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मछुआरों ने फिर किया डॉल्फिन का शिकार

राजमहल : जिले में एक बार फिर मछुआरों ने डॉल्फिन का शिकार किया है. इस बार राजमहल गंगा में मछली पकड़ने के दौरान एक डॉल्फिन मछुआरे के जाल में फंस गयी. जानकारी के अनुसार थाना क्षेत्र के कसवा गांव के समीप गंगा से डॉल्फिन निकलने पर देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ गंगा तट पर […]

राजमहल : जिले में एक बार फिर मछुआरों ने डॉल्फिन का शिकार किया है. इस बार राजमहल गंगा में मछली पकड़ने के दौरान एक डॉल्फिन मछुआरे के जाल में फंस गयी. जानकारी के अनुसार थाना क्षेत्र के कसवा गांव के समीप गंगा से डॉल्फिन निकलने पर देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ गंगा तट पर उमड़ पड़ी. मछुआरे व ग्रामीणों ने डॉल्फिन को काट कर मांस को गलने के लिए दियारा के खेत में गाड़ दिया. बताया जा रहा है कि मांस गलने के बाद उसके तेल को निकाल कर बेचा जाता है.

कार्रवाई का भी असर नहीं : सात जनवरी को राधानगर थाना क्षेत्र के उधवा नाला बेगमगंज हाटपाड़ा के निकट मछली पकड़ने के दौरान डॉल्फिन मिली थी. इस पर वन विभाग द्वारा कार्रवाई करते हुए अवैध शिकार एवं व्यापार करने का मामला दर्ज कर बेगमगंज निवासी इरफान शेख को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. साथ ही इजाबुल शेख
मछुआरों ने फिर…
के घर से दो डॉल्फिन के अवशेष भी बरामद किये थे. हालांकि प्रशासन की कार्रवाई का कोई असर अवैध करोबारियों पर नहीं दिख रहा है.
लुप्त होने के कगार पर है डॉल्फिन : एक आंकड़े के अनुसार दो दशक पूर्व पूरे भारत में डॉल्फिन की संख्या करीब पांच हजार से अधिक थी. जो संख्या वर्तमान में घट कर अनुमानित 15 सौ के करीब पहुंच गयी है. विशेषज्ञों के अनुसार नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण डॉल्फिन की संख्या कम हो रही है.
जाल में फंसी डॉल्फिन, तेल निकालने के लिए मार डाला
कहते हैं डीएफओ
डॉल्फिन का शिकार करना जुर्म है. कसवा में मछुआरों द्वारा डॉल्फिन पकड़ कर मार दिये जाने के मामले की जांच की जा रही है. जांच के बाद दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी. सरकार को भी डॉल्फिन संरक्षण के लिए पत्राचार किया गया है.
-मनीष तिवारी, जिला वन पदाधिकारी, साहिबगंज
क्षेत्र में तेल के अवैध कारोबारी हैं सक्रिय
डॉल्फिन तेल के कारोबारी क्षेत्र में सक्रिय हैं. जो डॉल्फिन मारकर तेल को बेच देते हैं. यह अवैध धंधा क्षेत्र में जबरदस्त तरीके से फल-फूल रहा है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, मछुआरों से डॉल्फिन का तेल कारोबारी वजन के अनुसार खरीदते हैं. छोटी डॉल्फिन का तेल 15 से 20 हजार रुपये व बड़ी डॉल्फिन का तेल 30 से 35 हजार रुपये में खरीदा जाता है. इस तेल को माफियाओं के द्वारा पश्चिम बंगाल के मालदा व फरक्का के जरिए दवा कंपनियों को पहुंचाया जाता है. जिससे दर्द(पेन किलर) व लीवर की दवा बनती है. दवा कंपनियों से डॉल्फिन माफिया छोटे डॉल्फिन के तेल का लगभग 5 लाख रुपये व बड़े डॉल्फिन के तेल का दस लाख रुपये तक लेते हैं.

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