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सिमडेगा भूख से मौत :भाई के घर थी संतोषी की मां फिर अंगूठे की छाप किसकी ?

भोजन का अधिकार अभियान ने की कार्रवाई की मांग, उठाया सवाल रांची : सिमडेगा में भूख के कारण संतोषी कुमारी की हुई मौत के मामले में भोजन का अधिकार अभियान ने मुख्य सचिव व विभागीय सचिव पर कार्रवाई की मांग की है़ यह मांग भी की है कि आधार सीडिंग नहीं होने कारण जितने राशन […]

भोजन का अधिकार अभियान ने की कार्रवाई की मांग, उठाया सवाल
रांची : सिमडेगा में भूख के कारण संतोषी कुमारी की हुई मौत के मामले में भोजन का अधिकार अभियान ने मुख्य सचिव व विभागीय सचिव पर कार्रवाई की मांग की है़ यह मांग भी की है कि आधार सीडिंग नहीं होने कारण जितने राशन कार्ड रद्द हुए हैं, उन्हें पुन: बहाल किया जाये तथा योग्य लाभुकों के चयन के लिए ग्राम सभा व पंचायती राज प्रतिनिधियों की शक्तियों का पालन किया जाये़
राशन वितरण के लिए ऑफलाइन व्यवस्था लागू हो तथा सरकार राशन कार्ड बनवाने व राशन के लिए आधार की अनिवार्यता समाप्त करे़ साथ ही लातेहार समाहरणालय द्वारा जारी उस निर्देश को भी तत्काल रद्द करे, जिसमें कहा गया है कि अक्तूबर 2017 के बाद परिवार के ऐसे सदस्याें का नाम कार्ड से हटा दिया जाये, जिनके आधार कार्ड की सीडिंग नहीं हुई है़ इस विषय पर अभियान की तारामणी साहू, धीरज कुमार, जेम्स हेरेंज, अशर्फी नंद प्रसाद व आकाश रंजन ने एक्सआइएसएस सभाकक्ष में अपनी बात रखी़
पीड़ित परिवार को लगातार धमकाया जा रहा है : झारखंड नरेगा वॉच की तारामणी साहू ने कहा कि पीड़ित परिवार को लगातार धमकाया जा रहा है़ शुक्रवार की रात भी उनके साथ मारपीट की कोशिश हुई़
जो अनाज मिला था, उसे गांव के कुछ लोगों ने फेंक दिया़ उन्होंने कहा कि संतोषी की मौत से पूर्व दो बार जनता दरबार में इन वंचित परिवारों का मामला उठाया था़ तीन बार आवेदन भी दिया गया था, फिर भी भूख से मौत हो गयी़ पीड़ित परिवार को छह महीने से राशन नहीं मिल रहा था़ ऐसे में जनता दरबार का औचित्य समझ से बाहर है़ उन पर (तारामणी पर) आरोप लगाया जा रहा है कि राशन डीलर उनका रिश्तेदार है और वे पारिवारिक कारणों से मामले को तूल दे रही हैं, जबकि ऐसा नहीं है़
राशन डीलर उनका रिश्तेदार जरूर है, पर वे रिश्तेदारी के कारण दलित परिवारों के मौलिक- संवैधानिक अधिकारों के हनन की अनुमति नहीं दे सकती़ उस एएनएम को बर्खास्त कर दिया गया है, जिसने संतोषी की मौत से एक दिन पूर्व मुलाकात की थी और जिसने कहा था कि संतोषी को मलेरिया नहीं था़ बलराम ने कहा कि मृतक की मां डर से अपने भाई के घर बानो चली गयी थी, पर डीसी ने आठ घंटे में अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें मृतका की मां कोयल देवी के अंगूठे का छाप भी प्रस्तुत कर दिया़ यह जांच का विषय है कि वह किसके अंगूठे की छाप है?
किसी केंद्रीय टीम ने अब तक पीड़ित परिवार से संपर्क नहीं किया है़ सेंट्रल टीम ने अब तक कोई रिपोर्ट जमा नहीं की है, फिर भी सचिव की ओर से अखबारों में प्रकाशित कराया गया कि मौत मलेरिया से हुई़
सरकार असंवेदनशील बनी हुई है : कांग्रेस : जलड़ेगा प्रखंड के कारीमाटी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सह लोहरदगा विधायक सुखदेव भगत, सिमडेगा के पूर्व विधायक नियेल तिर्की, बेंजामिन लकड़ा सहित काफी संख्या में कांग्रेसी नेता संतोषी कुमारी के परिजनों से शनिवार को मिले और घटना की जानकारी ली.
कोयली देवी ने बताया कि वह स्वयं बीमार थी. काम में नहीं जा सकी. सरकार ने 50 हजार का चेक, चावल-दाल देकर मदद की है. श्री भगत ने मृतका की मां को पांच हजार रुपये, साड़ी, कंबल देकर मदद की. उसके बाद पत्रकारों से बातचीत करते श्री भगत ने कहा कि एक मां भूख से मरने की बात कर रही है. उसके द्वारा किसी डॉक्टर के पास नहीं ले जाया गया है. फिर कैसे कहा जा रहा है कि बच्ची की मौत बीमारी से हुई है. राशन कार्ड के लिए लोगों को क्या मरना होगा. सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए. मुख्यमंत्री को स्वयं आना चाहिए था या अपने प्रतिनिधि को भेजना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. केंद्रीय टीम को भी खराब मौसम का हवाला देकर रांची से वापस भेज दिया गया. सरकार असंवेदनशील है.
