष्ट हो जाने का खतरा. अदरो पहाड़ के प्रधान बोबे पहाड़िया कहते हैं, ‘अब तो फंस गये, कोई बचानेवाला भी नहीं.’ बेलबदरी पहाड़ के रूपा पहाड़िया कहते हैं, ‘अब तो ठगा गये, अब मरने के सिवा कोई रास्ता नहीं.’
यहां के लीजधारक इतने पावरफुल हैं कि कई अधिकारियों का तबादला माह भर में इसलिए हो गया, क्योंकि उन्होंने अवैध क्रसरों व उत्खनन पर लगाम लगाने की कोशिश की थी. हाल ही में वर्तमान एसडीअो (ट्रेनी आइएएस) मृत्युंजय वर्णवाल ने भी क्रसरों पर इस कारण रोक लगायी कि वे सभी अर्हताओं को पूरा नहीं करते, पर चंद दिन के अंदर उन्हें पीछे हटना पड़ा. भूगर्भशास्त्री डॉ रणजीत कुमार सिंह कहते हैं , साहिबगंज को दूसरा केदारनाथ बनाने में लगे हैं सब. जिले के चिकित्सक डॉ एके झा कहते हैं कि प्रदूषण के कारण यहां बीमारों की संख्या बढ़ी है. दूसरी अोर जिला प्रशासन भी इस मामले से अनजान नहीं, जिलाधिकारी उमेश प्रसाद सिंह कहते हैं कि उन्होंने पहाड़िया लोगों की स्थिति सुधारने की काफी कोशिश की है.
उनके प्रयास से ही अब लीज की राशि तीन से आठ हजार रुपये प्रति साल हुई है. हर तीन वर्ष पर लीज के नवीकरण की भी सुविधा होगी. अन्य सुविधाओं को भी दिलवाने की बात वह कहते हैं. पर हालात इससे इतर हैं. जमीन के मालिक पहाड़िया अब क्रसरों पर काम कर जी रहे. जल्द इस पर काबू नहीं पाया गया, तो वो दिन दूर नहीं जब न पहाड़ रहेंगे अौर न पहाड़िया.
बोरियो प्रखंड के लगभग सभी पहाड़ लीज पर : अकेले बोरियो प्रखंड में 50 से 60 क्रसर मशीनें चल रही हैं. यहां के पहाड़ों में करम पहाड़, घोघी पहाड़, लोहंडा माको, तुभीटोला पहाड़, अठरो संथाली पहाड़, अठरो पहाड़ (पहाड़िया), पगाड़ो, तेतरिया, अंबाडीहा, चमठी, शहरबेड़ा, मोतीझरना पहाड़ (सकरी के पास), खुजली झरना पहाड़ (लोहंडा के पास), झिगानी पहाड़ व गदवा पहाड़ के अधिकतर हिस्से लीज पर लिये जा चुके हैं.
कुछ लोगों ने अपने हिस्से लीज पर नहीं दिये हैं, पर वहां धूल के कारण वो कुछ कर भी नहीं सकते.क्यों है पहाड़ पर पहाड़िया का अधिकार : वरीय अधिवक्ता गौतम प्रसाद सिंह के अनुसार, अंगरेजों ने पहाड़ पर रहनेवाले पहाड़ियों के जीविकोपार्जन के लिए पहाड़ों की रैयती उनको दे दी थी. उसी समय से साहेबगंज की पहाड़िया जनजाति वहां के पहाड़ों के रैयत हैं. पर पहाड़ के अंदर की चीजों (खनिज, पत्थर आदि) पर सरकार का अधिकार है. इस कारण पहाड़ों की लीज पहले उसके रैयत (पहाड़िया) से लेते हैं व्यवसायी. अंदर से पत्थर निकालने के लिए सरकार से भी करार करते हैं. जानकारों के अनुसार पहाड़िया से जमीन लेने के कारण सरकार से होनेवाली लीज में घपला होते रहता है
.
कैसे ठगे जाते हैं पहाड़िया
जानकारों के अनुसार, बाहर से आये व्यवसायी पहले स्थानीय बिचौलियों को अपने से मिलाते हैं अौर फिर उनके माध्यम से वैसे पहाड़िया परिवार को चिह्नित किया जाता है, जिनकी जमीन पहाड़ पर है. बिचौलिया झूठ-सच बातें समझाते हैं. नशे का भी शिकार बना दिया जाता है सीधे-साधे पहाड़िया लोगों को.
