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प्रवचन : ध्यान से हम भीतरी हलचलों को करते हैं नियंत्रितसक्रिय रहते हुए भी ध्यान को जेन भिक्षु इनसुयी की सुंदर उपमा द्वारा व्यक्त किया गया है. इसका अर्थ मेघजल होता है. ध्यानकर्ता मेघ जैसा हवा में तैरता तथा जल की तरह बहता है. आध्यात्मिक मार्ग में व्यक्ति अपने मन के द्वारा उड़ता है और विचारों के जंगल में विचरता है. इस प्रकार अन्तर्बाह्य यात्रा की अभिव्यक्ति दो शब्दों घूमना तथा आश्चर्य करना की जा सकती है. ध्यान के अभ्यासों द्वारा हम भीतरी हलचलों को नियंत्रित करते हैं तथा बाहरी हलचलों द्वारा चेतना को इस नियंत्रण के लिए विकसित करते हैं. उदाहरण के लिए हम यह अच्छी तरह जानते हैं कि यदि कोई कार्य थकने तक किया जाये तो वह हमें शिथिलीकरण द्वारा ध्यान की अवस्था में ले जा सकता है. यही कारण है कि दिन भर कठिन कार्य करने के बाद इसका अभ्यास करना लाभप्रद होता है, क्योंकि थकान के कारण इंद्रियां सुस्त पड़ जाती है और हम सरलतापूर्वक अपने भीतर जा सकते हैं. इंद्रियों को अनेक कार्यों से विमुख करना, कर्मकांड, जागरण, मृदंग-वादन, व्रत तथा कीर्तन आदि इंद्रियों को थकावट, निष्क्रिय करने तथा व्यक्ति को चेतना के परिवर्तित तलों पर ले जाने के साधन हैं. हम इस ग्रंथ में आगे कुछ ऐसी ही तकनीकों पर विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे.

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