रांची (ब्यूरो प्रमुख). भू-राजस्व मंत्री दीपक बिरूआ ने कहा है कि पूरे राज्य में विस्थापन से प्रभावित लोग हैं. आजादी के बाद से झारखंड में उद्योग और खनन से लोग विस्थापित हुए. कोल बियरिंग एक्ट के तहत पहले जमीन ली गयी. इसके बाद 2013 में अधिग्रहण कानून लागू हुआ. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विस्थापन की समस्या को लेकर गंभीर हैं. राज्य में विस्थापन आयोग के गठन की प्रक्रिया चल रही है. राज्य सरकार आयोग बनाकर पूरे राज्य की समीक्षा करेगी. मंगलवार को विधानसभा में भूमि अधिग्रहण में रैयतों के साथ हो रही नाइंसाफी का मामला उठने के बाद मंत्री श्री बिरुआ विधायकों के सवाल का जवाब दे रहे थे. बड़कागांव के विधायक रौशनलाल चौधरी ने बड़कागांव में एनटीपीसी द्वारा जमीन अधिग्रहण का मामला उठाते हुए कहा कि रैयतों को मुआवजा के तौर पर बहुत की कम पैसा ट्रेजरी में जमा करा दिया गया है. रैयत पैसा नहीं ले रहे हैं. ट्रेजरी में एक-दो रुपया तक जमा कराया गया है. हजारों लोग आंदोलनरत हैं. उनसे वार्ता तक की पहल नहीं हो रही है. सरकार ठोस नियम बनाये. हजारीबाग के विधायक प्रदीप प्रसाद ने कहा कि एनटीपीसी और सीसीएल ने गैर मजरुआ खास जमीन अधिग्रहित की है. रैयतों का इस पर अधिकार है, लेकिन उसकी रसीद नहीं कट रही है. अधिकारी मनमानी कर रहे हैं और मुआवजा नहीं मिल रहा है. सरकार को कोई पॉलिसी बनानी चाहिए. हरियाणा में 58 लाख रुपये प्रति एकड़ दर निर्धारित है. मांडू के विधायक निर्मल महतो ने कहा कि मैं खुद कोयला क्षेत्र से आता हूं. मेरी 24 एकड़ जमीन चली गयी. यहां खनन का काम आउट सोर्सिंग से चल रहा है. 1952-53 में 72-74 रुपये मिले. दो लोगों को नौकरी दी गयी. पैसा ट्रेजरी में पड़ा है. अगर एक वकील को भी इस काम में लगायेंगे, तो इतने पैसे से एक लीटर पेट्रोल नहीं होगा. सरकार मुआवजा की नयी दर तय करे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है