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Ranchi news : हाइकोर्ट ने झालसा को बनाया पक्षकार, कैदियों की समय से पहले रिहाई की नीति पर मांगी रिपोर्ट

कैदियों की सजा माफी व समय से पहले रिहाई नीतियों के क्रियान्वयन का मामला

:::: कैदियों की सजा माफी व समय से पहले रिहाई नीतियों के क्रियान्वयन का मामला:::: राज्य सरकार को विस्तृत शपथ पत्र दायर करने का निर्देश -मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी. रांची. झारखंड हाइकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुपालन में राज्य की जेलों में बंद कैदियों की सजा माफी (रिमीशन) व समय से पहले रिहाई (प्रीमेच्योर रिलीज) नीतियों के क्रियान्वयन के मामले में स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद व जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की. इस दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी 2025 को डीएलएसए को कैदियों की समय से पहले रिहाई की नीति की निगरानी करने का निर्देश दिया है. इसलिए झारखंड स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (झालसा) को इस मामले में पक्षकार के रूप में शामिल किया जाता है. खंडपीठ ने इस आदेश की प्रति तत्काल झालसा के सदस्य सचिव को भेजने का निर्देश दिया, ताकि वे अदालत में उपस्थिति दर्ज कर सकें. झालसा के सदस्य सचिव को निर्देश दिया गया कि वे सभी जिलों के जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (डीएलएसए) से यह रिपोर्ट मांगें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार क्या कार्रवाई की गयी है. वहीं राज्य सरकार के शपथ पत्र को देखने के बाद खंडपीठ ने राज्य सरकार को समय देते हुए विस्तृत शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया. साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए 10 दिसंबर की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर किया गया. बताया गया कि सरकार ने सीआरपीसी की धारा 438 तथा बीएनएसएस की धारा 473 के तहत रिमिशन नीति तैयार कर ली है. सरकार के वकील ने कहा कि 26 मई 2011 की नीति के अनुरूप रिमिशन पर समिति नियमित बैठक कर रही है. साथ ही राज्य सरकार ने दो सप्ताह का समय मांगा, ताकि अब तक हुई समीक्षा समिति के निर्णयों का पूरा ब्योरा कोर्ट में प्रस्तुत किया जा सके. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों द्वारा उनकी रिमिशन नीतियों के क्रियान्वयन पर नजर रखने और उसकी जांच करने का निर्देश दिया था. साथ ही इस संबंध में एक रिपोर्ट 15 दिसंबर 2025 तक सुप्रीम कोर्ट के विधि सेल को भेजने का भी निर्देश दिया है. सप्रीम कोर्ट ने कहा है सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहां भी सजा में कमी करने पर सरकार की नीति मौजूद है, वहां बंदियों के मामले पर अपने-आप विचार किया जाये. इसके लिये कैदी या उसके परिजन को अलग से आवेदन देने की आवश्यकता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों को भी दो माह में नीति बनाने का निर्देश दिया है, जहां ऐसी नीति नहीं है. आदेश में यह भी कहा गया है कि रिमिशन देने या न देने का फैसला संक्षिप्त कारणों के साथ हो और उसकी जानकारी तुरंत कैदी को दी जाये. स्थायी रिमिशन को बिना सुनवाई रद्द नहीं किया जा सकता. डीएलएसए को बंदियों का डेटा रख कर यह सुनिश्चित करना होगा कि वे पात्र होते ही उनके मामलों पर विचार हो. सभी जिलों में नालसा के एसअोपी का पालन अनिवार्य है.

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