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झारखंड हाईकोर्ट ने परिवहन सचिव केके सोन के वेतन पर लगायी रोक तो मुख्य सचिव को भी भेजा नोटिस, जानें मामला

झारखंड हाईकोर्ट ने परिवहन सचिव के वेतन पर रोक लगा दी है. ऐसा इसलिए क्यों कि राज्य परिवहन कर्मियों को आदेश के बाद भी पेंशन का भुगतान नहीं हुआ है. तो वहीं सीएस सुखदेव सिंह को नोटिस जारी किया गया है.

रांची: बिहार से झारखंड कैडर में समायोजित राज्य परिवहन कर्मियों को आदेश के बाद भी पेंशन भुगतान नहीं होने पर हाइकोर्ट ने नाराजगी जतायी. साथ ही परिवहन सचिव केके सोन के वेतन पर रोक लगा दी. जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने याचिका पर सुनवाई की. कहा कि जब तक कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हो जाता है, तब तक सचिव के वेतन पर रोक रहेगी.

शुक्रवार को नेहाल खान, मनु प्रसाद व अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान प्रार्थियों की ओर से बताया गया कि कैडर विभाजन के बाद सभी बिहार से आये थे और उनकी सेवा परिवहन विभाग में समायोजित की गयी थी, लेकिन उन्हें पेंशन का भुगतान नहीं हो रहा है.

तीन साल पहले ही अदालत ने कर्मचारियों को पेंशन भुगतान का निर्देश दिया था, जो बिहार से झारखंड कैडर में समायोजित हुए थे. परिवहन सचिव द्वारा संतोषजनक जवाब नहीं देने पर अदालत ने नाराजगी जतायी और कहा कि तीन साल पहले ही कोर्ट ने आदेश दिया था. उस समय सरकार ने भी पेंशन भुगतान करने की बात कही थी, लेकिन अब तक नहीं की गयी.

सीएस को हाइकोर्ट की नोटिस

जमीन विवाद से जुड़े मामले में स्पष्ट जानकारी नहीं देने पर झारखंड हाइकोर्ट ने शुक्रवार को नाराजगी जतायी. हाइकोर्ट ने मुख्य सचिव सुखदेव सिंह व देवघर के तत्कालीन सीओ अनिल कुमार सिंह को नोटिस जारी की. अदालत ने पूछा कि क्यों नहीं उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाये. अदालत ने मुख्य सचिव से यह भी बताने के लिए कहा है कि क्यों नहीं केंद्रीय कार्मिक विभाग से उनके सर्विस रिकॉर्ड में यह प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज करने को कहा जाये कि उन्हें न्यायिक कार्य में दिलचस्पी नहीं है.

अदालत ने राज्य के कार्मिक विभाग को देवघर के तत्कालीन सीओ को नोटिस भेजकर यह पूछने को कहा है कि 14 जून के कोर्ट के आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया? अदालत ने नौ नवंबर तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है.

शहादत हुसैन की याचिका पर हुई सुनवाई  : 

शहादत हुसैन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने संबंधित निर्देश दिया है. याचिका में कहा गया है कि दे‌वघर एसडीओ ने वर्ष 1940 में उनके पिता के नाम जमीन की बंदोबस्ती की थी. इसके बाद से जमीन पर उनका मालिकाना हक है. देवघर एयरपोर्ट निर्माण के दौरान उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया. उन्हें नोटिस भी नहीं दी गयी.

इसकी शिकायत करने जब वह अधिकारियों के पास गये, तो दस्तावेज जमा करने कहा गया. प्रार्थी के अनुसार, वर्ष 1940 में एसडीओ द्वारा उनके पिता को किये गये सेटलमेंट का दस्तावेज सौंपा गया. इसकी जांच के बाद सीओ ने मंतव्य देते हुए कहा कि प्रार्थी के पिता के नाम सेटेलमेंट नहीं हुआ है और यह फर्जी है.

सीएस ने नहीं दिया जवाब : 

हाइकोर्ट ने मुख्य सचिव को भी जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. पर, जवाब दाखिल नहीं किया गया. अदालत ने मुख्य सचिव को यह बताने के लिए कहा कि क्या एसडीओ के आदेश को एक सीओ गलत करार दे सकते हैं. जमीन की वास्तविक स्थिति से कोर्ट ने मुख्य सचिव को अवगत कराने का निर्देश दिया. मुख्य सचिव की ओर से दायर शपथपत्र में अदालत द्वारा मांगी गयी जानकारी नहीं थी और न ही सीओ के आदेश के बारे में स्थिति ही स्पष्ट की गयी.

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