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संगठन के अंदर नहीं चलेगा व्यक्तिगत एजेंडा, गठबंधन में झामुमो बड़ा भाई : अविनाश पांडेय

प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे झारखंड कांग्रेस प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने कांग्रेस के सांगठनिक कामकाज और दशा-दिशा पर खुल कर अपनी बातें रखी. कहा कि व्यक्तिगत एजेंडा नहीं चलेगा. झामुमो गठबंधन का बड़ा भाई है और चुनाव साथ ही लड़ेंगे.

Jharkhand News: झारखंड कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने कांग्रेस के सांगठनिक कामकाज, दशा-दिशा पर खुल कर अपनी बातें रखी. मंगलवार को प्रभात संवाद कार्यक्रम में पहुंचे श्री पांडेय ने आने वाले चुनावों को लेकर गठबंधन की धुंध भी साफ कर दी. यह बता दिया कि झामुमो गठबंधन का बड़ा भाई है और चुनाव साथ ही लड़ेंगे. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हमारी तैयारी लोकसभा की सभी 14 सीटों पर है. मंत्रियों के परफॉरमेंस से लेकर विधायकों के काम करने के तरीके भी बताये. प्रभारी का साफ संकेत था कि मंत्री-विधायक जनता से जुड़ें उनके काम का आकलन हो रहा है. प्रदेश में संगठन को लेकर वर्तमान नेतृत्व की तारीफ भी की, तो यह भी कहा कि परिस्थितियों पर बदलाव निर्भर करते हैं. अनुशासन पर उनका दो टूक कहना था कि शिकायत अपनी जगह है, यह स्वाभाविक है, लेकिन व्यक्तिगत एजेंडा नहीं चलेगा. यहां पढ‍़ें विस्तार से.

झारखंड के प्रदेश प्रभारी के रूप में 14 माह के कार्यकाल से आप कितना संतुष्ट हैं? इस अवधि में संगठन को कितना मजबूत कर पाये?

देखिए, मैं संगठन का ही व्यक्ति हूं और इसी को मैंने प्राथमिकता दी है. मेरे 42 वर्ष के राजनीतिक सफर में संगठन सर्वोपरि रहा है. कांग्रेस पार्टी की सोच झारखंड के लोगों से मिलती-जुलती है. यहां के लोगों में भोलापन व स्वच्छंदता ज्यादा है. पिछले 14 माह के कार्यकाल में हमने प्रदेश से लेकर बूथ स्तर तक संगठन खड़ा किया है. छह से सात वर्षों के बाद प्रदेश संगठन का गठन हो चुका है. जिलों में भी कमेटी का विस्तार हो चुका है. 319 सांगठनिक प्रखंडों में से 292 में कमेटी बन गयी है. 563 मंडलों में से 450 पूरी तरह गठित हो चुके हैं. 70 प्रतिशत पंचायतों तक हमारी पूरी पहुंच बन चुकी है.

2024 में लोकसभा व विधानसभा चुनाव होने हैं, इसको लेकर कांग्रेस पार्टी कितनी तैयार है?

झारखंड से पार्टी को काफी उम्मीदें हैं. यहां पर कांग्रेस का झामुमो के साथ गठबंधन है. दोनों की सेक्यूलर विचारधारा है. इससे झारखंड में बड़ा परिवर्तन हुआ है. हम राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर गठबंधन में जायेंगे. झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों पर काम शुरू हो गया है. अप्रत्यक्ष रूप से को-ऑर्डिनेशन कमेटी कार्य कर रही है. हम लोकतंत्र बचाओ भारत यात्रा के माध्यम से झारखंड में दो हजार किलोमीटर की यात्रा करनेवाले हैं. इस दौरान हम देश की महंगाई, बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सरना कोड, स्थानीय व नियोजन समेत अन्य मुद्दों पर लोगों के साथ चर्चा करेंगे. इसको लेकर पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देगी.

देश या प्रदेश स्तर पर क्या कांग्रेस बिना गठबंधन के चुनाव में जाने की तैयारी कर रही है ?

देखिए, राष्ट्रीय स्तर पर होनेवाले गठबंधन का प्रभाव झारखंड पर भी पड़ेगा. कांग्रेस पार्टी में 542 लोकसभा सीटों पर तैयारी शुरू हुई है. राज्यों में कई क्षेत्रीय दल भी हैं. क्षेत्रीय पार्टी की वजह से कई जगहों में भाजपा को ज्यादा बेहतर जवाब दे पायेंगे. जहां जिसकी जैसी उपस्थिति है. सब जगह में अलग-अलग मुद्दे होते हैं. वही फार्मूला यहां भी होगा. हम पिछली बार झारखंड में गठबंधन में चुनाव लड़े भी.