रद्द हुए राशन कार्ड को दोबारा बहाल किया जाये केंद्रीय टीम ने पीड़ित परिवार से नहीं किया संपर्क
80 फीसदी राशन दुकानों में अनिवार्य है एबीबीए : ज्यां द्रेज
रांची : अर्थशास्त्री व सामाजिक कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने कहा है कि खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने कहा है कि आधार कार्ड के साथ राशन कार्ड लिंक नहीं होने की वजह से किसी को भी भोजन के अधिकार से वंचित नहीं रहना चाहिए. लेकिन, श्री राय बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि झारखंड में लगभग 80 फीसदी राशन दुकानों में आधार आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण (एबीबीए) अनिवार्य है. आधार सीडिंग के बिना एबीबीए संभव नहीं है. हम लोग पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से एबीबीए को ग्रामीण झारखंड के लिए अनुचित तकनीक बता रहे हैं. हमारी चेतावनियों को राज्य सरकार ने नजरअंदाज किया. अब सिमडेगा घटना के बाद एक बार फिर से तथ्यों से इनकार करने की कोशिश की जा रही है.
ग्रेन बैंक का न चावल मिला, न ही पैसा
रांची : सिमडेगा में एक बच्ची की भूख से मौत के बाद खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने ग्रेन बैंक की स्थापना की बात कही है. दूसरी तरफ करीब छह वर्ष पूर्व करीब 19,678 क्विंटल चावल खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने गायब कर दिया है, जो गरीबों को बांटने के लिए राज्य भर के कुल 583 विलेज ग्रेन बैंक (ग्रामीण अन्न कोष) के नाम पर मिला था. इससे सरकार के करीब 3.70 करोड़ रु (चावल की वर्तमान सरकारी दर 1883 रु प्रति क्विंटल के हिसाब से) भी डूब गये हैं.
एक बच्ची की मौत के बाद मंत्री सरयू राय हुए गंभीर
कैसे काम करता है बैंक : जिस तरह वाणिज्यिक बैंक से पैसे उधार मिलते हैं, उसी तरह ग्रेन बैंक से अनाज उधार मिलेगा. राज्य के पीटीजी, एससी व एसटी इलाके में 583 विलेज ग्रेन बैंक की स्थापना होनी थी. एक बैंक में 40 बीपीएल-अंत्योदय परिवार के लिए 40 क्विंटल अनाज रखा जाना था. प्रत्येक परिवार अधिकतम एक क्विंटल अनाज उधार ले सकता था. इसे तय प्रक्रिया के तहत बाद में लौटाया जा सकता था. सभी ग्रेन बैंक के लिए अनाज केेंद्र ने दिया था. वहीं अनाज तौलने के लिए माप-तौल, भंडारण, परिवहन, प्रशिक्षण कार्यक्रम की मॉनिटरिंग के लिए प्रति बैंक 1800 रु का खर्च राज्य सरकार को वहन करना था. अनाज का भंडार किसी सामुदायिक भवन में करना था.
किस जिले को कितना चावल मिला था : खूंटी (360 क्विंटल), गुमला (1600), सिमडेगा (1600), लोहरदगा (1280), जमशेदपुर (82), चाईबासा (1628), सरायकेला (1360), पलामू (220), गढ़वा (493), लातेहार (920), गिरिडीह (642), हजारीबाग (680), चतरा (720), रामगढ़ (240), धनबाद (1339), बोकारो (720), दुमका (1120), जामताड़ा (1080), देवघर (640), साहेबगंज (1038), गोड्डा (878) व पाकुड़ (1038 क्विंटल) यानी कुल 19678 क्विंटल.
राज्य खाद्य निगम को नहीं है जानकारी
जानकारी के मुताबिक ग्रेन बैंक की यह केंद्रीय योजना वर्ष 2011-12 की थी, जो अकाल, सुखाड़ या अभाव की स्थिति में खाद्य सुरक्षा के तहत गरीबों को देने के लिए बनी थी. गरीबों को यहां से अनाज उधार मिलना था, जिसे बाद में वे लौटा देते. रांची व कोडरमा को छोड़ राज्य के शेष 22 जिलों को यह चावल आवंटित किया गया था.
विभागीय सूत्रों के मुताबिक अलग से कोई ग्रेन बैंक नहीं बनाया जा सका था, इसलिए संबंधित जिलों के खाद्य आपूर्ति पदाधिकारियों तथा आपूर्ति निरीक्षकों (सप्लाइ इंस्पेक्टर) के माध्यम से पीडीएस डीलरों को ही यह चावल उपलब्ध करा दिया गया था. उन्हें यह चावल सुरक्षित रखना था. पर न तो इस चावल का समायोजन हुआ है और न ही इसकी कीमत ही वसूली जा सकी है. चावल कहां गया, इसके पैसे का क्या हुआ, इसकी कोई जानकारी राज्य खाद्य निगम को नहीं है.

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