Durga Puja Special | बुढ़मू, कालीचरण साहू: राजधानी रांची से कुछ दूर स्थित ठाकुरगांव में एक ऐसा प्राचीन मंदिर है, जहां पिछले 300 वर्षों से मां दुर्गा की आराधना हो रही है. इस मंदिर को भवानीशंकर मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर में होने वाले दुर्गा पूजा का अपना एक अलग महत्त्व है. मंदिर में भवानीशंकर की युगल मूर्ति की पूजा बहुत ही गोपनीय विधि से की जाती है. दुर्गा पूजा के अवसर पर मंदिर के पुजारी भवानीशंकर की युगल मूर्ति का वस्त्र भी आंख में पट्टी बांधकर बदलते है. यहां अष्टमी को संधी बली के साथ पूजा का शुभारंभ होता है. वहीं नवमी को यहां सैकड़ों बकरों के साथ एक नवजात भैंसे की बलि दी जाती है.
मंदिर की स्थापना का इतिहास
अष्ट धातु वाले भवानीशंकर की युगल मूर्ति व मंदिर की स्थापना का इतिहास भी काफी रोचक है. सन 1543 को नवरत्न गढ़ के महाराज रघुनाथ शाह के पुत्र यदुनाथ शाह की बारात बक्सर जा रही थी, इसी क्रम में बक्सर के पूर्व नदी किनारे बारात पड़ाव के क्रम में युवराज की तबीयत बिगड़ गयी. इसके बाद आसपास के ग्रामीणों ने महाराज को चेतनाथ बाबा के पास जाने की सलाह दी. चेतनाथ बाबा ने महाराज के आग्रह पर मंत्र से युवराज को ठीक कर दिया. साथ ही यदुनाथ शाह को बहूमूल्य चिंतामणि व भवानीशंकर की मूर्तियां दी. समय के साथ युवराज रघुनाथ शाह के पुत्र कुंवर गोकुल शाह भवानीशंकर व चिंतामणि की मुर्तीयों की पूजा में समय बिताने लगे. बाद में गोकुल शाह के पुत्र कमलनाथ शाह भवानी शंकर की मूर्ती लेकर गिंजो लाट चले आए, जिस कारण बाद में यहां का नाम गिंजो ठाकुरगांव पड़ा. चिंतामणी की मूर्ती रातू महाराज को बंटवारा में मिली.
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1965 में चोरी हो गयी थी मूर्ति
19 अगस्त 1965 की रात ज्ञात चोरों ने बहुमूल्य भवानीशंकर की मूर्ती को चुरा लिया था, जो सड़क निर्माण के दौरान वर्ष 1991 में रातू एतवार बाजार टांड में मिली. मूर्ति को ग्रामीणों ने आम टांड स्थित शिव मंदिर में रख दिया. जानकारी मिलने पर ठाकुरगांव के लोगों ने मूर्ति पर दावा पेश किया, लेकिन रातूवासियों द्वारा इंकार करने पर मामला थाना और फिर बाद में अदालत पहुंचा. कोर्ट में फैसला ठाकुरगांव वासियों के पक्ष में हुआ, लेकिन इसके विरोध में पटना उच्च न्यायालय में मामला दर्ज कराया गया.
ठाकुरगांव के पक्ष में आया फैसला
13 फरवरी 1992 को पटना उच्च न्यायालय के रांची बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए माननीय न्यायधीश न्यायमूर्ती उदय प्रताप सिंह ने फैसला ठाकुरगांव के पक्ष में सुनाया. फैसला के साथ ही हजारों की संख्या में ग्रामीणों ने गाजे बाजे के साथ पैदल रांतू जाकर भवानीशंकर की मूर्ती वापस लाकर मंदिर में स्थापित की. वर्तमान में शाहदेव परिवार के द्वारा ही मंदिर की देखरेख की जाती है.

