झारखंडी भाषा साहित्य को अभी आप किस मुकाम पर देखते हैं? क्या इसकी स्थिति से आप संतुष्ट हैं? इस सवाल पर डॉ निर्मल मिंज ने कहा कि झारखंडी भाषा साहित्य व संस्कृति पर मिशनरियों ने कुछ काम किया है. इसके अलावा व्यक्तिगत स्तर पर भी कई लोगों ने अपने-अपने स्तर पर काम किया है. पर भाषा संस्कृति को लेकर व्यापक रूप से जो काम होना चाहिए था, वह अभी भी बाकी है. शब्दों के मानकीकरण का काम मुंडारी में फादर होफमैन के जरिये हुआ. संथाली भाषा में भी बढ़िया काम हुआ है.
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डॉ निर्मल मिंज को साहित्य अकादमी का भाषा सम्मान
रांची: डॉ निर्मल मिंज को साहित्य अकादमी का भाषा सम्मान के लिए चुना गया है. डॉ निर्मल मिंज फरवरी में इस सम्मान से नवाजा जायेगा. कुड़ुख भाषा में लेखन अौर उसके लिए व्यापक काम के लिए डॉ निर्मल मिंज को यह सम्मान दिया जा रहा है. डॉ निर्मल मिंज ने कहा कि सम्मान मिलने से […]
रांची: डॉ निर्मल मिंज को साहित्य अकादमी का भाषा सम्मान के लिए चुना गया है. डॉ निर्मल मिंज फरवरी में इस सम्मान से नवाजा जायेगा. कुड़ुख भाषा में लेखन अौर उसके लिए व्यापक काम के लिए डॉ निर्मल मिंज को यह सम्मान दिया जा रहा है. डॉ निर्मल मिंज ने कहा कि सम्मान मिलने से खुशी महसूस हो रही है. जो काम किया है उसे पहचान मिली है.
पर बाकी भाषाअों में अभी भी बहुत काम करना बाकी है. मुझे लगता है कि जब तक जनजातीय भाषाअों की पढ़ाई प्राथमिक स्तर से नहीं होगी, तब तक इन भाषाअों की स्थिति नहीं सुधरेगी. भाषा संस्कृति को पहचान दिलाने अौर इनके विकास के लिए अौर काम करना होगा.
जनजातीय भाषाअों की पढ़ाई शुरू कराने वाले पहले व्यक्ति: साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा डॉ निर्मल मिंज को साहित्य एकादमी का भाषा सम्मान मिलना हमारे लिए गर्व की बात है. डॉ निर्मल मिंज पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में गोस्सनर कॉलेज में जनजातीय भाषाअों की पढ़ाई शुरू करायी थी. गोस्सनर कॉलेज एकीकृत बिहार में पहला कॉलेज था, जहां कुड़ुख, मुंडारी, संथाली अौर अन्य जनजातीय भाषाअों की पढ़ाई शुरू हुई थी. यह संभवत: 1971-72 की बात है. उनका जनजातीय अौर क्षेत्रीय भाषा विभाग को स्थापित करने में भी योगदान रहा. यह झारखंडी भाषाअों के आत्मसम्मान के लिए उठाया गया बहुत बड़ा कदम साबित हुआ. उनके प्राचार्य रहते गोस्सनर कॉलेज अपने गौरव के उस दौर में था, जहां वह फिर कभी नहीं पहुंच सका. वे झारखंड आंदोलन के बौद्धिक अगुवा में से एक हैं.
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