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चालीसा का पुण्यकाल- 32 : अच्छे होते हैं मदद के लिए बढ़े हाथ
एक सड़क किनारे खंभे पर लटके कागज पर लिखा था- मेरे 50 रुपये गुम हो गये हैं, जिसे मिले वह कृपया मेरे घर पहुंचाने का कष्ट करे़ं मैं एक गरीब और बूढ़ी औरत हू़ं इसके साथ ही पता भी लिखा था़ एक आदमी ने उसे पढ़ा और वह कागज पर लिखे हुए पते पर पहुंच […]
एक सड़क किनारे खंभे पर लटके कागज पर लिखा था- मेरे 50 रुपये गुम हो गये हैं, जिसे मिले वह कृपया मेरे घर पहुंचाने का कष्ट करे़ं मैं एक गरीब और बूढ़ी औरत हू़ं इसके साथ ही पता भी लिखा था़
एक आदमी ने उसे पढ़ा और वह कागज पर लिखे हुए पते पर पहुंच गया़ अपनी जेब से 50 रुपये निकाल कर उसने उस वृद्ध महिला को दिया.
वृद्धा पैसे लेते हुए रो पड़ी और कहने लगी- तुम 12वें आदमी हो, जिसे मेरे पचास रुपये मिले और जो इसे मुझे पहुंचाने चला आया. जब वह व्यक्ति पैसे देकर जाने लगा, तो वृद्धा ने उसे आवाज देते हुए कहा- बेटा, जाते हुए वह कागज जरूर फाड़ देना. क्योंकि न मैं पढ़ी लिखी हूं और न ही मैंने वह कागज वहां चिपकाया है.
दुनिया में आज भी ऐसे अनेक लोग हैं, जो अज्ञात रहते हुए दूसरों की मदद करते है़ं किसी ने सच कहा है कि सहायता करने वाले हाथ, प्रार्थना करने वाले हाथों से बेहतर होते है़ं ईश्वर को प्रसन्नता तब होती है, जब हम दूसरों की मदद करते हैं. फादर अशोक कुजूर, डॉन बॉस्को यूथ एंड एजुकेशनल सर्विसेज बरियातू के निदेशक
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