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झारखंड आंदोलन के लिए नौकरी तक की दे दी आहुति, सपनों से दूर अब भी हैं अपेक्षाएं

।। अरविंद मिश्रा ।। रांची : झारखंड आज अपना 20वां स्‍थापना दिवस मना रहा है. इस मौके पर कई कार्यक्रम राज्‍यभर में हो रहे हैं. खुशी मनायी जा रही है, मिठाइयां बांटी जा रही हैं. लेकिन आज अगर हम इस दिन को मना रहे हैं, तो इसके पीछे कई योद्धाओं की अहम भूमिका रही. उन्‍होंने […]

।। अरविंद मिश्रा ।।

रांची : झारखंड आज अपना 20वां स्‍थापना दिवस मना रहा है. इस मौके पर कई कार्यक्रम राज्‍यभर में हो रहे हैं. खुशी मनायी जा रही है, मिठाइयां बांटी जा रही हैं. लेकिन आज अगर हम इस दिन को मना रहे हैं, तो इसके पीछे कई योद्धाओं की अहम भूमिका रही. उन्‍होंने अपना सबकुछ त्‍यागकर अपना पूरा जीवन झारखंड अलग राज्‍य की मांग में लगा दिया.

झारखंड आंदोलनकारियों में कई नामों की चर्चा होती है, लेकिन हॉकी खिलाड़ी ‘मरांग गोमके’ जयपाल सिंह को झारखंड आंदोलन का अगुआ माना जाता है. मरांग गोमके ने सबसे पहले झारखंड अलग राज्‍य की कल्‍पना की थी. सांसद रहते हुए उन्‍होंने संसद में इस मुद्दे को कई बार प्रमुखता से उठाया.

जयपाल सिंह के बाद झारखंड आंदोलन को एनइ होरो और बागुन सुम्ब्रुई ने आगे बढ़ाया. आंदोलन के दौरान बागुन सुम्ब्रुई को अपने आक्रामक तेवर की वजह से जाना व पहचाना जाता था. अपने इलाके में स्वायत्तता और क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने की मांग कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उन्होनें चुनौती दी थी.

मरांग गोमके की लगायी आग को हवा देने में झारखंड के कवि, कलाकार, साहित्‍यकार और समाजसेवकों की बड़ी भूमिका रही. यहां के कवि-कलाकारों ने अपने गीतों और रचनाओं से आंदोलनकारियों को आंदोलित किया. जिसका परिणाम हुआ कि 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्‍य के रूप में अस्‍तित्‍व में आया.

झारखंड अलग राज्‍य लेने में डॉ राम दयाल मुंडा, बीपी केशरी, लाल रणविजय नाथ शाहदेव, डॉ प्रफुल्‍ल कुमार राय की भूमिका को कौन भूल सकता है. उसी तरह नागपुरी के विख्‍यात गायक मधुमंसुरी हंसमुख, क्षितिज कुमार राय, महावीर नायक, सीडी सिंह और कई कवि साहित्‍यकारों ने अपने गीत व रचनाओं से झारखंड आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया.

इनमें कई नाम अब दिवंगत हो चुके हैं, लेकिन झारखंड आंदोलन में कई गीत गाने और गीतों की रचना करने वाले गायक मधुमंसुरी हंसमुख का कहना है कि जिस उद्देश्‍य को लेकर उन लोगों ने आंदोलन में हिस्‍सा लिया था, वो आज भी अधुरा है. हालांकि झारखंड अलग राज्‍य तो मिल गया, लेकिन हम आज भी शोषण और लूट-खसोट के शिकार हो रहे हैं. हम अपने घर में ही अंजान हैं. यहां के लोगों की पहचान आज खतरे में है.

मधुमंसुरी हंसमुख ने बताया सबसे पहले उन्‍होंने एनी होरो के लिए 10 दिसंबर 1960 में पहला गीत लिखा था. उस गीत का प्रभाव हुआ कि आंदोलन में बड़ी संख्‍या में लोग कूद पड़े. उनकी मांग है कि अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, यहां के लोगों को नौकरी मिलनी चाहिए. भ्रष्‍टाचार पर लगाम लगना चाहिए और यहां की जल-जंगल जमीन जो हमारी पहचान है, उसकी रक्षा सुनिश्‍चित किया जाए.

उसी तरह झारखंड आंदोलन में कई गीतों की रचना करने वाले क्षितिज कुमार राय ने कहा, जिस उमंग और उत्‍साह के साथ उन्‍होंने सरकारी शिक्षक की नौकरी को छोड़कर आंदोलन में कूदे, वो आज पूरा नहीं हो पाया. वो खुद को ठगा महससू कर रहे हैं. उन्‍होंने बताया, 1962-63 में उन्‍होंने कई गीत लिखे और गाये. भगवान बिरसा को याद करते हुए उन्‍होंने एक ऐसी रचना की थी, जिसे पढ़कर लोग और आंदोलित हो गये.1974 में डॉ बीपी केशरी और प्रफुल्‍ल कुमार राय ने उनकी भेंट एनी होरो से करायी. एनी होरो उस समय झारखंड आंदोलन के अग्रणी नेता हुआ करते थे. उन्‍होंने क्षितिज कुमार राय से आंदोलन के गीत लिखने के लिए कहा. उनके आग्रह पर क्षितिज कुमार राय ने आंदोलन की आग को और भड़काने वाली रचना की.

उन्‍होंने कहा, हम आज भी आजाद नहीं हैं. अपने घर में ही बेगाने हैं. यहां के लोगों के पास नौकरी नहीं है. लूट-खसोट पहले की तुलना में और बढ़ गयी है. शोषण और भ्रष्‍टाचार भी चरम पर है. क्षितिज कुमार राय ने कहा, उनकी राय है कि आज एक बार फिर से एक आंदोलन की जरूरत है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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