रांची : प्रकृति पर्व सरहुल को लेकर झारखंड के आदिवासी समुदायों ने तैयारियां शुरू कर दी है. 4 दिनों तक चलने वाली इस पर्व की मनाने की कई परंपराएं हैं. जिसमें से एक, पूजा के दौरान नई धान, ज्वार गेहूं जैसी 7 तरह की फसलों को चढ़ाने की परंपरा है. इसके पीछे की क्या मान्यता है इसके बार में हम आपको यहां जानकारी देंगे. साथ ही यह भी बतायेंगे कि इस पर्व पर साल के पेड़ की क्यों पूजा की जाती है.
कृषि की उर्वरता बढ़ाने के लिए चढ़ाये जाते हैं फसल
सरहुल में पूजा के दौरान नई धान, ज्वार और गेहूं के फसलों को कृषि की उर्वरता को बढ़ाने के लिए चढ़ाया जाता है. इस पर्व पर आदिवासी समुदाय के लोग जल, जंगल और जमीन की पूजा करते हैं और धर्मेश से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं. यह अनुष्ठान न सिर्फ अच्छी फसल के लिए किया जाता है बल्कि यह प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखने का प्रतीक भी है. इस दिन पुरोहित (पाहन) गांव के पवित्र स्थान सरना स्थल में साल के फूल चढ़ाते हैं और फिर सभी ग्रामीणों के साथ सामूहिक भोज और नृत्य करते हैं.
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धान और ज्वार चढ़ाये जाने का प्राकृतिक और आध्यात्मिक दोनों रूपों में है महत्व
पूजा में धान, ज्वार चढ़ाये जाने की इस परंपरा का प्राकृतिक और आध्यात्मिक दोनों रूपों में महत्व है. यह न केवल भूमि की उर्वरता और समृद्धि की कामना से जुड़ा है, बल्कि लोगों को प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनाकर पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है.
आदिवासी समुदाय साल के वृक्ष की क्यों करते हैं पूजा
आदिवासियों ने साल के वृक्ष को पवित्र माना है. यही वजह कि इस पर्व खास तौर पर इसी पेड़ की पूजा की जाती है. इस पेड़ के फूल को पवित्रता, उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना गया है, इसलिए इन्हें देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता है. यह पर्व आदिवासी समुदायों की एकजुटता को दर्शाता है और साल का फूल इस परंपरा का अभिन्न हिस्सा है. जनजातीय समुदाय की मानें तो यह वृक्ष जंगलों के संतुलन को बनाये रखने में बड़ी भूमिका निभाता है. इस दिन सरना स्थल (जनजातीय समुदाय का पूजा स्थल) को साल के फूलों से सजाया जाता है. यह पर्व प्रकृति और मानव के बीच सामंजस्य का संदेश देता है और पूरे समुदाय के लिए खुशहाली की कामना करता है.
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