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झारखंड की एक खोती हुई परंपरा, जानिए क्या है ‘ढेंकी’?

Dhenki kya hain: आधुनिकता के इस दौर में जहां परंपराएं पीछे छूट रही हैं, वहीं झारखंड के कई गांव आज भी ढेंकी जैसे पारंपरिक यंत्रों के जरिए अपनी सांस्कृतिक पहचान को जिंदा रखे हुए हैं. जानिए इस लेख में ढेंकी का उपयोग, महत्व और उसकी सामाजिक भूमिका.

Dhenki Kya hain : झारखंड पारंपरिक रीति-रिवाजों से घिरा एक ऐसा राज्य है, जहां प्रकृति, संस्कृति और जनजातीय परंपराओं का अनूठा संगम देखने को मिलता है. आधुनिकीकरण की ओर बढ़ते के इस युग में अब लोग मशीनों की तरफ भाग रहे हैं, यही कारण है कि धीरे-धीरे झारखंड की परंपरा खोती नजर आ रही है. हालांकि आज भी कुछ ऐसे ग्रामीण इलाके हैं, जहां लोग अपनी परंपराओं को समेटे आगे बढ़ रहे हैं. ढेंकी झारखंड की परंपरा से जुड़ा एक पारंपरिक यंत्र है. चलिए इस लेख में आज हम आपको झारखंड की एक अनोखी विरासत से रूबरू करवाते हैं.

क्या है ढेंकी?

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ढेंकी

ढेंकी मुख्य रूप से लकड़ी से बनता है. इसे बनाने के लिए किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि ग्रामीण इलाकों में लोग खुद अपने हाथों से ही इसे तैयार करते हैं. ढेंकी एक लंबी कठोर लकड़ी से बनी होती है, जिसके अगले सिरे पर एक लकड़ी का छोटा टुकड़ा लगा होता है. यह वजन में भी काफी भारी होता है. आमतौर पर यह यंत्र भारत में पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा, असम, बिहार और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में पाया जाता है.

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चावल कूटने के लिए इस्तेमाल होता है ढेंकी

ढेंकी को मुख्यतः चावल कूटने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इससे आमतौर पर घर की महिलाएं ही चावल कूटने का काम करती हैं. इसके पिछले सिरे को पैर से दबाया जाता है. अगले सिरे में जमीन पर एक छोटा सा गड्ढा होता है, जिसमें चावल भरा जाता है. इसके पिछले हिस्से को लगातार पैरों से दबाया जाता है, जब चावल की बालियों में भार के कारण बल पड़ता है तो चावल का आटा (गुंड़ी) तैयार होता है, जिससे तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं. ढेंकी का प्रयोग गेंहू, मक्का, दलहन, आदि अनाजों को कूटने के लिए भी किया जाता है.

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ढेंकी से चावल कूटती महिलाएं

ढेंकी की आवाज से गूंजता था पूरा गांव

आधुनिकीकरण के इस युग में लोग मशीनों के साथ इतना अधिक जुड़ चुके हैं कि अब तो अधिकतर गांवों में भी केवल पर्व-त्योहार, शादी, जन्म या मृत्यु से संबंधित समारोह में ही पारंपरिक रीति-रिवाजों को निभाने के लिए ढेंकी का उपयोग किया जाता है. पहले गांव के प्रत्येक घरों में ढेंकी रहती थी. गांवों में सुबह से ही ढेंकी की ढक-ढक की आवाज गूंजती रहती थी.

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Dipali Kumari
Dipali Kumari
नमस्कार! मैं दीपाली कुमारी, एक समर्पित पत्रकार हूं और पिछले 3 वर्षों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं. वर्तमान में प्रभात खबर में कार्यरत हूं, जहां झारखंड राज्य से जुड़े महत्वपूर्ण सामाजिक, राजनीतिक और जन सरोकार के मुद्दों पर आधारित खबरें लिखती हूं. इससे पूर्व दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट सहित अन्य प्रतिष्ठित समाचार माध्यमों के साथ भी कार्य करने का अनुभव है.

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