यह भी बताते हैं कि पहाड़ पर कुछ होता नहीं, लीज पर देने से पैसे मिलेंगे. पहले किसी एक का लेने के बाद दूसरे पर दबाव बनाया जाता है. कई जगह तो जितनी जमीन लीज पर ली जाती है, उससे ज्यादा में उत्खनन किया जाता है. रोकने या कुछ कहने पर धमकी भी दी जाती है. बड़ी बात यह कि अधिकतर लोग उस व्यक्ति को नहीं जानते, जिसे उन्होंने अपनी जमीन लीज पर दी है.
कहते हैं पीड़ित
अब मरना ही होगा : रूपा
बलबदरी पहाड़ पर रूपा पहाड़िया का घर है. उनके पास पहाड़ पर 107 बिगहा, 18 कट्ठा 14 धूर जमीन है. इन्होंने झांसे में आकर लगभग 10 बिगहा जमीन माइनिंग के लिए दे दी. आज बेहाल हैं रूपा पहाड़िया. उनको एक बेटा अौर एक बेटी है. दोनों क्रसर पर मजदूरी करते हैं.
घर में पत्नी के साथ अकेले रहते हैं रूपा पहाड़िया. कहते हैं कि आठ हजार रुपये एकड़ प्रति वर्ष के हिसाब से लीज दी थी, पर पैसे एक साथ नहीं मिलते. बार-बार कहने पर कुछ-कुछ पैसे दे देते हैं लीज लेनेवाले. शेष जमीन भी बेकार हो गयी. फसल नहीं हो पाती. आम-जामुन के पेड़ भी बेकार हो गये. कहते हैं कि उनकी सुध लेनेवाला कोई नहीं. लीज लेनेवाले एक एकड़ लिखवाते हैं अौर उससे ज्यादा में उत्खनन करते हैं.
कभी अपनी खेती थी, अब दूसरे का खेत बंटाई पर बोते हैं. कहते हैं कि उनके पिता केशव पहाड़िया ने पहले 1200 रुपये प्रति वर्ष के हिसाब से लीज पर दी थी. इस वर्ष उन्होंने सात साल की लीज पर दिया है. क्यों लीज पर देते हैं, पूछने पर कहते हैं कि अब तो सब बरबाद हो गया, नहीं देंगे तो भी तो कुछ पैदा नहीं होगा. बीमार रूपा को इस बात का भी रोष है कि सरकारी अस्पताल में उन्हें दवा नहीं मिलती. कहा जाता है कि बाहर से खरीद लो. पासबुक दिखाने की बात कहने पर कहते हैं कि वो तो लीजधारक ने ही रख लिया है. अब उन्हें पता भी नहीं चलता कि कितने पैसे उनके खाते में आये.
पैसे मांगे तो जेल भेज दिया : सुकरा
रूपा पहाड़िया का बेटा है सुकरा पहाड़िया. कहता है कि पैसे नहीं देने पर जब वह शिकायत करने गया, तो उसकी नहीं सुनी गयी. इस पर उसने काम रोक दिया, तो उस पर तरह-तरह के आरोप लगा कर उसे जेल भेज दिया गया. आर्म्स एक्ट सहित कई मामले उस पर लगा कर पिता के साथ जेल भेज दिया गया. नाराज सुकरा कहता है कि अब तो पैसे मांगना भी गुनाह है.
पहाड़ देकर खुश नहीं : बोबे पहाड़िया
बोड़ियो प्रखंड की बड़ा तोफिर पंचायत का गांव है अदरो. पहाड़िया बहुल इस गांव में 33 घर हैं. यहां के 12 लोगों ने लीज पर पहाड़ दिया है. अन्य इलाकों की अपेक्षा साक्षर इस गांव को तत्कालीन उपायुक्त के रविकुमार ने गोद भी लिया था. वर्तमान उपायुक्त उमेश प्रसाद सिंह भी गांव में गये थे अौर वहां कंबल बांटा था. यहां के पहाड़िया नशा नहीं करते.
