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रांची :सेव द चिल्ड्रेन की वैश्विक बचपन रिपोर्ट 2019 जारी, शहरी क्षेत्रों में बाल विवाह में आयी कमी

रांची : बाल विवाह देश में एक बड़ी समस्या रही है, लेकिन शिक्षा के प्रसार, स्वास्थ्य सुविधाअों में वृद्धि, जागरूकता व सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के सामूहिक प्रयास के कारण इसमें कमी आ रही है. सेव दी चिल्ड्रेन की वैश्विक बचपन रिपोर्ट 2019 के आंकड़े बताते हैं कि 15-19 वर्ष आयु की विवाहित लड़कियों की […]

रांची : बाल विवाह देश में एक बड़ी समस्या रही है, लेकिन शिक्षा के प्रसार, स्वास्थ्य सुविधाअों में वृद्धि, जागरूकता व सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के सामूहिक प्रयास के कारण इसमें कमी आ रही है.
सेव दी चिल्ड्रेन की वैश्विक बचपन रिपोर्ट 2019 के आंकड़े बताते हैं कि 15-19 वर्ष आयु की विवाहित लड़कियों की संख्या वर्ष 2000 की तुलना में 51 फीसदी कम हुई है. यह वर्ष 1990 की तुलना में 63 फीसदी कम है. रिपोर्ट के अनुसार अगर इन दरों में कमी नहीं आयी होती तो आज देश में विवाहित लड़कियों की संख्या 90 लाख ज्यादा होती. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस)-4 (2015-16) के मुताबिक, 18 वर्ष से पहले विवाह करने वाली लड़कियों का प्रतिशत 26.8 है, जो कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस)-3 (2005-06) में 47.4 था. यह घटता हुआ ट्रेंड दिखाता है.
जहां तक झारखंड की बात है,तो यहां भी बाल विवाह में कमी आयी है. एनएफएचएस 2015-16 के तहत शहरी क्षेत्रों में बाल विवाह की दर 21.1 फीसदी है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 44.1 फीसदी है. किशोरावस्था में गर्भ धारण करने की दर शहरी क्षेत्रों में 6.6 प्रतिशत रह गयी है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह दर 13.9 प्रतिशत है.
शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह की दर अभी भी ज्यादा
हालांकि पूरे देश की बात करें तो आज भी शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह की दर ज्यादा है. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए 15-19 वर्ष आयु वर्ग के लिए यह आंकड़ा क्रमश: 14.1 और 6.9 फीसदी है. बाल विवाह के मामले में राज्यवार और आर्थिक स्थितियों में भी फर्क विद्यमान हैं. अवयस्क उम्र में मां बनने के मामलों में 2000 से 63 फीसदी और 1990 से 75 फीसदी की कमी आयी है.
देश के लिए अहम उपलब्धि
सेव द चिल्ड्रेन की सीइओ बिदिशा पिल्लई इसे देश के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताती है. पिल्लई ने कहा कि आने वाली अगली पीढ़ी पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि हमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों व संपदा के मामले में लोगों के बीच पाये जाने वाले अंतर को कम करने पर फोकस करना होगा. वंचित बच्चों, जो सबसे पीछे रह जाते हैं, उन तक अपनी पहुंच बनाने के लिए अभी काफी कुछ करना बाकी है.
बच्चों के लिए बनायी गयी विकास नीतियों और कार्यक्रमों में यह अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें कमजोर सामाजिक समूहों के बच्चों, गरीब परिवारों और विकास सूचकांकों में न्यूनतम प्रदर्शन करने वाले राज्यों में रहने वाले बच्चों पर खास फोकस किया जाये. सरकार के प्रमुखों और मुख्य नीति निर्माताओं के बीच राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व ने लाखों अन्य बच्चों के अस्तित्व की रक्षा और उनके आगे बढ़ने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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