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विधानसभा चुनाव : झारखंड में आधा से ज्यादा विधायक नहीं बचा पाते हैं अपनी सीट, ट्रेंड के अनुसार उम्मीदवार देती हैं पार्टियां

सुनील चौधरी प्रत्याशियों के लिए आसान नहीं होता है मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरना रांची : झारखंड का चुनावी ट्रेंड हमेशा बदलावों से भरा रहता है. जनता एक बार जिसे चुन लेती है, उन्हें करीब-करीब फीसदी मामलों में दोबारा नहीं चुनती. झारखंड का ट्रेंड ऐसा रहा है कि दूसरी बार चुनावी जीत दर्ज करना […]

सुनील चौधरी

प्रत्याशियों के लिए आसान नहीं होता है मतदाताओं की उम्मीदों पर खरा उतरना

रांची : झारखंड का चुनावी ट्रेंड हमेशा बदलावों से भरा रहता है. जनता एक बार जिसे चुन लेती है, उन्हें करीब-करीब फीसदी मामलों में दोबारा नहीं चुनती. झारखंड का ट्रेंड ऐसा रहा है कि दूसरी बार चुनावी जीत दर्ज करना विधायकों के लिए मुश्किल भरा होता है. 81 विधायकों में 50 प्रतिशत से अधिक विधायक चुनाव हार जाते हैं. कुछेक सीट ही ऐसी हैं, जहां से लगातार एक ही व्यक्ति विधायक बनता रहा हो. इसमें प्रमुख रूप से रांची, रामगढ़, जमशेदपुर पूर्वी, खूंटी व पोड़ैयाहाट जैसी सीट है, जहां से सीपी सिंह, चंद्रप्रकाश चौधरी, रघुवर दास, नीलकंठ सिंह मुंडा और प्रदीप यादव जैसे नेता लगातार जीत दर्ज करते रहते हैं.

झारखंड निर्माण के बाद से अब तक तीन बार चुनाव हुए हैं. वर्ष 2005, वर्ष 2009 और वर्ष 2014 में. पर इनमें ज्यादातर मतदाताओं ने परिवर्तन के लिए ही मतदान किया है. वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में 50 विधायक ऐसे थे, जो दोबारा जीत कर नहीं आ सके. वर्ष 2009 के चुनाव में 61 विधायकों को जनता ने बदल दिया.

वहीं वर्ष 2014 के चुनाव में 55 विधायकों को जनता ने जीतने का मौका नहीं दिया. और तो और तीनों चुनावों का ट्रेंड रहा है कि किसी भी पार्टी को बहुमत न देना. तीनों चुनाव में कोई पार्टी भी ऐसी नहीं है, जो अपने दम पर 41 सीटों पर जीत दर्ज की हो. वर्ष 2014 के चुनाव में बदलाव का असर इतना बड़ा था कि भाजपा के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, आजसू के नेता और पूर्व मंत्री सुदेश महतो, झामुमो के हेमंत सोरेन (दुमका सीट) तथा भाकपा माले के विनोद सिंह को भी हार का सामना करना पड़ा. हालांकि इस चुनाव में भी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. भाजपा को 37 सीट ही मिली थी, आजसू के साथ सरकार को बहुमत मिली थी. बाद में झाविमो के छह विधायक भाजपा में शामिल हो गये, तब भाजपा पूर्ण बहुमत वाली सरकार बन पायी.

आंकड़ों को देखें, तो 2005 के चुनाव में भाजपा के 32 में से 13, झामुमो के 12 में से छह, कांग्रेस के 11 में से चार और जदयू-समता पार्टी के आठ में से तीन, राजद के नौ में से दो विधायकों ही दोबारा जीत पाये थे.

2009 के चुनाव में झामुमो के 17 में से पांच, बीजेपी के 30 में से चार, कांग्रेस के नौ में से दो, आजसू के दो में से दो, राजद के सात में से एक, माले के एक और झारखंड पार्टी के एक विधायक दोबारा जीत पाये थे. तीन निर्दलीय विधायक भी दोबारा जीत कर आये थे. 2014 में झामुमो के 18 में से सात, भाजपा के 18 में से 10, आजसू के पांच में से तीन झापा के में एक विधायक अपनी सीट बचा पाये थे. राजद के पांच में से पांचों विधायक हार गये थे.

ट्रेंड के अनुसार उम्मीदवार देती हैं पार्टियां

कई सीटों पर उम्मीदवार से नाखुश होने की ट्रेंड देख कर ही पार्टियां अपने उम्मीदवार को बदल देती है. जिसके कारण पार्टियों में बड़े पैमाने पर टिकट कटते हैं. इस बार भी माना जा रहा है कि भाजपा, कांग्रेस व झामुमो में कई लोगों का टिकट कटेगा और नये चेहरे को मौका दिया जा सकता है.

कब कितने विधायक चुनाव हारे

वर्ष संख्या

2005 50

2009 61

2014 55

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