यहां के प्रधान बोबे पहाड़िया के अनुसार, पहाड़ पर खेती करने में दिक्कत होती थी. वन विभाग ने भी वर्षों पहले पौधरोपण किया था, पर कोई फायदा नहीं हुआ. फिर बिचौलियों ने समझाया अौर महज पांच हजार सालाना पर उन्होंने दो एकड़ जमीन लीज पर दे दी. किसको दी, पूछने पर कहते हैं कि किसी वकील साहब को दी है. पैसे मिलते हैं या नहीं पूछने पर कहते हैं कि काफी दिक्कत है. एक साथ पांच हजार नहीं मिलते. कभी-कभी कुछ-कुछ पैसे देकर या होली-दीवाली में दो-चार सौ रुपये देकर पांच हजार पूरे कर दिये जाते हैं.
काश लीज कैंसिल करा सकता : रामा
अदरो के ही रामा पहाड़िया ने मैट्रिक अौर आइटीआइ (इलेक्ट्रीकल) भी किया है. 11 लोगों ने इनकी 29 बिगहा जमीन लीज पर ली है. वो 12000 हजार रुपये सालाना देते हैं, पर रामा को कभी भी एकमुश्त राशि नहीं मिली. कहते हैं कि घर में कोई बीमार भी हो जाये, तो लीज लेनेवाले लोग पैसे नहीं देते. लीज लेने से पहले प्यार करते हैं अौर लेने के बाद दुत्कारते हैं.
व्यवस्था से नाराज रामा ने कहा कि वह लीज कैंसिल करना चाहते हैं, पर नहीं कर पाते. उनके पास पैसे नहीं हैं. लोन के लिए काफी कोशिश की, राष्ट्रपति तक गये, पर कुछ नहीं मिला. कहते हैं कि कोई एक लाख रुपये दे दे तो वो कुछ कर के दिखा दें. राज्य सरकार से भी खफा हैं रामा. कहते हैं कि वर्षों से पहाड़िया बटालियन के बनने की बात सुनता था, पर आज तक कुछ नहीं हुआ. कोई कुछ नहीं करेगा. गरीब को गरीब ही रहना है.
पांच हजार मुंडा परिवार परेशान
बड़ा तोफी पंचायत के पूर्व मुखिया वीर कुमार मुंडा कहते हैं कि पहाड़ की तलहटी में क्रसर लगाने के लिए तीन हजार सालाना पर जमीन लीज पर देने के बाद से वहां के पांच हजार मुंडा परिवार परेशान हैं. श्री मुंडा कहते हैं कि धूल-कण व आवाज से सब परेशान हैं. खेती मर गयी अौर बीमारी बढ़ गयी है.
कई सुविधाएं दिलायी : डीसी
जिलाधिकारी उमेश प्रसाद सिंह कहते हैं कि उन्होंने पहाड़िया लोगों के लिए काफी कुछ किया है. वह खुद उनके पास जाते हैं. लीज की राशि भी तीन हजार से बढ़ा कर आठ हजार रुपये प्रति वर्ष करायी है. यह भी व्यवस्था की है कि हर तीन वर्ष पर लीज का नवीकरण हो. इसके साथ ही रैयतों को लीजधारकों द्वारा अन्य सुविधाएं भी दिलाने की शर्त तय करायी है. वह कहते हैं कि अगर इसका कहीं उल्लंघन हो रहा है, तो कानूनी कार्रवाई होगी.
कोई नियम तो तय हो : डॉ सिंह
साहेबगंज काॅलेज के भूगर्भशास्त्र विभाग के सहायक प्रध्यापक डॉ रणजीत कुमार सिंह कहते हैं कि नियमों की धज्जी उड़ायी गयी हैं. प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ होना तय है. वैसे पहाड़ों को भी काटा जा रहा है, जिनमें सिर्फ मिट्टी है. डॉ सिंह कहते हैं कि हम सब मिल कर साहेबगंज को दूसरा केदारनाथ बना रहे हैं.
बीमारी बढ़ी है : डॉ झा
प्रदूषण के कारण बीमारों की संख्या बढ़ने की बात कहते हैं फिजिशियन डॉ एके झा. कहते हैं कि जिले में क्षय रोग, बहरापन, चिड़चिड़ापन, चर्मरोग व अन्य तरह की समस्याएं बढ़ी हैं.
