13.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Ranchi News : धनतेरस : परंपरा, आरोग्य और शुभ आरंभ का पर्व

भारत की संस्कृति में प्रत्येक पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन का प्रतीक है.

आरोग्य और समृद्धि का प्रतीक

आधुनिक दौर में झाड़ू से डिजिटल निवेश तक, बदल रहा है शुभ खरीदारी का स्वरूप

रांची. भारत की संस्कृति में प्रत्येक पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन का प्रतीक है. धनतेरस, जो कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है, उसे ‘धनत्रयोदशी’ भी कहा जाता है. पंडित विद्यानिधि पांडेय बताते हैं कि यह दिन आयुर्वेद के देवता भगवान धनवंतरि के प्राकट्य दिवस के रूप में प्रसिद्ध है. धनवंतरि त्रयोदश्यां समुद्रात् समजायत” यह उल्लेख स्कंदपुराण में मिलता है. इसी कारण इस दिन स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि का पूजन किया जाता है. प्राचीन काल में इस दिन सोना, चांदी या तांबे के पात्र खरीदने की परंपरा थी. यह केवल वैभव का नहीं, बल्कि स्थायित्व और शुभता का प्रतीक माना जाता था. आधुनिक युग में इस परंपरा का स्वरूप बदल रहा है. अब लोग झाड़ू, बर्तन, स्टील के सामान, यहां तक कि डिजिटल मुद्रा या ऑनलाइन निवेश को भी ‘शुभ खरीदारी’ का माध्यम मानने लगे हैं. झाड़ू को ‘लक्ष्मी का साधन’ कहा गया है, क्योंकि यह अशुद्धता और नकारात्मकता को दूर करती है. गृहलक्ष्मी तत्त्व के अनुसार, स्वच्छता ही संपन्नता का प्रथम द्वार है.

परंपरा और तकनीक का समन्वय

वास्तव में शास्त्र यह नहीं कहते कि क्या खरीदना चाहिए, बल्कि यह कहते हैं कि नवीन वस्तु से शुभ आरंभ करना चाहिए. इसलिए आज यदि कोई व्यक्ति डिजिटल संपत्ति या उपकरण खरीदकर नये कार्य की शुरुआत करता है, तो वह भी उतना ही मंगलकारी माना जा सकता है. यह आधुनिक युग में संस्कार और तकनीक के समन्वय का सुंदर उदाहरण है.

यमदीपदान की परंपरा, दीप से दीर्घायु का वरदान

धनतेरस का एक अन्य आध्यात्मिक पक्ष है ‘यमदीपदान’. इस परंपरा का उल्लेख स्कंदपुराण और गरुड़पुराण में मिलता है. “त्रयोदश्यां दीपदानं यमराजप्रसादनम्।”अर्थात् त्रयोदशी तिथि पर यमराज के नाम से दीपदान करने से अकालमृत्यु का नाश होता है और दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है. लोककथाओं के अनुसार, एक बार राजा हिम के पुत्र की मृत्यु इस दिन नियत थी. उसकी पत्नी ने पूरी रात्रि दीप प्रज्वलित रखकर यमराज की आराधना की और अपने पति की रक्षा की. तब से यह परंपरा चली कि धनतेरस की संध्या को घर के द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाया जाता है, जिससे यमराज प्रसन्न होकर परिवार को आयु और आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं. आचार्य सुनील तिवारी कहते हैं कि समय बदलता है, प्रतीक बदलते हैं, परंतु भावना वही रहती है. शुभ आरंभ, आरोग्य और समृद्धि की कामना. चाहे झाड़ू हो या डिजिटल मुद्रा, बर्तन हो या स्वर्ण. यदि उसमें श्रद्धा और शुभता का भाव है, तो वही सच्चा धनतेरस है.

—————-

धनतेरस पर विभिन्न प्रतीकों का महत्व

सोना (स्वर्ण) : स्वर्ण को आदित्य तत्व का प्रतीक माना गया है. यह तेज, आरोग्य और वैभव प्रदान करता है. धनतेरस पर स्वर्ण की खरीद दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और आत्मप्रभा में वृद्धि का प्रतीक है.

चांदी (रजत) : रजत चंद्र तत्व से जुड़ा है. यह मानसिक शांति, संतुलन और पारिवारिक सौहार्द्र बढ़ाता है. धनतेरस पर चांदी खरीदने से लक्ष्मी कृपा और गृहशांति की प्राप्ति होती है.

झाड़ू : झाड़ू को लक्ष्मी का प्रतीक साधन कहा गया है, जो अशुद्धि और दरिद्रता का नाश करती है. इस दिन नयी झाड़ू खरीदने से नकारात्मक ऊर्जा का शमन होता है और धनागमन का मार्ग प्रशस्त होता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel