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ranchi news : हिंदी पत्रकारिता दिवस कल : फेक न्यूज और हिंग्लिश के दबाव के बीच उम्मीदों से भरे हैं युवा

राजधानी रांची के विभिन्न कॉलेजों में युवा पत्रकारिता की बारीकियों को सीख रहे हैं और हिंदी पत्रकारिता के भविष्य को संवारने की कोशिश में लगे हैं.

रांची. हिंदी पत्रकारिता आज एक दोराहे पर खड़ी है. एक ओर फेक न्यूज, टीआरपी की होड़ और निष्पक्षता को लेकर संकट है, तो दूसरी ओर युवा पीढ़ी की इसमें बढ़ती भागीदारी से आशा की किरण भी दिखायी देती है. राजधानी रांची के विभिन्न कॉलेजों में युवा पत्रकारिता की बारीकियों को सीख रहे हैं और हिंदी पत्रकारिता के भविष्य को संवारने की कोशिश में लगे हैं. हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर इस क्षेत्र की चुनौतियों और संभावनाओं को समझने की कोशिश की गयी है.

30 मई का ऐतिहासिक महत्व

हर साल 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है. इसी दिन 1826 में कोलकाता से पहला हिंदी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ प्रकाशित हुआ था. इसके संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे. यह दिन हिंदी पत्रकारिता के गौरवशाली इतिहास को याद करने और उसकी वर्तमान स्थिति पर चिंतन का अवसर देता है.

विद्यार्थियों ने बतायी मौजूदा चुनौतियां

रिया छाबड़ा कहती हैं : हिंदी पत्रकारिता ने आजादी की लड़ाई से लेकर डिजिटल युग तक लंबा सफर तय किया है, लेकिन आज भी यह भाषा और बाजार के बीच की खाई से जूझ रही है. अंग्रेजी मीडिया को कॉरपोरेट और ग्लैमर का साथ मिलता है, जबकि हिंदी पत्रकारों को लो-प्रोफाइल समझा जाता है. बावजूद इसके यही चुनौतियां युवाओं के लिए अवसर बन सकती हैं. कुछ अलग और सार्थक करने का.

दिव्या कुमारी का मानना है : हिंदी पत्रकारिता सच्चाई और न्याय की आवाज उठाने का माध्यम है. इसके लिए विद्यार्थियों को नैतिकता, डिजिटल दक्षता और निष्पक्षता बनाये रखने की जरूरत है. निरंतर प्रशिक्षण से ही हम समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं.

कृति कशिश ने कहा कि हिंदी पत्रकारों को अंग्रेजी की तुलना में कम वेतन और अवसर मिलते हैं, जबकि उनका जनसरोकार ज्यादा होता है. अगर युवा पत्रकार नयी सोच, तकनीक और आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ें, तो हिंदी पत्रकारिता को नयी दिशा मिल सकती है. सौरभ सिंह ने कहा कि लोगों का ध्यान केंद्रित करने की अवधि कम होती जा रही है. ऐसे में लंबी रिपोर्टिंग या गहराई से विश्लेषण करना मुश्किल हो गया है. पाठक तेज और छोटी खबरों की ओर झुक रहे हैं, यह भी एक बड़ी चुनौती है.

पत्रकारिता को सिर्फ ग्लैमर और सत्ता के करीब पहुंचने का माध्यम नहीं मानना चाहिए

झारखंड केंद्रीय विवि के प्रो देवव्रत सिंह कहते हैं : किसी भी लोकतांत्रिक समाज में पत्रकारिता के महत्व को कम करके नहीं देखा जा सकता. डिजिटल युग में पत्रकारिता के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपनी साख बचाये रखना है और हिंदी पत्रकारिता के सामने यह संकट और अधिक है. अन्य माध्यमों की तुलना में अखबारों की विश्वसनीयता आज भी बनी हुई है. अधिकतर युवा पाठक डिजिटल माध्यमों से खबरें तुरंत जान लेते हैं, लेकिन भविष्य में सोशल मीडिया संस्थागत पत्रकारिता को बेदखल कर देगा ऐसा सोचना भी आधारहीन है. पत्रकारिता करने से पहले मीडिया विद्यार्थियों को भाषा, विषयवस्तु और तकनीक एक साथ तीन स्तरों पर तैयारी करनी आवश्यक है. साथ ही, उन्हें पत्रकारिता को सिर्फ ग्लैमर और सत्ता के करीब पहुंचने का माध्यम नहीं मानना चाहिए.

हिंदी पत्रकारिता दो बड़ी चुनौतियों से जूझ रही है

रांची विवि के मासकॉम के निदेशक डॉ बसंत झा कहते हैं : हिंदी पत्रकारिता दो बड़ी चुनौतियों से जूझ रही है. फेक न्यूज और निष्पक्षता का अभाव. भारत में सबसे अधिक फेक न्यूज पब्लिश होती है. पत्रकारों को इनसे दूर रहते हुए निष्पक्ष और सच्चाई आधारित पत्रकारिता करनी चाहिए.

गोस्सनर कॉलेज की महिमा गोल्डन बिलुंग कहती हैं कि हिंदी पत्रकारिता को तकनीकी दक्षता, डिजिटल साक्षरता और भाषाई स्पष्टता के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. हिंग्लिश का बढ़ता प्रभाव, सोशल मीडिया पर अफवाहों का तेज प्रसार और राजनीतिक दबाव भी प्रमुख समस्याएं हैं.

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Prabhat Khabar News Desk
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