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Coronavirus Lockdown: सरकार या तंत्र नहीं, इनके दम से जिंदा है इंसानियत

Coronavirus Lockdown: humanity alive due to these angels, not government or system रांची : देवताओं ने जब भी धरती पर जन्म लेने की सोची, तो उनके जेहन में एक ही नाम आया. भारत भूमि. यह भारत ऋषि-मुनियों की भूमि है. ऋषि परंपरा अब भी यहां जिंदा है. देश के कोने-कोने से लोग अपने घरों को लौट रहे हैं. सरकार और सरकारी तंत्र उनकी सुरक्षा और उनके भोजन आदि की व्यवस्था के तमाम दावे कर रही है, लेकिन इंसानियत आज भी उन लोगों की वजह से जिंदा है, जो देवदूत के रूप में सैकड़ों मील की पैदल यात्रा पर निकले लोगों की मदद कर रहे हैं.

रांची : देवताओं ने जब भी धरती पर जन्म लेने की सोची, तो उनके जेहन में एक ही नाम आया. भारत भूमि. यह भारत ऋषि-मुनियों की भूमि है. ऋषि परंपरा अब भी यहां जिंदा है. देश के कोने-कोने से लोग अपने घरों को लौट रहे हैं. सरकार और सरकारी तंत्र उनकी सुरक्षा और उनके भोजन आदि की व्यवस्था के तमाम दावे कर रही है, लेकिन इंसानियत आज भी उन लोगों की वजह से जिंदा है, जो देवदूत के रूप में सैकड़ों मील की पैदल यात्रा पर निकले लोगों की मदद कर रहे हैं.

देश के अलग-अलग कोने में हजारों ऐसे देवदूत चुपचाप अपना काम किये जा रहे हैं. अपनों से मिलने की आस में पैदल यात्रा पर निकल पड़े इन लोगों को भोजन, पानी करा रहे हैं. उनके ठहरने का इंतजाम कर रहे हैं. झारखंड की राजधानी रांची समेत प्रदेश के कोने-कोने में ऐसे हजारों फरिश्ते हैं, जो समाजसेवा के काम में जुटे हैं. बंगाल, राजस्थान, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ व अन्य राज्यों में जाने वाले यात्रियों को ये लोग अपनी ओर से मदद पहुंचाने में जुटे हैं.

रांची में धुर्वा स्थित सेक्टर-3 के सामुदायिक भवन में ‘अन्नदान धुर्वा केंद्र’ की ओर से राज्य से बाहर जा रहे लोगों को चूड़ा-गुड़ का वितरण किया गया. यहां कुछ युवाओं ने देखा कि कुछ युवा पैदल जा रहे हैं. उनसे पूछा, तो युवाओं ने बताया कि वे लोग राजस्थान के रहने वाले हैं और अपने गांव जा रहे हैं. अन्नदान धुर्वा केंद्र के कार्यकर्ताओं ने इन्हें भोजन कराया और सामुदायिक भवन में आराम करने के लिए कहा.

केंद्र के व्यवस्था संयोजक बनाये गये अमर आर्या ने बताया कि देखकर बहुत तकलीफ होती है. सरकार को ऐसे लोगों के लिए कुछ इंतजाम करना चाहिए. इतनी तेज धूप में लोग पैदल अपने घरों की ओर जा रहे हैं. हजारों किलोमीटर का सफर इन्हें तय करना है. खूंटी के 9 लड़कों से जब हमने पूछा कि वे यहां क्यों आये थे, तो उन्होंने बताया कि खूंटी जिला के कर्रा में पुल की ढलाई काम काम चल रहा था. उसी के लिए यहां पहुंचे थे. अब काम बंद हो गया है, तो यहां रहकर क्या करेंगे. अपने घर जा रहे हैं.

