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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 10 वर्षों से कार्यरत अस्थायी कर्मियों को नियमित करने का निर्णय ले सरकार

सरकार अस्थायी नियुक्ति का आइडिया रखती है, तो उसे ड्रॉप कर दे रांची : झारखंड में 10 वर्षों से कार्यरत अस्थायीकर्मियों की सेवा नियमित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्णय लेने का निर्देश दिया है. सरकार को आदेश पारित करने की तिथि से लेकर चार माह के अंदर अस्थायी कर्मियों […]

सरकार अस्थायी नियुक्ति का आइडिया रखती है, तो उसे ड्रॉप कर दे
रांची : झारखंड में 10 वर्षों से कार्यरत अस्थायीकर्मियों की सेवा नियमित करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्णय लेने का निर्देश दिया है. सरकार को आदेश पारित करने की तिथि से लेकर चार माह के अंदर अस्थायी कर्मियों की सेवा नियमित करने पर निर्णय लेने को कहा गया है.
आदेश में कहा गया है कि जिस कर्मी की सेवा 10 वर्ष पूरी हो जाती है, तो उनकी सेवा नियमित कर देनी चाहिए. सरकार को सेवा की गणना करनी चाहिए, न कि कट अॉफ डेट की. यदि कर्मी पर सेवा के दाैरान कोई मिसकंडक्ट का आरोप न हो, तो उन्हें नियमित किये जाने पर निर्णय लिया जाना चाहिए.
यह फैसला बुधवार को जस्टिस मदन बी लोकुर व जस्टिस दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने नरेंद्र कुमार तिवारी व अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिया. अदालत ने अपील याचिका को निष्पादित करते हुए झारखंड हाइकोर्ट द्वारा 17 नवंबर 2016 को पारित आदेश को भी निरस्त कर दिया है.
अनियमित नियुक्ति नहीं की जाये: खंडपीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि आज के बाद झारखंड सरकार सिर्फ नियमित नियुक्ति ही करे. यदि सरकार अस्थायी नियुक्ति का आइडिया रखती है, तो उसे ड्रॉप कर दे. भविष्य में किसी प्रकार की अनियमित नियुक्ति नहीं की जाये. सरकार सिर्फ अपने बारे में ही नहीं, बल्कि अपने कर्मियों के बारे में भी विचार करे.
खंडपीठ ने उमा देवी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसले का जिक्र करते हुए कहा है कि उसमें दो बातें प्रमुख थी. फैसले के बाद से दैनिककर्मियों को नहीं रखना था, लेकिन दैनिककर्मियों की नियुक्ति की जाती रही. यह भी कहा गया था कि यदि पूर्व में दैनिककर्मी नियुक्त किये गये है, तो उन्हें नियमित कर दिया जाये, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया.
हाइकोर्ट के फैसले को दी गयी थी चुनौती: प्रार्थी नरेंद्र कुमार तिवारी व अन्य की अोर से सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका (एसएलपी) दायर की गयी थी. इसमें झारखंड हाइकोर्ट के आदेश को चुनाैती दी गयी थी
.
हाइकोर्ट ने प्रार्थियों की दलील को नहीं माना तथा उनकी याचिका को खारिज कर दिया था. प्रार्थियों ने झारखंड सरकार के अधीनस्थ अनियमित रूप से नियुक्त एवं कार्यरत कर्मियों की सेवा नियमितिकरण नियमावली-2015 के प्रावधान को चुनाैती दी थी. नियमावली में कट अॉफ डेट 10 अप्रैल 2006 तय की गयी थी. कट अॉफ डेट के कारण अस्थायी दैनिककर्मियों की सेवा नियमित नहीं हो पा रही थी. प्रार्थियों का कहना था कि झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ था. उनकी सेवा की गणना राज्य गठन से की जानी चाहिए.
झारखंड हाइकोर्ट का आदेश निरस्त, सरकार को दिया चार माह में निर्णय लेने का निर्देश
राज्य काे संवारने में हम लाेगाें का भी याेगदान है. जब नया राज्य बना था, तब कार्यालयाें की स्थिति क्या थी, यह सब काेई जानता है. पर उसे दुरुस्त करने में हमने में भी याेगदान दिया है. अब न्यायालय ने हमलाेगाें काे हमारे कार्याें का प्रतिफल दे दिया.
नरेंद्र कुमार तिवारी, याचिकाकर्ता
सुप्रीम कोर्ट का फैसला झारखंड के दैनिककर्मियों व अनुबंधकर्मियों की जीत है. इस लड़ाई को लड़ते-लड़ते हम सभी टूट चुके थे, लेकिन हमारा संघर्ष जारी रहा. न्यायालय पर भरोसा करनेवालों की कभी हार नहीं होती है.
-पांडेय शिशिर कांत शर्मा, अध्यक्ष झारखंड राज्य कारा दैनिक कर्मी एसोसिएशन.

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