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जमशेदपुर पूर्वी के विधायक दीनानाथ पांडेय: झोला बाबा के नाम से थे मशहूर, पैदल चलती थी बाबा की सरकार

संजीव भारद्वाज जमशेदपुर : साफ-सुथरी और सहज राजनीति की जब भी चर्चा होती है, तो जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा से तीन बार विधायक रहे दीनानाथ पांडेय का नाम जरूर लिया जाता है. 30 अक्तूबर 1934 को बक्सर (बिहार) के पांडेपुर में जन्मे दीनानाथ पांडेय का 11 जनवरी (2019) को टीएमएच में निधन हो गया. दीनाबाबा के […]

संजीव भारद्वाज

जमशेदपुर : साफ-सुथरी और सहज राजनीति की जब भी चर्चा होती है, तो जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा से तीन बार विधायक रहे दीनानाथ पांडेय का नाम जरूर लिया जाता है. 30 अक्तूबर 1934 को बक्सर (बिहार) के पांडेपुर में जन्मे दीनानाथ पांडेय का 11 जनवरी (2019) को टीएमएच में निधन हो गया. दीनाबाबा के नाम से मशहूर दीनानाथ पांडेय 1977 में जनता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ कर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे. इसके बाद भाजपा के टिकट पर 1980 में जीते.

1985 में कांग्रेस प्रत्याशी डी नरीमन के हाथों पराजित हुए, लेकिन 1990 में फिर जीत हासिल की. जब 1995 में इसी सीट पर भाजपा ने रघुवर दास (वर्तमान मुख्यमंत्री) को टिकट दे दिया. नाराज दीनानाथ पांडेय निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे. लेकिन, वह चाैथे नंबर पर रहे. टिकट कटने के बाद उन्होंने भाजपा आलाकमान को पत्र लिख कर टिकट काटने का कारण पूछा था. हालांकि इसका जवाब पार्टी की ओर से नहीं दिया गया. टिकट कटने से निराश दीना बाबा ने 1999 में बक्सर आैर 2002 में गाेड्डा लोकसभा का उपचुनाव शिवसेना के टिकट पर लड़ा. लेकिन, 2008 में वह फिर भाजपा में लौट आये.

पैदल ही चलाते थे अपनी सरकार : दीनानाथ पांडेय इतने सरल थे कि उन्होंने कभी अपनी कार या अन्य गाड़ी नहीं खरीदी. कंधे पर हमेशा एक झोला लटका कर चल देते थे. उसी झोले में उनका विधायक का लेटर पैड और स्टांप रहता था. जब भी किसी ने मदद मांगी, लेटर पैड पर लिख कर दे दिया. किसी को पैरवी की जरूरत होती, तो वे उसके साथ साइकिल पर बैठ कर भी चले जाते थे. सरकारी अधिकारी भी उनकी ईमानदारी के मुरीद थे.

दीनानाथ पांडेय ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद साइंस कॉलेज पटना से इंटर की पढ़ाई की. उनकी प्रारंभिक शिक्षा ब्रह्मपुर स्कूल बक्सर में हुई. साइंस कॉलेज पटना से स्नातक हुए और 1954 में गन कैरेज फैक्ट्री जबलपुर में इंजीनियर के पद पर बहाल हुए. 1958 में बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन ज्वाइन किया. 1965 टेल्को में सहायक फोरमैन पर बहाल हुए. 1970 भारतीय जनसंघ में शामिल होकर राजनीति शुरू की. 1972 में पहला चुनाव जनसंघ के टिकट पर लड़ा, हार गये. 1975 इमरजेंसी के दौरान जेल गये.

दीनानाथ पांडेय जमशेदपुर पूर्वी के लोगों के चहेते थे. जनता के मुद्दों को लेकर प्रशासन से दो-दो हाथ करनेवाले दीनानाथ पांडेय 1992 में नामदा बस्ती को हटाने की प्रशासन की मुहिम के खिलाफ उठ खड़े हुए और लोगों के समर्थन में आये. वहां हुए पथराव में उनका सिर भी फट गया था. लेकिन उस आंदोलन की वजह से नामदा बस्ती से अतिक्रमण नहीं हटा और बस्ती बच गयी. उनके प्रयास से बिरसा नगर थाना की स्थापना हुई. वहां पोस्ट ऑफिस भी खुला. 1981 में दीनानाथ पांडेय ने स्थायीकरण के लिए आंदोलन चला. टाटा कंपनी को झुकना पड़ा. टेल्को में 2700 गरीब आदिवासियों को रोजगार मिला.

भारत-चीन युद्ध में सैनिकों को बॉर्डर तक पहुंचाया
दीनानाथ पांडेय वर्ष 1962 से 1965 तक बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन में भी एक्जीक्यूटिव इंजीनियर थे. उनके बेटे आरपी पांडेय बताते हैं कि जब भारत-चीन युद्ध हुआ, तब पिताजी पर सैनिकों को बॉर्डर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मिली. पढ़ाई पूरी करने के बाद जबलपुर गन फैक्ट्री में अप्रेंटिस की पढ़ाई के बाद एएमआइइ की पढ़ाई पूरी की थी. उनकी देखरेख में तब के भारत के सबसे ऊंचे स्थल, लेह लद्दाख के चिसूल में सड़क तैयार हुई. 1965 में उन्होंने टेल्को में असिस्टेंट फोरमैन के पद पर याेगदान दिया और 1996 में सेवानिवृत्त हुए.

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