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Ranchi news : झारखंड में पीएमएफएमइ से 3954 नये उद्योग लगे, 14500 को मिला रोजगार

सरकार ने दिया एक वर्ष का विस्तार. अब यह योजना मार्च 2026 तक चलेगी.

सुनील चौधरी, रांची.

झारखंड में प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम (पीएमएफएमइ) योजना को कैबिनेट ने एक वर्ष और बढ़ाने का निर्णय लिया है. अब यह योजना मार्च 2026 तक चलेगी. सरकार का दावा है कि इस योजना ने राज्य में खाद्य प्रसंस्करण के छोटे उद्यमों को नयी ऊर्जा दी है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की है. राज्य में अब तक 3954 इकाइयां इस योजना से लाभान्वित हुई हैं. इनमें से 78% लाभार्थी एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग से आते हैं. वहीं, लगभग 36% महिलाएं हैं. योजना से 14500 से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिला है. जिसमें सामान्य वर्ग के 880, ओबीसी वर्ग के 2225, एससी के 235 व एसटी वर्ग के 614 उद्यमी बने हैं. इनमें 1429 महिला उद्यमी हैं. सरकार ने कहा कि झारखंड में पीएमएफएमइ योजना रोजगार सृजन, महिला सशक्तीकरण और स्थानीय उत्पादों को बाजार से जोड़ने का मजबूत माध्यम बन चुकी है. राज्य सरकार को उम्मीद है कि 2026 तक और अधिक उद्यमी इससे लाभान्वित होंगे और झारखंड खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में नयी पहचान स्थापित करेगा.

गौरतलब है कि भारत सरकार ने जून 2020 में पीएमएफएमइ योजना की शुरुआत की थी. झारखंड में इसका क्रियान्वयन अक्तूबर 2021 से हुआ. इस योजना के तहत खर्च का भार केंद्र और राज्य सरकारें 60:40 के अनुपात में साझा करती हैं. योजना की प्रारंभिक अवधि पांच वर्ष थी, जो मार्च 2025 में समाप्त हो रही थी. मगर इसके सकारात्मक नतीजों को देखते हुए केंद्र ने इसे मार्च 2026 तक बढ़ा दिया. इसके साथ ही राज्य सरकार ने भी वर्ष 2026 तक अवधि विस्तार दे दिया है.

योजना का उद्देश्य

कैबिनेट को दिये गये प्रजेंटेशन में बताया गया कि योजना के का मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का आधुनिकीकरण और स्थापना करना था. व्यक्तिगत उद्यमियों को 10 लाख रुपये तक ऋण आधारित सहायता दी गयी. वहीं स्वयं सहायता समूह (एसएचजी), किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) और सहकारी समितियों को तीन करोड़ रुपये तक सहयोग देने की योजना है. सभी लाभार्थियों को 35% तक की क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी दी जाती है. सरकार द्वारा प्रशिक्षण, ब्रांडिंग, पैकेजिंग और विपणन में सहयोग किया जाता है. उद्योग विभाग द्वारा कहा गया कि यह योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संबल देने वाली साबित हो रही है. महिलाओं और युवाओं को स्वरोजगार के अवसर मिले हैं और स्थानीय उत्पादों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है.

योजना के तहत सफलता की कई कहानियां भी

एमवीएम बाघीमा पालकोट एफपीसी (गुमला) : रागी लड्डू, कुकीज और स्नैक्स के उत्पादन से 4.5 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार.

प्योरश डेयरी फूड्स (रांची) : डेयरी और फ्रोजन उत्पादों से आठ करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबारचंदा कुमारी (रांची) : मशरूम पापड़, नूडल्स और अचार बनाकर 90 लाख रुपये की आमदनी.

श्रेष्ट फूड प्रोडक्ट्स (चैपारण) : मिठाई और नमकीन से दो करोड़ रुपये का कारोबार.

नोट : इसके अलावा सहजन, इमली, धान, लेमनग्रास, मशरूम, मधु, पेड़ा, मिठाई, मधु आदि की इकाइयां भी लगायी गयी हैं.

पिछले वित्तीय वर्ष में 32.11 करोड़ रुपये दिये गये थे

वित्तीय वर्ष 2024-25 में केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर 32.11 करोड़ रुपये स्वीकृत किये, जिनमें से लगभग 27.85 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. आगामी वर्ष 2025-26 के लिए केंद्र सरकार ने 25 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं.

देशभर में पहुंच रहे हैं परंपरागत उत्पाद

योजना के कारण झारखंड के परंपरागत खाद्य उत्पाद जैसे दलहन, रागी, तेलहन, फल-सब्जियां, दुग्ध उत्पाद, मसाले और स्नैक्स अब आधुनिक पैकेजिंग और ब्रांडिंग के साथ देशभर में पहुंच रहे हैं. कई स्वयं सहायता समूह अब ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर अपने उत्पाद बेच रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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