पार्षदों की मांग पर नगर आयुक्त शांतनु अग्रहरि ने कहा कि नये परिसीमन पर वार्ड पार्षदों की राय सरकार को बता दी गयी है. अब इसमें किसी भी तरह का सुधार राज्य सरकार ही करायेगी. इस पर पार्षद भड़क गये. कहने लगे कि जब निगम से कुछ होना ही नहीं है, तो इस बैठक का मतलब क्या है? सभी पार्षद बैठक का बहिष्कार करते हुए निगम सभागार से बाहर निकल गये. पौना घंटा तक पार्षद बैठक में नहीं आये. इसके बाद मेयर के अाग्रह पर नये सिरे से बैठक शुरू हुई. बैठक में मेयर आशा लकड़ा, राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार, सांसद रामटहल चौधरी, डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय, नगर आयुक्त शांतनु अग्रहरि, सहायक कार्यपालक पदाधिकारी रामकृष्ण कुमार आदि उपस्थित थे.
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नगर आयुक्त के जवाब पर भड़के पार्षद बैठक का बहिष्कार कर बाहर चले गये
रांची नगर निगम बोर्ड की बुधवार को हुई बैठक हंगामेदार रही. बैठक शुरू होते ही पार्षदों ने वर्ष 2018 के लिए जिला प्रशासन द्वारा तैयार किये गये परिसीमन को लेकर हंगामा शुरू कर दिया. इस पर नगर आयुक्त ने जो जवाब दिया, उसे सुनकर पार्षद भड़क गये और बैठक का बहिष्कार करते हुए बाहर निकल […]
रांची नगर निगम बोर्ड की बुधवार को हुई बैठक हंगामेदार रही. बैठक शुरू होते ही पार्षदों ने वर्ष 2018 के लिए जिला प्रशासन द्वारा तैयार किये गये परिसीमन को लेकर हंगामा शुरू कर दिया. इस पर नगर आयुक्त ने जो जवाब दिया, उसे सुनकर पार्षद भड़क गये और बैठक का बहिष्कार करते हुए बाहर निकल गये. बाद में मेयर की पहल पर पार्षद वापस बैठक में शामिल हुए और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई.
रांची: रांची नगर निगम सभागार में बुधवार दोपहर 12 बजे से निगम बोर्ड की बैठक शुरू हुई. शुरुआत में ही पार्षदों ने हंगामा शुरू कर दिया. सभी एक स्वर में कहने लगे कि वर्ष 2018 के नगर निगम चुनाव के लिए जिला प्रशासन द्वारा किया गया परिसीमन अव्यावहारिक है. पार्षदों ने अपने पांच साल के कार्यकाल में जिस क्षेत्र में कुछ काम किया है, उन क्षेत्रों काे दूसरे वार्ड में शामिल कर दिया गया है. इस परिसीमन के आधार पर कोई भी पार्षद चुनाव नहीं जीत सकता है. इसलिए इस परिसीमन को रद्द किया जाये.
पार्षदों की मांग पर नगर आयुक्त शांतनु अग्रहरि ने कहा कि नये परिसीमन पर वार्ड पार्षदों की राय सरकार को बता दी गयी है. अब इसमें किसी भी तरह का सुधार राज्य सरकार ही करायेगी. इस पर पार्षद भड़क गये. कहने लगे कि जब निगम से कुछ होना ही नहीं है, तो इस बैठक का मतलब क्या है? सभी पार्षद बैठक का बहिष्कार करते हुए निगम सभागार से बाहर निकल गये. पौना घंटा तक पार्षद बैठक में नहीं आये. इसके बाद मेयर के अाग्रह पर नये सिरे से बैठक शुरू हुई. बैठक में मेयर आशा लकड़ा, राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार, सांसद रामटहल चौधरी, डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय, नगर आयुक्त शांतनु अग्रहरि, सहायक कार्यपालक पदाधिकारी रामकृष्ण कुमार आदि उपस्थित थे.
मेयर के नेतृत्व में आज मुख्यमंत्री से मिलेगा प्रतिनिधिमंडल : बैठक में डिप्टी मेयर ने कहा कि नये परिसीमन में 55 वार्ड को घटाकर 53 कर दिया गया है. शहर के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जो राजधानी में होते हुए भी नगर निगम का हिस्सा नहीं हैं. जबकि, इन क्षेत्रों की साफ-सफाई नगर निगम करता है. ऐसे क्षेत्रों को भी नगर निगम में शामिल किया जाना चाहिए. इससे दो वार्ड की संख्या भी बढ़ जायेगी और नये सिरे से परिसीमन भी नहीं करना पड़ेगा. डिप्टी मेयर ने कहा कि गुरुवार को मेयर के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिलेगा और इस परिसीमन को निरस्त करने की मांग की जायेगी.
नगर निगम को समाप्त कर जुडको के हवाले शहर कर दें : पार्षदों ने कहा कि रांची नगर निगम द्वारा जो विकास कार्य किये जाने हैं, उन्हें जुडको के हवाले कर दिया जा रहा है. यह समझ से परे है कि नगर विकास विभाग के अधिकारी और मंत्री आखिर जुडको पर इतने मेहरबान क्यों हैं? बेहतर होगा कि नगर निगम को भंग कर इसके सारे कार्य जुडको के हवाले ही कर दें. पार्षदों ने कहा कि जुडको क्या काम कर रहा है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है.
पहले अधिकार जानें, फिर आवाज उठायें : बैठक में उपस्थित राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार ने कहा कि निगम के जनप्रतिनिधियों को 74वें संविधान संशोधन से काफी अधिकार दिये गये हैं. उन अधिकारों को जानना होगा. जब हम अधिकारों को जान जायेंगे तभी हम मजबूती से अपना पक्ष सरकार के समक्ष रख सकते हैं. श्री पोद्दार ने कहा कि नगर निगम तीसरी सरकार है. बिना इसकी मजबूती के हम एक बेहतर सरकार की कल्पना नहीं कर सकते हैं. श्री पोद्दार ने कहा कि बकरी बाजार स्थित अपनी जमीन पर नगर निगम मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स बनाना चाहता है. यह गलत है. उस जमीन को पार्क के रूप में विकसित किया जाना चाहिए.
विधायकों का वेतन दो लाख से ज्यादा, हमारा वेतन 7000 क्यों?
रांची नगर निगम के पार्षदों ने बुधवार को बोर्ड की बैठक में सवाल उठाया कि जब विधायकों का वेतन बढ़कर दो लाख से अधिक हो सकता है, तो उनका वेतन पिछले 10 वर्षों से सात हजार ही क्यों हैं? पार्षदों ने कहा कि छोटे-छोटे कामों के लिए उन्हें रात-दिन दौड़-भाग करनी पड़ती है. निगम उन्हें इतना कम पैसा देता है कि उससे सभी आनेवाले लोगों को चाय भी नहीं पिलायी जा सकती है. पार्षदों ने प्रस्ताव रखा कि वे भी तीसरी सरकार के अंग हैं. इसलिए सरकार उनके भी मान-सम्मान को लेकर गंभीर होना चाहिए. जब विधायकों का वेतन बढ़ सकता है, तो उनका वेतन भी बढ़ना चाहिए.
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