प्रदेश में कई बार कांग्रेस की किरकिरी पार्टी के नेताओं ने ही करायी है, चाहे विधायक हो या पदाधिकारी ? इस बारे में आपकी क्या राय है?

कांग्रेस सबसे मजबूत लोकतांत्रिक पाटी है. जिस प्रकार से एक घर-परिवार चलता है. वैसे ही कांग्रेस का संगठन चलता है. इसमें कहीं भी तानाशाही नहीं है. कई बार शांति भंग होती है, तब वैसे कार्यकर्ताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता है. झारखंड में एक पार्टी के एक लाख से ज्यादा संगठित कार्यकर्ता हैं. संगठन के अंदर कभी भी व्यक्तिगत एजेंडा नहीं चलेगा.

वर्तमान झारखंड सरकार में कांग्रेस का चुनावी वायदा कितना पूरा हो पाया?

इसको लेकर पिछले दिनों समीक्षा हुई. कैबिनेट में कांग्रेस के चार मंत्री हैं. इनके पास सात-आठ विभाग हैं. हमने घोषणा पत्र से आगे बढ़ कर काम किया है. कृषि, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, पीडीएस सिस्टम में बेहतर काम हुआ है. सरकार ने आदिवासियों के सरना कोड, ओबीसी आरक्षण व स्थानीय नीति के मामले को विधानसभा से पारित करा कर केंद्र पास भेजने का काम किया है. सरकार ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने का काम किया है. हमारी प्रगति संतोषजनक है. हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. हमें और बेहतर करना है.

आपको नहीं लगता कि इस सरकार में झामुमो कांग्रेस से अधिक अपने एजेंडे पर काम कर रहा है?

झामुमो की अपनी पहचान व सोच है. कांग्रेस व झामुमो दोनों मिल कर आगे बढ़ रहे हैं. झामुमो अच्छा काम कर रहा है. विवाद तब उत्पन्न होता है, जब किसी दल को कमजोर करने की कोशिश होती है. यहां पर कहीं से ऐसा नहीं हो रहा है.

इस सरकार में 1932 के खतियान का मामला हो या नियोजन नीति कांग्रेस की कितनी चली? 1932 पर कांग्रेस का क्या स्टैंड है?

झारखंड में स्थानीय नीति जल, जंगल व जमीन से जुड़ा है. इसी व्यवस्था के तहत उसे नौकरी से जोड़ा जा रहा है. भावनात्मक रूप से खतियान आधारित स्थानीय नीति को प्राथमिकता दी जा रही है. जब भी सरकार जन भावना को लेकर आगे बढ़ रही है. विपक्षी दल के लोग पीआइएल दायर कर अवरोध उत्पन्न करने का काम कर रहे हैं. सरकार ने प्रशंसनीय कदम बढ़ाया है. इसमें कांग्रेस की सहमति है.

कैश कांड के फंसे आपके विधायकों को हाइकोर्ट से राहत मिल गयी है. अब पार्टी से न्याय मांग रहे हैं. इसको लेकर पार्टी क्या विचार कर रही है?

देखिए यह पूर्ण रूप से अनुशासन का मामला है. इसका निर्णय केंद्रीय नेतृत्व के स्तर पर होता है. हमने तीनों विधायकों को मिलने के लिए बुलाया भी है. केंद्रीय नेतृत्व के साथ विचार-विमर्श कर न्यायोचित निर्णय लिया जायेगा.

गठबंधन सरकार बनने के बाद एक-दो छोड़ किसी बोर्ड निगम में कार्यकर्ताओं को स्थान नहीं मिला. कार्यकर्ता कब तक उम्मीद करते रहेंगे ? पार्टी ने इस पर क्या पहल की ? क्या इस मामले में पार्टी की सरकार नहीं सुन रही है?

बोर्ड-निगम में कार्यकर्ताओं को रखने के मामले पर सीएम से बात हो गयी है. कांग्रेस ने अपनी अनुशंसा भेज दी है. जल्द ही कार्यकर्ताओं को उचित स्थान मिल जायेगा. इसको तय करने में बहुत फैक्टर था. सबका ख्याल रखा गया है.

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की सदस्यता चल गयी है. अब चुनाव में कांग्रेस पार्टी का चेहरा कौन होगा?

