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धनुर्मास चौदह जनवरी तक
रांची : श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर (श्री तिरूपति बालाजी) मंदिर में धनुर्मास र्पयत गोदोत्सव एवं वैकुण्ठोत्सव विधि पूर्वक मनाया जाता है. इस वर्ष धनुर्मास 14 जनवरी 2015 तक मान्य है. रांची में अवस्थित यह उत्सव श्री वैष्णव जगत के श्री रामानुजाचार्य (श्री) संप्रदाय में बहुत महत्व रखता है. तमिल भाषा में धनुर्मास को मार्गसी कहा जाता […]
रांची : श्री लक्ष्मी वेंकटेश्वर (श्री तिरूपति बालाजी) मंदिर में धनुर्मास र्पयत गोदोत्सव एवं वैकुण्ठोत्सव विधि पूर्वक मनाया जाता है. इस वर्ष धनुर्मास 14 जनवरी 2015 तक मान्य है. रांची में अवस्थित यह उत्सव श्री वैष्णव जगत के श्री रामानुजाचार्य (श्री) संप्रदाय में बहुत महत्व रखता है.
तमिल भाषा में धनुर्मास को मार्गसी कहा जाता है. इस मास में प्रत्येक दिन भगवान को तैल सुगंधित इत्रदि से सुवासीत कर नये-नये वस्त्र और पुष्पाभार से अलंकृत किया जाता है. रात्रि में शयनाधिवास के समय ही सभी प्रतिमाओं में गर्म शॉल डाला जाता है.
प्रत्येक दिन सुप्रभातम (विश्वरुपदर्शनम) के उपरांत मंत्र पुष्प, तिरूपा वई गोदा स्तुति आदि मंत्रों से तिरू आराधना की जाती है और पूरे महीने पौंगल महा प्रसाद का बालभोग नेवैद्य कर श्रद्धालुओं के बीच श्रद्धा पूर्वक इसका वितरण किया जाता है. आंडाल देवी (गोदंबा) ने भगवान श्रीरंगमन्नार रंगनाथ रिझाने के लिए तिरूप्पावई नामक संगीत और नाचिचारतिरूमोलि नामक स्त्रोत की रचना की जो कि पूरे धनुर्मास में 30 दिनों के लिए 30 अलग-अलग संगीत की रचना कर गायन की गयी है.
भगवान रंगनाथ श्रीहरि वेंकटेश के ही प्रारूप हैं. सभी युगों में भगवान नारायण अनेकानेक अवतार धारण करते रहते हैं. सभी अवतारों में भगवान चतरुव्यूह रूप धारण करते हैं. इस अवतार में श्री भगवान वेंकटेश, वरदराज, रंगनाथ और श्रीनिवास इन चतरुव्यूह रूप में, वीर्य, ऐश्वर्य ज्ञान, बल और शक्ति से सृष्टि का संहार, पोषण और संरचना करते रहते हैं. सूर्य नारायण को धनु-राशि से प्रवेश कर जाने के कारण इस मास को धनुर्मास नाम से जाना जाता है. इसे खरमास भी कहा जाता है. हर महीने सूर्य देव अपने गणों को बदल कर यात्राा करते रहते हैं. किंतु इस धनुर्मास र्पयत भगवान श्रीविष्णु स्वयं ही सूर्यरूप में ऋषि विश्वामित्र, ऋषि कश्यप, सर्प, यक्ष, गंधर्व, अच्सरा, नाग आदि को अपने साथ रख कर यात्रा करते हैं.
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