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नेत्रहीन आदिवासी दुष्कर्म पीड़िता के 28 सप्ताह के गर्भपात पर झारखंड हाईकोर्ट ने कही ये बात

Jharkhand News: राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया रांची में सरकार का अपना कोई शेल्टर होम नहीं है. पीड़िता को रामगढ़ में महिला आश्रय गृह में रहने की व्यवस्था की जायेगी. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता शैलेश पोद्दार ने इसका विरोध किया.

झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की अदालत ने नेत्रहीन आदिवासी दुष्कर्म पीड़िता के 28 सप्ताह के गर्भ गिराने को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई के दाैरान अदालत ने रिम्स के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को देखा. रिपोर्ट देखने के बाद अदालत ने कहा कि 28 सप्ताह के बाद अब गर्भपात कराना सुरक्षित नहीं है. मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट इसकी अनुमति नहीं देता है.

14 सितंबर को फिर होगी सुनवाई

वैसी स्थिति में अदालत ने प्रार्थी, रिम्स व सरकार के अधिवक्ता को निर्देश दिया कि आपस में मिल बैठकर विचार करें तथा हमें भी अवगत करायें कि इस मामले में अब क्या किया जा सकता है. अदालत ने सरकार से पूछा कि जो बच्चा जन्म लेगा, उसकी जिम्मेवार काैन लेगा. मामले की अगली सुनवाई के लिए हाईकोर्ट ने 14 सितंबर की तिथि निर्धारित की.

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कोर्ट में पेश हुई मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट

इससे पूर्व, अदालत के आदेश पर रिम्स निदेशक द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट सीलबंद प्रस्तुत की गयी. रिपोर्ट में कहा गया कि युवती 28 सप्ताह की गर्भवती है. इस स्थिति में अब गर्भपात कराना सेफ नहीं है. पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गर्भ में बच्चा स्वस्थ है और उसे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है.

रांची में झारखंड सरकार का अपना शेल्टर होम नहीं

राज्य सरकार की ओर से अदालत को बताया गया रांची में सरकार का अपना कोई शेल्टर होम नहीं है. पीड़िता को रामगढ़ में महिला आश्रय गृह में रहने की व्यवस्था की जायेगी. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता शैलेश पोद्दार ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि रांची में सरकार का अपना कोई शेल्टर होम नहीं है.

प्रार्थी ने दायर की है क्रिमिनल रिट

उन्होंने कहा कि पीड़िता नेत्रहीन है. रामगढ़ के आश्रय गृह में नेत्रहीन को अलग से रखने की कोई विशेष व्यवस्था भी नहीं है. जब पीड़िता खुद की देखभाल नहीं कर सकती है, तो बच्चे की देखभाल कैैसे होगी. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी ने गर्भपात कराने को लेकर क्रिमिनल रिट दायर की है. जब वह नाबालिग थी और घर में अकेली थी, तब पहली बार वर्ष 2018 में उसके साथ दुष्कर्म की घटना हुई थी.

दूसरी बार हुआ है आदिवासी महिला का दुष्कर्म

इससे संबंधित पोक्सो एक्ट के तहत निचली अदालत में मामला भी चल रहा है. पीड़िता के साथ कुछ माह पूर्व दुष्कर्म की दूसरी बार घटना हुई है. पीड़िता का परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा है. उसके पिता रिक्शा चालक है. उसकी मां का पहले ही निधन हो गया है. बीमार पड़ने पर इलाज के लिए भी इस परिवार के पास पैसे नहीं है.

रिपोर्ट – राणा प्रताप, रांची

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