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झारखंड : कोल परियोजना मुआवजा घोटाला, कब्जाधारियों को दे दिया था 354.2 करोड़, CBI ने दर्ज की पीई

रांची : पकरी बरवाडीह कोल परियोजना में अवैध कब्जा करनेवालों को 354.2 करोड़ रुपये मुआवजा देने के मामले में रांची सीबीआइ (एसीबी) ने एनटीपीसी के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ पीइ दर्ज कर प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है. सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी देवाशीष गुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में मुआवजा दिये जाने को लेकर एनटीपीसी की भूमिका […]

रांची : पकरी बरवाडीह कोल परियोजना में अवैध कब्जा करनेवालों को 354.2 करोड़ रुपये मुआवजा देने के मामले में रांची सीबीआइ (एसीबी) ने एनटीपीसी के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ पीइ दर्ज कर प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है.
सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी देवाशीष गुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में मुआवजा दिये जाने को लेकर एनटीपीसी की भूमिका पर सवाल उठाया था. कहा था कि राज्य सरकार इस मसले को कोयला और ऊर्जा मंत्रालय के समक्ष उठाये. अवैध कब्जाधारियों को मुआवजा देने से देश की अन्य परियोजनाएं प्रभावित हो सकती हैं. पर राज्य सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली थी.
फर्जी दस्तावेज बना लिया था मुआवजा : पकरी बरवाडीह कोल परियोजना में सरकारी (गैर मजरूआ) जमीन के फर्जी दस्तावेज को आधार बना कर मुआवजा लेने की शिकायत मिली थी. इसके बाद राज्य सरकार ने जांच के लिए एसआइटी का गठन किया था.
जांच के बाद सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी देवाशीष गुप्ता ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार और एनटीपीसी के अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठाये थे. इस परियोजना में 3000 एकड़ सरकारी जमीन का मुआवजा वैसे लोगों को दिया गया, जिनका नाम रजिस्टर-टू में नहीं था. सरकार के अधिकारियों ने इन लोगों को औसतन 10 लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा दिया. इससे राज्य सरकार को राजस्व का नुकसान हुआ.
देवाशीष गुप्ता ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि एनटीपीसी सरकारी लोक उपक्रम है. रिपोर्ट में एनटीपीसी की ओर से अवैध कब्जाधारियों को 15-20 लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देने के फैसले पर आपत्ति उठायी गयी है. कहा गया है कि भूमि अधिग्रहण कानून और कोल बियरिंग एक्ट के दायरे में ही जमीन के असली मालिकों को मुआवजा दिया जाना चाहिए था. इसके बावजूद अवैध कब्जाधारियों को मुआवजा दिया गया.
एनटीपीसी के अफसरों की भूमिका की भी होगी सीबीआइ जांच
21 फरवरी 2015 को हुई थी बैठक
रिपोर्ट में कहा गया है कि 21 फरवरी 2015 को एनटीपीसी के सीएमडी के हस्ताक्षर से हजारीबाग जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ हुई बैठक प्रोसिडिंग तैयार हुई. इसमें लिखा गया कि अवैध कब्जाधारियों को मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है. अवैध कब्जा करनेवाले बहुत ही गरीब और पिछड़े हैं.
उनका जीवन यापन इसी जमीन पर निर्भर है. एनटीपीसी के पास ऐसे 2769 लोगों की सूची है. पर यह सूची कहां से और किस सर्वे का माध्यम से मिली है, यह स्पष्ट नहीं है. इनमें 2000 लोग एेसे हैं, जिनके पास औसतन दो ही डिसमिल जमीन है. दो डिसमिल जमीन पर ही किसी परिवार का जीवन यापन निर्भर होना संभव नहीं है. एनटीपीसी की सूची में ऐसे जमीन मालिकों के भी नाम हैं, जिनके पास सिर्फ 20 वर्ग फुट खेती की जमीन है.
इन आंकड़ों को देखते हुए देवाशीष गुप्ता ने सरकार को सुझाव दिया था कि इस मामले को कोयला और ऊर्जा मंत्रालय के पास ले जाया जाये और इसकी जांच करायी जाये. पर राज्य सरकार ने उनकी पूरी रिपोर्ट जिला प्रशासन के पास यह कहते हुए भेज दी कि प्रशासन इस मामले शामिल दोषी सरकारी अधिकारियों को चिह्नित कर आवश्यक कार्रवाई करे.
Prabhat Khabar Digital Desk
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