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रांची : लोकल मेटेरियल से बन रही है भारी वाहनों के चलने लायक टू लेन सड़क, नीदरलैंड से ली गयी तकनीकी सहायता
नीदरलैंड से ली गयी तकनीकी सहायता पर्यावरण संरक्षण का रखा जा रहा ध्यान रांची : पथ निर्माण विभाग के इंजीनियरों की टीम ने बुधवार को बिजूपाड़ा-बरहे सड़क का निरीक्षण कर निर्माण कार्य का जायजा लिया. टीम को बताया गया कि बिजूपाड़ा चौक से बरहे जानेवाली इस टू लेन सड़क (लागत 6.03 करोड़) को प्रायोगिक तौर […]
नीदरलैंड से ली गयी तकनीकी सहायता पर्यावरण संरक्षण का रखा जा रहा ध्यान
रांची : पथ निर्माण विभाग के इंजीनियरों की टीम ने बुधवार को बिजूपाड़ा-बरहे सड़क का निरीक्षण कर निर्माण कार्य का जायजा लिया. टीम को बताया गया कि बिजूपाड़ा चौक से बरहे जानेवाली इस टू लेन सड़क (लागत 6.03 करोड़) को प्रायोगिक तौर पर बिल्कुल नयी तकनीक से बनाया जा रहा है. सड़क का काम थोड़ा-बहुत ही बचा है.
इंजीनियरों की टीम को बताया गया कि इस सड़क के निर्माण में क्रशर मेटेरियल (चिप्स या बड़े आकार के पत्थर) का उपयोग बिल्कुल नहीं किया जा रहा है. केवल लोकल मेटेरियल यानी मिट्टी आदि के इस्तेमाल से सड़क बनायी जा रही है.
टेक्निकल टीम ने बताया कि अगर सामान्य तकनीकी के प्रयोग से सड़क बनवायी जाती, तो मात्र 3.740 किमी लंबी सड़क पर करीब 250 हाइवा क्रशर मेटेरियल की खपत होती, लेकिन इस सड़क पर यह नहीं लगाया गया. बल्कि मिट्टी व सीमेंट को मिक्स करके सड़क बनायी जा रही है. इसमें नीदरलैंड की तकनीकी का सहयोग लिया गया है. वहां से तरल पदार्थ मंगवाये गये, जो काफी महंगे हैं. बाद में उसका इस्तेमाल किया गया है.
इस तरह सड़क बिल्कुल पीसीसी रोड की तरह मजबूत बन गयी है. अब उस पर बिटुमिंस का काम किया जायेगा.औद्योगिक एरिया के लिए बन रही सड़क : इस इलाके में छह बड़ी कंपनियों व एक शिक्षण संस्थान को सरकार ने जमीन आवंटन किया है. उसी को देखते हुए यह सड़क बनवायी जा रही है. इस पर बड़े व भारी वाहन भी चलेंगे, तो यह क्षतिग्रस्त नहीं होगी.
15 फीसदी कम आयेगी लागत
अभियंता प्रमुख रास बिहारी सिंह के नेतृत्व में कार्यपालक अभियंता राजेश मुर्मू सहित अन्य इंजीनियरों की टीम वहां जांच करने पहुंची थी. उन्होंने पाया कि सड़क बिल्कुल स्पेशिफिकेशन के हिसाब से बन रही है.
श्री सिंह ने बताया कि इस सड़क के निर्माण से लागत करीब 15 फीसदी कम हो जायेगी. यानी परंपरागत तकनीक की तुलना में लागत कम आयेगी. वहीं, पर्यावरण को बड़ा लाभ मिलेगा. पठार-पहाड़ को काटने की जरूरत नहीं होगी. जहां जो भी लोकल मेटेरियल होगा, उससे काम हो जायेगा.
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