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रांची : जुडको के मुख्य अभियंता मामले में सदन को किया गुमराह

शकील अख्तर इंजीनियर की नियुक्ति प्रक्रिया में पूछे गये सवाल के जवाब में विभाग ने उन्हें बचाने के लिए दिया था गलत आदेश का हवाला रांची : नगर विकास विभाग ने जुडको के मुख्य अभियंता राजकुमार बासुदेव के मामले में सदन को गुमराह किया. इस इंजीनियर की नियुक्ति प्रक्रिया के सिलसिले में पूछे गये सवालों […]

शकील अख्तर
इंजीनियर की नियुक्ति प्रक्रिया में पूछे गये सवाल के जवाब में विभाग ने उन्हें बचाने के लिए दिया था गलत आदेश का हवाला
रांची : नगर विकास विभाग ने जुडको के मुख्य अभियंता राजकुमार बासुदेव के मामले में सदन को गुमराह किया. इस इंजीनियर की नियुक्ति प्रक्रिया के सिलसिले में पूछे गये सवालों के जवाब में विभाग ने उन्हें बचाने के उद्देश्य से उस आदेश का हवाला दिया, जिसकी वैधता संबंधित मामले में कैबिनेट के फैसले का बाद समाप्त हो चुकी है.
इस पूरे प्रकरण में सबसे रोचक पहलू यह है कि बासुदेव की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठानेवाले नगर विकास मंत्री सीपी सिंह ने भी सदन को भेजे गये इस जवाब पर अपनी सहमति दी.
माॅनसून सत्र में उठाये गये थे सवाल : विधानसभा के माॅनसून सत्र में जुडको के मुख्य अभियंता की नियुक्ति प्रक्रिया पर दो महत्वपूर्ण सवाल उठाये गये थे.
पहले सवाल में यह पूछा गया था कि क्या बासुदेव की नियुक्ति विज्ञापन प्रकाशित किये बिना ही सिर्फ बायोडाटा लेकर तीन साल के लिए की गयी है, जो वित्त विभाग के संकल्प के खिलाफ है. दूसरे सवाल में यह पूछा गया था कि क्या कांट्रैक्ट की नियुक्ति में मुख्य सचिव के माध्यम से सीएम की सहमति जरूरी है.
इन सवालों के जवाब में सरकार की ओर से दिये गये जवाब से पता चलता है कि विभाग को 2015 में ही इस बात की जानकारी मिल गयी थी कि अपवादित परिस्थिति में इस इंजीनियर को 2017 में कांट्रैक्ट के आधार पर नियुक्त करने की जरूरत होगी. इसलिए 2015 में ही कांट्रैक्ट के आधार पर तीन साल के लिए नियुक्त करने के प्रस्ताव पर मुख्य सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री की सहमति ले ली गयी थी.
विभाग की ओर से दिये गये पहले सवाल के जवाब में विज्ञापन प्रकाशित कराने या नहीं कराने के मुद्दे पर चुप्पी साध ली गयी. सिर्फ जुडकों में पदों के सृजन और इन पदों को प्रतिनियुक्ति या संविदा के आधार पर नियुक्त करने पर कैबिनेट की सहमति का उल्लेख किया गया.
बासुदेव की नियुक्ति का उल्लेख करते हुए जवाब में लिखा गया कि एक नवंबर 2015 को मुख्य सचिव के माध्यम से संविदा के आधार पर तीन साल के लिए नियुक्त करने की अनुमति ली गयी थी. इसी अनुमति के आधार पर श्यामलाल मेहरा का कार्यकाल समाप्त होने पर बासुदेव को तीन साल के लिए नियुक्त किया गया. यहां यह उल्लेखनीय है कि कैबिनेट ने कांट्रैक्ट पर नियुक्त कर्मचारियों का वेतन भत्ता निर्धारित करने और कांट्रैक्ट की अवधि तय करने का प्रस्ताव 2016 में पारित किया.
इसमें कांट्रैक्ट पर एक साल के लिए नियुक्ति करने और इसे एक-एक साल के लिए अधिकतम तीन साल तक काम लेने का प्रावधान किया गया. वित्त विभाग ने 28 अप्रैल 2016 को संकल्प जारी कर इसे प्रभावी कर दिया. इसके साथ ही नवंबर 2015 में मुख्यमंत्री द्वारा संविदा पर तीन साल के लिए नियुक्त करने के मामले में दी गयी सहमति की वैधता समाप्त हो गयी. विभाग ने दूसरे सवाल के जवाब में कहा कि कांट्रैक्ट पर नियुक्ति के लिए मुख्य सचिव के माध्यम से सीएम की सहमति जरूरी नहीं है.
लेकिन इसी सवाल के जवाब में वर्ष 2002 में तत्कालीन वित्त सचिव देवाशीष गुप्ता के हस्ताक्षर से जारी संकल्प का हवाला देते हुए यह कहा कि अपवादित परिस्थिति में संविदा पर नियुक्ति के लिए मुख्य सचिव के माध्यम से मुख्यमंत्री की सहमति जरूरी है. यहां यह बात उल्लेखनीय है कि इस संकल्प में भी संविदा पर एक साल के लिए नियुक्ति का प्रावधान है.

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