रांची (संवाददाता). आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद् ने झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किये गये झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 और नगरपालिका अधिनियम 2011 को निरस्त करने की मांग की है. साथ ही आदिवासियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था पर पंचायत राज व्यवस्था न थोपने और पेसा कानून 1996 के 23 प्रावधानों के अनुरूप पेसा नियमावली बनाकर झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करने की मांग की है. सोमवार को पुरुलिया रोड स्थित एसडीसी सभागार में आयोजित पेसा महासम्मेलन में मांगों से संबंधित पारित किये गये. पेसा महासम्मेलन में झारखंड के विभिन्न जिले के लोग शामिल हुए. इससे पूर्व, अध्यक्षता करते हुए पड़हा राजा सनिचराय सांगा ने कहा कि हमारी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था मानव की उत्पति के साथ हुई है. यही वजह है कि ब्रिटिश हुकूमत और भारत सरकार ने भी यहा के लिए अलग व्यवस्था रखी. अब यहां पंचायत व्यवस्था थोपने की कोशिश की जा रही है. आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था हमारे पूर्वजों की है और पंचायत राज व्यवस्था महात्मा गांधी की देन है. हमारे पूर्वजों ने पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के आधार पर ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी. फलस्वरूप, इसे संवैधानिक रूप से मान्यता दी गयी. इसी आधार पर पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून 1996 बनाया गया. ग्राम प्रधान संघ के संयोजक रामकिशोर उरांव ने कहा कि यहां के लिए संविधान में अलग व्यवस्था की गयी है, इसलिए जेपीआरए-2001 नहीं, पेसा कानून 1996 ही चाहिए. महासम्मेलन में सुषमा बिरूली, वाल्टर भेंगरा, लक्ष्मी नारायण मुंडा, ज्योति भेंगरा, मारकुस मुंडा, मसीह चरण पूर्ति, जोन जोनस तिडू़ व किस्टो कुजूर ने भी विचार रखे. मौके पर मेरी क्लाॅडिया सोरेंग, बिनसाय मुंडा सहित अन्य उपस्थित थे.
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