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झारखंड : लालू को गिरफ्तार करने नहीं दे रहा था पटना जिला प्रशासन : सरयू राय

सरयू राय 30 जुलाई 1997 का दिन पशुपालन घोटाले के इतिहास में सर्वाधिक सनसनीखेज वाला दिन था़ उस दिन लालू प्रसाद ने चारा घोटाला के आरसी/20/96 मामले में कोर्ट में समर्पण किया था़ सीबीआइ उन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी, परंतु पटना के जिला प्रशासन ने ऐसा होने नहीं दिया़ विकल्प के रूप में सीबीआइ ने […]

सरयू राय
30 जुलाई 1997 का दिन पशुपालन घोटाले के इतिहास में सर्वाधिक सनसनीखेज वाला दिन था़ उस दिन लालू प्रसाद ने चारा घोटाला के आरसी/20/96 मामले में कोर्ट में समर्पण किया था़ सीबीआइ उन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी, परंतु पटना के जिला प्रशासन ने ऐसा होने नहीं दिया़ विकल्प के रूप में सीबीआइ ने 29 जुलाई की सुबह पटना उच्च न्यायालय में चारा घाेटाला की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश एसएन झा से उनके आवास पर भेंट की. इसके बाद सीबीआइ के अधिकारियों ने दानापुर कैंट में सेना के अधिकारियों से मदद मांगी, ताकि लालू प्रसाद काे गिरफ्तार किया जा सके़
सीबीआइ ने आरसी 20ए/96 मामले में 27 अप्रैल 1996 को आराेप पत्र दाखिल किया था, जिसे बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डॉ एआर किदवई के पास अनुमाेदन के लिए भेजा गया़ डॉ किदवई ने 17 जून 1996 काे आराेप पत्र अनुमाेदित कर दिया़ गिरफ्तारी की आशंका के मद्देनजर लालू प्रसाद उच्चतम न्यायालय गये़ उच्चतम न्यायालय ने 29 जुलाई के पूर्व उनकी गिरफ्तारी पर राेक लगा दी. बाद में सीबीआइ के अनुरोध पर उच्चतम न्यायालय ने रोक हटायी. फिर सीबीआइ का लालू प्रसाद काे गिरफ्तार करने का प्रयास शुरू हुआ़ इस बीच लालू प्रसाद ने 25 जुलाई काे मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया आैर अपनी राबड़ी देवी काे मुख्यमंत्री बना दिया़
लालू प्रसाद द्वारा न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण करने के लिए किये जा रहे प्रयास सफल नहीं हाे रहे थे और पटना जिला प्रशासन सीबीआइ को उन्हें गिरफ्तार करने नहीं दे रहा था़ तब झारखंड की वर्तमान मुख्य सचिव राजबाला वर्मा पटना की जिलाधिकारी थी़ सीबीआइ ने रैपिड एक्शन फोर्स के डीआइजी से पुलिस बल की मांग की. तदुपरांत पुलिस बल सीबीआइ के कार्यालय पर पहुंच भी गया, परंतु राजबाला वर्मा ने बल के डीआइजी काे स्पष्ट निर्देश दे दिया कि बिना उनकी इजाजत के पुलिस बल एक कदम भी आगे नहीं बढ़ेगा.
उस दिन मुख्य सचिव, डीजीपी, एसएसपी ने माेबाइल बंद कर दिया था, लैंडलाइन पर भी उपलब्ध नहीं थे. घर-अॉफिस से गायब हाे गये थे. पूरा शासन कानून की धज्जियां उड़ा रहा था.
सीबीआइ के अधिकारियों ने अपने प्रतिवेदन में अंकित किया है कि पटना जिला प्रशासन द्वारा लालू प्रसाद को गिरफ्तार करने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का अनुपालन करने से इनकार कर दिये जाने के कारण उन्हें सेना की मदद लेने के लिए विवश हाेना पड़ा़ यह घटना 29 जुलाई 1996 की है़ सीबीआइ द्वारा लालू प्रसाद की गिरफ्तारी के लिए सेना की मदद मांगे जाने के अगले दिन 30 जुलाई काे लालू प्रसाद आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार हुए़
न्यायालय में आत्मसमर्पण के लिए जाते समय पटना की सड़काें पर लंबा जुलूस लेकर वे न्यायालय गये आैर अपनी गिरफ्तारी दी. इसके बाद उन्हें बेऊर जेल भेजा गया़ वहां से कुछ ही क्षणों में उन्हें एक गेस्ट हाउस में भेज दिया गया आैर गेस्ट हाउस काे जेल का दर्जा दे दिया गया़ प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं आैर उस समय के कतिपय समाचार पत्रों ने भी प्रकाशित किया है कि जब लालू प्रसाद बेऊर जेल भेजे गये, तब पटना की तत्कालीन जिलाधिकारी जेल गेट के सामने फूट-फूट कर राेने लगीं. शायद प्रशासन द्वारा तमाम प्रयासों के बावजूद लालू प्रसाद को गिरफ्तार कर उन्हें जेल जाने से राेक नहीं पाने के कारण इनके आंसू निकलने से रुके नही़
उस दिन मुख्य सचिव, डीजीपी व एसएसपी ने मोबाइल बंद कर दिया था. लैंड लाइन पर भी उपलब्ध नहीं थे. घर, ऑफिस से गायब हो गये थे. पूरा शासन कानून की धज्जियां उड़ा रहा था.
29 और 30 जुलाई 1996 का दिन न केवल पशुपालन घोटाला के इतिहास का एक सनसनीखेज दिन था, बल्कि एक ऐसा दिन भी था, जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लालू प्रसाद की गिरफ्तारी से रोक हटाने और उन्हें अविलंब गिरफ्तार के आदेश का अनुपालन करने से पटना जिला प्रशासन इनकार कर गया़ संविधान और कानून के मुंह पर प्रशासन द्वारा यह करारा तमाचा था़ वह दिन एक प्रकार से जिला प्रशासन द्वारा राज्य सरकार की शह पर न्यायिक निर्णयों के प्रति विद्रोह के बिंब के रूप में याद किया जायेगा़
जब नौकरशाही और प्रशासन संविधान, कानून और न्यायालय के प्रावधानों का अनुपालन करनेसे इनकार कर दे, तब नागरिक प्रशासन की विफलता के विकल्प में सेना का सहारा लेने का अंतिम विकल्प अपनाने का निर्णय कोई जांच एजेंसी करती है, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के तार–तार होने की स्थिति पैदा हो जाती है़ सीबीआइ द्वारा नागरिक प्रशासन के विफल हो जाने के कारण कानून व्यवस्था लागू करने के लिए सेना की मदद लेने का निर्णय कितना उचित था और सीबीआइ के स्थानीय अधिकारियों के अधिकार क्षेत्र में था या नहीं यह विवाद का विषय हो सकता है, परंतु ऐसी स्थिति पैदा हो जाने पर इसके सिवाय क्या विकल्प है़ – लेखक चारा घोटाले की जांच के याचिकाकर्ता रहे हैं और वर्तमान में राज्य सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री है़

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