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छोटानागपुर से अंडमान गये आदिवासी आज किस हालात में हैं, नयी पीढ़ी क्या सोचती है?

।।पंकज कुमार पाठक।। अंडमान को लेकर आज भी कई भ्रम हैं. अंडमान-निकोबार में 572 द्वीप हैं. इसमें 37 द्वीप समूह में ही जनसंख्या है, बाकी खाली पड़े हैं. अंडमान में छोटे-छोटे कई द्वीप हैं इन जगहों पर आम लोगों का जाना आज भी मना है. अंडमान के जंगल में अभी भी कई संरक्षित जातियां रहती […]

।।पंकज कुमार पाठक।।

अंडमान को लेकर आज भी कई भ्रम हैं. अंडमान-निकोबार में 572 द्वीप हैं. इसमें 37 द्वीप समूह में ही जनसंख्या है, बाकी खाली पड़े हैं. अंडमान में छोटे-छोटे कई द्वीप हैं इन जगहों पर आम लोगों का जाना आज भी मना है. अंडमान के जंगल में अभी भी कई संरक्षित जातियां रहती हैं जिनकी जीवन शैली बाहरियों से बिल्कुल अलग है.

मुख्य रूप से जारवा जनजाति के लोगों के संरक्षण के लिए सरकार कदम आगे बढ़ा रही है. इस जनजाति के लोगों की कई किवदंतियां और वीडियो इंटरनेट पर वायरल होती रहती हैं. इंटरनेट पर ऐसी कई जानकारियां मौजूद हैं जो अंडमान के रहस्य को और गहरा कर देती हैं?

इतने सालों में अंडमान कैसे बदला?
अंडमान को और बेहतर ढंग से समझने के लिए हमने अलबर्ट कॉलेज के उन छात्रों से बात की जो हैं तो छोटानागपुर के लेकिन उनकी कई पीढ़िया अंडमान में रहीं और अब नयी पीढ़ी आ रही है. अलबर्ट कॉलेज में हमने बात की जयमन केरकेट्टा, अगस्टिन पन्ना, विकास मिंज और संतोष से.
चारों लंबे वक्त से घर से दूर रहे हैं. जारो ईशशास्त्र की पढ़ाई कर रहे हैं. अंडमान के विषय में सबसे ज्यादा लोग कौन-सा सवाल करते हैं. इस पर विकास कहते हैं, लोगों का अंडमान से परिचय कितना है? उन्होंने इतिहास में कालापनी की सबसे क्रूर सजा को पढ़ा है. अंडमान के बनने की कहानी पढ़ी है लेकिन कभी अंडमान गये नहीं. उनके दिमाग में जो छवि बनी है उसी आधार पर सवाल होते हैं. हमें संदेह की दृष्टि से देखते हैं जैसे ना जाने हम कहां से आये हैं. धीरे-धीरे लोगों को महसूस होता है हम उन्हीं की तरह हैं तो फिर सबकुछ सामान्य हो जाता है.
अंडमान में शिक्षा व्यवस्था कैसी है?
अंडमान में शिक्षा में पहले से काफी सुधार हुआ है. हालांकि अभी भी उच्च शिक्षा के लिए लोगों को बाहर जाना पड़ता है. कई मिशन स्कूल खुले हैं. आधुनिक शिक्षा से लोगों का परिचय हो रहा है. हालांकि कई इलाके अभी भी ऐसे हैं जहां शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं है. कई मजदूर दूर-दराज के इलाके में रहते हैं उनके बच्चों के लिए शिक्षा मौजूद नहीं है.
आदिवासियों ने बचा रखी है अपनी संस्कृति
अंडमान में कई इलाके ऐसे हैं जहां उरांव, मुंडा सहित कई जनजाति के लोग रहते हैं. यहां लोग अपनी संस्कृति और सभ्यता को बचा कर रखते हैं. लोग अपने घरों में अपनी भाषा बोलते हैं. वहां कोई भेदभाव नहीं है देश के कई राज्यों से लोग आकर बसे हैं हम एक दूसरे के त्योहार में शामिल होते हैं. होली, दिवाली, ईद, करमा जैसे पर्व साथ में मनते हैं.
अभी भी जारी है संघर्ष
छोटानागपुर के आदिवासी अभी भी इन इलाकों में हक की लड़ाई लड़ रहे हैं. कई लोगों ने जमीन समतल करके घर बना लिया लेकिन सरकार जब चाहे इन्हें बेदखल कर सकती है. सरकारी नौकरियों में किसी तरह का आरक्षण नहीं मिल रहा है़ केंद्र शासित इस प्रदेश में सरकारी नौकरी में झारखंडियों की भागीदारी नगण्य है़ खेतीबारी के लिए इनके पास जमीन नहीं है़. वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं. इन समुदायों द्वारा बार-बार धरना-प्रदर्शन किया जाता है और जुलूस निकाला जाता है. इन्होंने अपना घर तो सालों पहले छोड़ दिया जिस जगह को रहने लायक बनाया वहीं अब उन्हें अधिकार नहीं मिल रहा.
इन 100 सालों में स्थिति बदली है. हमने तो बदलाव का वह दौर नहीं देखा लेकिन हमारे पूर्वज इस बदलाव का हिस्सा रहे हैं. हम आज छोटानागपुर में अपने पूर्वजों के घर जाते हैं तो वह जुड़ाव महसूस होता है. हमें लगता है ऐसी कौन-सी मजबूरी रही होगी कि इन्हें अपना घर छोड़कर इतनी दूर जाना पड़ा.

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