Karma Puja 2025: जावा उठाने के साथ ही झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा प्राकृतिक पर्व ‘करमा’ शुरू हो गया है. इस बार करमा पूजा 3 सितंबर को है. केंद्रीय सरना समिति से जुड़े जगलाल पाहन ने प्रभात खबर से बातचीत में इस पर्व की पारंपरिक रस्मों और मान्यताओं को साझा किया. उन्होंने बताया कि करमा पूजा के सभी रीति-रिवाज पूरी तरह से प्रकृति और पर्यावरण से जुड़े हुए हैं.
करमा पूजा से 7 दिन पहले उठता है जावा
जगलाल पाहन ने बताया कि करमा पूजा से 7 दिन पहले ही करमयतीन (करमा पूजा करने वाली युवतियां) जावा उठाती हैं. जावा उठाने के लिए युवतियां सबसे पहले डलिया या टोकरी में नदी से बालू उठाती है. इसके बाद पारंपरिक विधि-विधान के साथ बालू में 5 या 7 प्रकार के अन्न के बीजों को डालती है. इस प्रक्रिया को ही जावा उठाना कहते हैं.
Karma Puja: जावा जगाने की परंपरा
जावा उठाने के बाद करमयतीन लगातार 7 दिनों तक जावा की देखभाल करती है. रोजाना शाम को एक बार जावा वाले डलिया को अखड़ा या आंगन में निकाला जाता है. इसके बाद करमयतीन उसके चारों ओर पारंपरिक गीत गाते हुए गोल-गोल घूमती है और नृत्य करती है. इस दौरान जावा वाले डलिया की धूप-अगरबत्ती दिखाकर पूजा की जाती है. इस प्रक्रिया को जावा जगाना कहते हैं.
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Karma Puja: निर्जला उपवास रखती है युवतियां
जावा उठाने के 7 दिनों बाद करमा पूजा के दिन युवतियां निर्जला उपवास रखती है. करमा पूजा के दिन पारंपरिक विधि-विधान के साथ करम पेड़ से डाल/शाखा काटकर अखड़ा में पाहन द्वारा लगाया जाता है. इसके बाद रात में युवतियां करम देव की पूजा अर्चना करती है. मुख्य रूप से करम पूजा पाहन के द्वारा कराया जाता है. रात करीब 8 बजे से 11 बजे के बीच करमा पूजा होती है. कहीं पूजा जल्दी हो जाती है, तो कहीं देर रात तक पूजा होती है.
रातभर अखड़ा में थिरकते हैं लोग
पूजा समाप्त होने के बाद सभी लोग अखड़ा में करम देव के चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य करते हैं. इस दौरान खासकर झारखंड का लोक नृत्य ‘झूमर’ किया जाता है. सुदूर ग्रामीण इलाकों में लोग आज भी पारंपरिक वाद्ययंत्र जैसे – ढोल, मांदर की थाप पर लोग थिरकते हैं. लेकिन, शहरी इलाकों में अब डीजे साउंड बॉक्स ने इनकी जगह ले ली है.
पूरे गांव में घूमाकर किया जाता है करम डाल का विसर्जन
करमा पूजा के अगले दिन सभी लोग अखड़ा में खूब नाचते-गाते हुए झूमते हैं. इसके बाद अखड़ा में लगाये गये करम डाल को उखाड़कर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है. विसर्जन के लिए ले जाते वक्त करम डाल को पूरे गांव में घुमाया जाता है. मान्यता है कि इससे पूरे गांव में करम देव की कृपा बनी रहता है. पूरे गांव में घुमाने के बाद नदी या तालाब में करम डाल का विसर्जन किया जाता है. इसी के साथ करमा पूजा समाप्त हो जाता है.

