Rath Yatra: झारखंड की राजधानी रांची में भी जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है. प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है. रथ यात्रा के पहले दिन प्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और माता सुभद्रा के विग्रह गर्भगृह से बाहर आते हैं. फिर, रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी जाते हैं. यहां नौ दिनों तक जगन्नाथ स्वामी अपनी मौसी के घर पर विश्राम करते हैं. इसके बाद 10वें दिन वापस रथ पर सवार होकर मुख्य मंदिर लौट आते हैं.
रथ खींचने के लिए उमड़ती है भक्तों की भीड़

इस साल रथ यात्रा 27 जून शुक्रवार से शुरु होने वाली है. यह यात्रा नौ दिनों तक चलेगी, जो 5 जुलाई को समाप्त होगी. रथ यात्रा में पहले और आखिरी दिन का काफी महत्व होता है. चूंकि, इन दोनों दिन प्रभु जगन्नाथ, माता सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के रथों को खींचने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. हजारों-लाखों भक्त भगवान के रथों को खींचकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. यह यात्रा प्रभु के प्रति भक्ति और एकता का प्रतीक है.
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क्या है यात्रा का महत्व?

प्रभु श्री जगन्नाथ की रथ यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रथ यात्रा में शामिल होने या भगवान के दर्शन करने मात्र से भक्तों के सभी पापों का नाश हो जाता है. इसके साथ ही भक्तों को जगन्नाथ स्वामी का आशीर्वाद मिलता है. इस दिव्य और भव्य यात्रा में भक्त बिना किसी भेदभाव और राग-द्वेष के शामिल होते हैं.
कहा जाता है कि रथ यात्रा के पहले और आखिरी दिन रथ खींचने से भक्तों पर प्रभु की विशेष कृपा बरसती है. रथ यात्रा के आखिरी दिन को ‘घुरती रथ’ भी कहा जाता है. रांची स्थित जगन्नाथ मंदिर परिसर में रथ यात्रा के दौरान भव्य मेला लगता है, जिसका समापन घुरती रथ के दिन होता है.
कैसे शुरू हुई रथ यात्रा की परंपरा?

प्रभु जगन्नाथ की पवित्र और दैवीय रथ यात्रा कैसे शुरू हुई, इसे लेकर कई मान्यतायें प्रचलित हैं. इनमें से एक पौराणिक मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि एक बार माता सुभद्रा ने अपने भाइयों भगवान बलभद्र और भगवान जगन्नाथ से नगर भ्रमण की इच्छा जाहिर की. इस पर दोनों भाइयों ने भव्य रथ का निर्माण करवाया. फिर, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण करने निकले.
इस दौरान तीनों रास्ते में अपनी मौसी के घर पर भी रुके. फिर, नगर यात्रा पूरी कर वापस लौट आये. इसी के बाद से यह अद्भुत परंपरा मनाई जाती है. हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को तीनों भाई-बहन रथ पर सवार होकर निकलते हैं. रथ यात्रा में सबसे आगे प्रभु बलराम का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथ स्वामी का रथ होता है.
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