रांची.
धरती आबा बिरसा मुंडा से जुड़े राज्य में कई ऐतिहासिक स्थल हैं. ये स्थल माटी पुत्र वीर बिरसा मुंडा के संघर्ष और शहादत की कहानी कहते हैं. इस धरोहरों की देखभाल और सजाने-संवारने में कई लोग जुटे हैं. रांची जेल हो या समाधि स्थल, डाेंबारी बुरु, उलिहातू …बिरसा से जुड़े इन पावन और आस्था के केंद्र में व्यवस्था बनाने में सैकड़ों लोग योगदान दे रहे हैं. इन ऐतिहासिक स्थल में काम करनेवालों में गर्व का भाव है. वे खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं. लेकिन इनकी आय बहुत कम है, जिससे घर चलाना मुश्किल होता है.भाग्यशाली हूं कि बिरसा से जुड़े पवित्र स्थल में काम कर रहा हूं
अभिषेक कुमार जेल पार्क के क्षेत्र कार्य प्रभारी हैं. पिछले एक साल से यहां काम कर रहे हैं. वह कहते हैं कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं. यह झारखंड के साथ-साथ पूरे देश का एक महत्वपूर्ण स्थान है. लोगों को यहां घूमने आना चाहिए. यहां आदिवासी संस्कृति और बिरसा मुंडा के बारे में सीखने को मिलेगा. यहां बिरसा मुंडा के साथ-साथ देश के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में भी आप जान सकते हैं.लेजर शो दिखाते हैं सुरजीत, काम से खुश हैं, लेकिन सैलरी कम
सुरजीत कुमार जेल पार्क में पिछले तीन वर्षों से काम कर रहे हैं. वह लेजर शो दिखाने का काम करते हैं. सुरजीत बताते हैं कि मैं बिरसा मुंडा की डॉक्यूमेंट्री को लेजर लाइट के माध्यम से दिखाता हूं. इसके साथ-साथ अन्य संबंधित तकनीकी कार्य भी करना रहता है. यहां कई अधिकारी और नेता घूमने आते रहते हैं. काम अच्छा लगता है, लेकिन सैलरी कम है.एक दिन का मिल रहा है 285 रुपया
सधन यहां पिछले पांच साल से काम कर रही हैं. वह बताती हैं कि यहां काम करने में बहुत अच्छा लगता है. हमारे साथ कई लोग हैं. सब मिलजुल कर काम करते हैं. पैसा बहुत कम मिलता है. एक दिन का 285 रुपये मिलता है, जो बहुत कम है. इस महंगाई के दौर में 285 रुपये में कहां कुछ हो पाता है. दिन भर धूप हो, वर्षा हो काम करते रहते हैं. पैसा बढ़ाने की जरूरत है.यहां अधिकारी, नेता व अभिनेता आते रहते हैं
सुमी उरांव बताती हैं कि यहां आदिवासी की पारंपरिक चीजें दिखायी जाती है. पुराने जेल में बिरसा मुंडा का भी इतिहास दिखाया जाता है. हम लोगों को काम करते हुए अच्छा लगता है. यहां अधिकारी, नेता व अभिनेता आते रहते हैं. सुमी बताती है कि यहां हमें कम पैसा दिया जाता है. जबकि दिनभर काम में लगे रहते हैं.कैदी जैसा खट रहे हैं, पर पैसा नहीं
संचारिया बताती है कि जब से इस कारागार को खाली करा कर पार्क बनाया गया है, उस समय से काम कर रही हूं. यहां काम करते हुए गर्व महसूस होता है. परंतु पैसा ही कम दिया जाता है. शुरू में एक दिन की सैलरी 170 रुपये थी. उसके बाद 200 हुआ फिर 270 और अब 280 रुपये है. आज बाजार की मजदूरी तकरीबन 350 रुपये है. हमलोग का उतना भी हो जाये, तो अच्छा रहेगा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है