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भुइयां जनजाति ने माता सीता की मुक्ति में निभायी थी भूमिका

रांची. ओड़िशा में भुइयां बहुसंख्यक जनजाति है़ यह जनजाति सुंदरगढ़ जिले के विभिन्न क्षेत्रों (माझापाड़ा, सबडेगा, रामपुर, खमपुर व बलिशंकरा प्रखंड)में निवास करती है़. वहां भुइयां जनजाति का आगमन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व झारखंड से हुआ है़ ये लोग मुख्यत: कृषि कार्य व पशुपालन से जीवन यापन करते है़ं प्राचीन काल में जब वहां राजतंत्र […]

रांची. ओड़िशा में भुइयां बहुसंख्यक जनजाति है़ यह जनजाति सुंदरगढ़ जिले के विभिन्न क्षेत्रों (माझापाड़ा, सबडेगा, रामपुर, खमपुर व बलिशंकरा प्रखंड)में निवास करती है़.

वहां भुइयां जनजाति का आगमन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व झारखंड से हुआ है़ ये लोग मुख्यत: कृषि कार्य व पशुपालन से जीवन यापन करते है़ं प्राचीन काल में जब वहां राजतंत्र व जमींदारी प्रथा थी, तब यह जनजाति उनकी सहायक होती थी़ राजदरबार में राजा के प्रहरी होते थे़ उन्हें खंडैत भुइयां का पद दिया गया था़ भुइंया जनजाति आगे चल कर चार भाग खंडैत भुइंया, पैक भुइयां, परजा भुइयां व पहाड़िया भुुइयां में बंट गयी़ परजा भुइयां कृषि-पशुपालन से जीवन यापन करते हैं और आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टिकोण से काफी पिछड़े है़ं मुख्यत: क्योंझर व मयूरभंज इलाकों में रहते है़ं.

ओड़िशा में इसे अति प्राचीन जनजाति माना जाता है़ झारखंड में भुइयां को अनुसूचित जाति में रखा गया है, वहीं मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में इसे पिछड़ी जाति में रखा गया है़ भुइयां जाति में जनताजियों की तरह सारी विशेषताएं व आवश्यक तत्व विद्यमान है़ं, इसलिए झारखंड में भी ओड़िशा की तरह इसे अनुसूचित जनजाति में रखा जाना चाहिए़ यह बात गोस्सनर कॉलेज के मानवशास्त्र विभाग की सर्वेक्षण रिपोर्ट में कही गयी है़ एचओडी डॉ सुशील केरकेट्टा, डॉ सुभाष चंद्र सिंह, डॉ योताम कुल्लू के निर्देशन में बीए पार्ट- तीन प्रतिष्ठा के विद्यार्थियों ने 17 अक्तूबर से नौ नवंबर तक क्षेत्रीय अध्ययन किया था़.

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