इसी तरह, 17 लोगों का एक दल पश्चिम बंगाल के मालदा जा रहा है. इन्हें भी चूड़ा-गुड़ खाने के लिए दिया गया. अमर आर्या ने बताया लोगों को परेशानी में देख उन लोगों को कुछ नहीं सूझा, तो चूड़ा-गुड़ मंगवाया और लोगों के बीच बांट दिया. इन लोगों ने तय किया है कि रविवार (29 मार्च, 2020) की शाम से खिचड़ी बनवायेंगे और हर जरूरतमंद को भोजन करवायेंगे.

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व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग भोजन का वितरण कर रहे हैं. वहीं, हटिया के विधायक नवीन कुमार जायसवाल की ओर से उनके विधानसभा क्षेत्र में ‘मोदी आहार’ का वितरण किया गया. विधायक के समर्थकों ने जरूरतमंद लोगों के घरों में चावल की बोरियां पहुंचायीं. कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए सब्जी मंडी और दुकानों के बाहर सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने के लिए गोल घेरा बनवाया.

बिशुनपुर के रास्ते रांची से लौट रहे छत्तीसगढ़ के मजदूर
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मजदूरों का पलायन लगातार जारी है. दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए रांची पहुंचे छत्तीसगढ़ के मजदूर रविवार को गुमला जिला के बिशुनपुर के रास्ते छत्तीसगढ़ लौटे. सभी पैदल ही निकल गये. उन्होंने बताया कि रांची से समाचार पत्र की गाड़ी से गुमला के घाघरा पहुंचे. वहां से पैदल आगे बढ़ रहे हैं. उन्हें छत्तीसगढ़ जाना है. कहा कि बिशुनपुर से होकर उन्हें कम चलना पड़ेगा. इसलिए इस रास्ते से जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ जाने वाले मजदूरों के लिए बिशुनपुर पुलिस और प्रशासन ने मिलकर भोजन के स्टॉल लगाये हैं. यहां मजदूर भोजन करते हैं और इसके बाद आगे बढ़ जाते हैं.

ओड़िशा से बोकारो पहुंचे दो दर्जन मजदूर
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पूरे देश में लॉकडाउन और राज्यों की सीमाएं सील होने के बावजूद लोग एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंच रहे हैं. ओड़िशा के पारादीप में झारखंड, बिहार के फंसे हुए मजदूर रविवार को कई चेक नाका को लांघकर बोकारो पहुंचे. पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को जैसे ही इसकी भनक लगी, सभी को सदर अस्पताल ले जाया गया. यहां उनकी जांच हुई. सभी को अपने घरों में अलग कमरे में अकेले रहने के लिए कहा गया है.

ट्रक से गाजियाबाद और गिरिडीह जा रहे मजदूरों को कराया भोजन

गुमला जिला के कामडारा में रविवार को 25-30 मजदूरों को भोजन करवाया गया. ये लोग ट्रक पर सवार होकर ओड़िशा के अंगुल से अपने घर गिरिडीह व गाजियाबाद जा रहे थे. स्थानीय पत्रकारों ने कामडारा प्रशासन व बसिया निःशुल्क टिफिन सेवा केंद्र के सहयोग से सभी को भोजन कराया. इसके बाद लोग यहां से आगे बढ़ गये. मजदूर महेश यादव ने बताया कि सभी लोग अंगुल में भूषण स्टील व टाटा कंपनी में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं. कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन हो गया और उन्हें काम से हटा दिया गया. 26 मार्च को ही सभी लोग पैदल अपने-अपने गंतव्यों के लिए रवाना हो गये.

इन मजदूरों ने बताया कि ओड़िशा-झारखंड बॉर्डर तक पैदल ही पहुंचे. स्थानीय ग्रामीणों व लोगों ने बरही तक जाने वाले एक ट्रक को जबरन रोककर उन्हें ट्रक पर चढ़ाया. कुछ पत्रकारों ने उन्हें देखा, तो उन्होंने उनके लिए भोजन आदि के इंतजाम किये. सभी मजदूरों ने भोजन कराने के लिए सभी का धन्यवाद किया.

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