सभी दल मिल कर लड़ेंगे, तो देखा जायेगा. राहुल जी सीधे और स्पष्ट बोलने वाले हैं. वह सरकार की नीतियों पर सवाल करते हैं, तो प्रताड़ित किया जाता है. टारगेट किया जाता है. अदाणी मामले पर सदन में जवाब मांगा तो सरकार ने एक शब्द नहीं बोला. विदेश में उनके बोले मुद्दे पर बोलने का समय मांगा, तो नहीं मिला. उन्होंने चुनाव के दौरान महंगाई के मामले में जब बोला तो न्यायालय से सबसे अधिक सजा मिल गयी. हम लोगों को न्यायालय पर भरोसा है. न्याय भी मिलेगा. आज वाकई देश अनकही आपातकाल वाली स्थिति में है. देश का लोकतंत्र खतरे में है. प्रश्न पूछने के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है. ऐसे में लोगों का संवैधानिक संस्थाओं से विश्वास उठ जायेगा. तब एनार्की होगी.

प्रदेश नेतृत्व में आने वाले समय में कोई बदलाव होगा क्या?

राजेश ठाकुर अच्छे से पार्टी का दायित्व निभा रहे हैं. इसी टीम ने संगठन को मजबूत किया है. समय और परिस्थिति के कारण अगर जरूरत पड़ी, तो बदलाव भी किया जा सकता है. पार्टी व्यक्तिगत एजेंडे पर काम नहीं करती है. संगठन की अपनी तैयारी होती है.

पिछली बार आजसू और भाजपा अलग-अलग लड़ी थी, तो महागठबंधन को फायदा हुआ था. अगर आने वाले चुनाव में दोनों पार्टियां साथ लड़ी , तो महागठबंधन की रणनीति क्या होगी ?

जहां, जिनकी पकड़ होगी, उसी आधार पर रणनीति बनानी होगी. आनेवाले समय में इस पर गंभीरता से विचार होगा.

वर्तमान सरकार में आपके चार मंत्री हैं, कई महत्वपूर्ण विभाग भी है. मंत्रियों के काम का कैसे आकलन करते हैं? क्या लगता है कि मंत्रियों का कामकाज चुनाव में सहयोग करेगा ?

यह सही है कि सभी मंत्रियों का परफॉरमेंस संतोषजनक नहीं है. और भी काम हो सकता था. उनको कहा गया है कि आने वाले समय में अच्छा काम करें. कुछ टॉस्क भी दिये गये है. अगर कुछ कमी रही तो जिम्मेदारी भी बदली जा सकती है. अभी मंत्रियों को अपने काम में सुधार लाने की जगह है.

कई बार आपके दल के विधायक ही कहते हैं कि मंत्री अच्छा काम नहीं कर रहे हैं, चेहरा बदलना चाहिए. आप इसको किस रूप में लेते हैं?

कांग्रेस लोकतांत्रिक पार्टी है. बोलने का अधिकार सभी को है. लेकिन बात पार्टी फोरम पर होनी चाहिए. अगर कार्यकर्ता असंतुष्ट हैं, तो ठीक नहीं है. लेकिन, कार्यकर्ताओं को केवल प्रचार के लिए बाहर ऐसी बात नहीं करनी चाहिए.

इस सरकार में जितने भी उप चुनाव हुए, उसमें महागंठबंधन की जीत हुई. रामगढ़ उपचुनाव में हार का क्या कारण रहा ? एक प्रभारी के रूप में इसे कैसे देखते हैं?

प्रभारी के रूप में अच्छा नहीं रहा. पिछली बार मुकाबला त्रिकोणीय था. इस बार स्थिति बदली थी. संगठन ने मजबूती से चुनाव लड़ा. सहयोगी का भी पूरा साथ मिला. विपक्षी पार्टी ने चुनाव के दौरान जो आर्थिक व्यवहार किया, वह हम लोगों के लिए संभव नहीं था.

कुछ विधायकों का आरोप रहता है. कई बार सदन में भी बोल चुके हैं कि सरकार से लेकर प्रशासन तक उनकी नहीं सुन रहा है. ऐसा है क्या ? इसे आप किस रूप में देखते हैं?

जन प्रतिनिधियों से लोगों की भी उम्मीद रहती है. जन प्रतिनिधि भी चाहते हैं, वह पूरा करें. हो सकता है कि कभी-कभी ऐसा होता है. मेरी जानकारी में बात आती है, तो कई बार सरकार से बात भी हुई है. इसके बावजूद मेरा मानना है कि 70 फीसदी काम जन प्रतिनिधि अपनी क्षमता से कर सकते हैं. 30 फीसदी के लिए सरकार की जरूरत पड़ती है.

क्या अगली बार का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस हेमंत सोरेन के नेतृत्व में ही लड़ेगी ?

गठबंधन तो सामूहिक नेतृत्व में ही बात करती है. विधानसभा चुनाव में झामुमो ही बड़ा भाई है.

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