क्यों यह इलाका है पहली पसंद
संताल परगना के साहेबगंज व पाकुड़ जिले का स्टोन चिप्स काफी पसंद किया जाता है. खास कर यहां के काला पत्थर की क्वालिटी काफी अच्छी है. दूसरी ओर भौगोलिक दृष्टिकोण से भी यह इलाका पसंद किया जाता है. यहां से बंगाल व बिहार की सीमा सटी हुई है. इससे वैध-अवैध माल इधर से उधर करने में आसानी होती है. इसके अलावा रेल की सुविधा है. झारखंड का उपेक्षित, गरीब व कम साक्षर जिला होने के कारण भी अवैध काम करनेवालों को यहां सुविधा होती है.
कैसे खेती योग्य जमीन हो गयी बरबाद
पहाड़ की तलहटी की जमीन उपजाऊ है. पर खनन के बाद पत्थर व मिट्टी नीचे तलहटी में ही डंप करते हैं सब. इस कारण नीचे की जमीन बंजर हो गयी. दूसरी अोर धूल के कारण भी सभी फलदार पेड़ व तलहटी से दूर के खेत भी बरबाद हो गये.
क्या है नियम
लीज व क्रशर के लिए नियमों की सूची लंबी है. सबसे पहले जमीन चिह्नित कर उसका एग्रीमेंट कर उसकी रसीद संबंधित प्रखंड के सीओ के पास आवेदन के साथ जमा करनी होती है. सीअो जमीन की प्रकृति तय (किसकी जमीन है अौर कैसी है) कर उसे डीएफओ को भेजता है. डीएफओ यह तय करता है कि उस जमीन को लीज पर देने से वन भूमि या क्षेत्र या पेड़ काे नुकसान तो नहीं होगा. इसके बाद पर्यावरण विभाग, रांची से उसे लीज पर देने की स्वीकृति मांगी जाती है. सभी जगह से एनओसी मिलने के बाद सीओ उसे जिला खनन पदाधिकारी के पास भेजता है. वहां से पास होने के बाद आवेदन डीसी के पास भेजा जाता है. इस प्रक्रिया में 70 हजार से एक लाख रुपये तक का खर्च आता है. हालांकि जानकार कहते हैं कि खर्च की राशि बढ़ा देने से सभी जांच कागजों पर ही हो जाती है.
क्या कहते हैं लीजधारक
जिला पत्थर व्यवसायी संघ के सचिव चंदेश्वर प्रसाद सिन्हा उर्फ बोदी सिन्हा के अनुसार सभी लीजधारक नियमों को पूरा करते हैं. उनके अनुसार पर्यावरण विभाग व अन्य विभागों से एनओसी के लिए काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. प्रशासन के सहयोग से काम हो रहा है .
कहते हैं जिला खनन पदाधिकारी
जिला खनन पदाधिकारी फेंकू राम के अनुसार खनन से आनेवाले राजस्व के मामले में साहेबगंज जिला आगे है. उन्होंने फोन पर बताया कि समय-समय पर अवैध क्रशर व खदान के खिलाफ छापामारी कर कार्रवाई की जाती रही है. किसी को गलत करने की इजाजत नहीं है.
(साथ में साहेबगंज से सुनील)
खरीदनेवाला मालामाल मालिक बन रहे कंगाल
बिचौलियों के हाथों लुट रहे सीधे-सादे पहाड़िया
जमीन के मालिक करते हैं क्रशर पर मजदूरी
पासबुक भी लीजधारकों ने रख लिया है
स्थानीय राजनीतिज्ञों ने भी साध रखी है चुप्पी
सरकार को भी लगा रहे चूना
267 माइनिंग व 287 लोगों ने ली क्रशर की लीज
साहेबगंज जिले में माइनिंग के लिए 267 व क्रशर के लिए 287 लोगों ने लीज लिया है. इसके अलावा अवैध रूप से भी माइनिंग करने व क्रशर चलानेवाले सैकड़ों की संख्या में हैं. मिर्जाचौकी, कोदरजन्ना, महादेवगंज, साहेबगंज, आइटीआइ पहाड़, सकरीगली, महाराजपुर, करणपुरातो, तालझारी, तीनपहाड़, बाकुड़ी, पतना, बरहड़वा, कोटालपोखर व राजमहल में अवैध रूप से सैकड़ों क्रशर चल रहे हैं. इनका लेखा-जोखा कहीं भी नहीं है.

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